- अहिंसा यात्रा प्रणेता अपनी अहिंसा यात्रा संग पहुंचे चक राजियासर मीठा
- आचार्यश्री के पावन चरणरज से पावन बना राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय
- आचार्यश्री की प्रेरणा से ग्रामीणों ने स्वीकार की अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी
20.02.2022, रविवार, चक राजियासर मीठा, चूरू (राजस्थान)। तीन देश और भारत के 22 राज्यों को अपने सुकोमल चरणों से पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में अपनी अहिंसा यात्रा के साथ क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के चूरू जिले की धरा को पावन बना रहे हैं। राजस्थान का चूरू जिला जो गर्मी के दिनों में जहां सबसे ज्यादा तापमान वाला अंकित किया जाता है तो वहीं सर्दी के दिनों में यहां बर्फ भी जमी दिखाई देती है। वर्तमान में भले ही फाल्गुन महिने और बसंत ऋतु का काल चल रहा हो, किन्तु यहां तापमान अभी से चढ़ने लगा है।
रविवार को प्रातः अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग आबसर से मंगल प्रस्थान किया। रास्ते में आने वाले अनेक गांवों के लोगों को पावन आशीर्वाद प्रदान करते आगे बढ़ते जा रहे थे। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक रेत के टिले ही दिखाई दे रहे हैं। जिससे यह स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है कि पानी का अभाव इन क्षेत्रों में ज्यादा है। ग्रामीण सड़कों पर लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री चक राजियासर गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आगम वाङ्मय के अधिकृत प्रवक्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी के माध्यम से लोगों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में धर्म है तो अधर्म भी है। धार्मिक, आध्यात्मिक लोग हैं तो अधर्मी और पापों में संलिप्त लोग भी हैं। शास्त्रों में अहिंसा, संयम और तप को धर्म बताया गया है। आत्मा और शरीर का संयोग जीवन है। इसमें आत्मा मूल तत्त्व है और शरीर अस्थाई होता है। इसी प्रकार आदमी विभिन्न संप्रदायों के माध्यम से धर्म करने का प्रयास करता है। उसी तरह संप्रदाय शरीर की तरह अस्थाई और धर्म आत्मा की तरह होता है। अहिंसा, संयम और तप धर्म का मूल होता है। अहिंसा परम धर्म है। इससे शांति मिलती है, अहिंसा भगवती है। दुनिया का कोई धर्म संप्रदाय ऐसा नहीं जो अहिंसा को धर्म न मानता हो। आदमी को अपने जीवन में अहिंसा, संयम और तप को रखने का प्रयास करना चाहिए। शरीर, मन और वाणी से हिंसा न हो, ऐसा प्रयास आदमी को करने का प्रयास करना चाहिए।
धर्म का एक अर्थ कर्त्तव्य भी हो सकता है। जैसे राष्ट्रधर्म, परिवार धर्म आदि। आदमी को अपने कर्त्तव्यों के प्रति भी जागरूकता रहने का प्रयास करना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों को अच्छे और धार्मिक संस्कार देने का प्रयास करना चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं तो बच्चों का जीवन अच्छा हो सकता है। माता-पिता के उपकार के बाद बच्चों को भी उन्हें धार्मिक सहयोग देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने कर्त्तव्यों और धर्म के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने समुपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समुपस्थित ग्रामीणों ने अपने स्थान पर खड़े होकर अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
सायं लगभग 4.40 बजे आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चक राजियासर मीठा से प्रस्थान किया। लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कनवारी गांव स्थित वीर हनुमान मंदिर परिसर में पधारे। मंदिर प्रबन्धन से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। आज का रात्रिकालीन प्रवास यहीं हुआ।