नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बताया कि देश में सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ कुल 4984 मामले लंबित हैं। इसमें से 1899 मामले ऐसे हैं जो पांच साल से भी पुराने हैं। न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दिसंबर 2018 तक कुल लंबित मामले 4,110 थे और अक्टूबर 2020 तक ये 4,859 थे।
अधिवक्ता स्नेहा कलिता के माध्यम से दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चार दिसंबर 2018 के बाद 2,775 मामलों के निस्तारण के बावजूद सांसदों- विधायकों के खिलाफ मामले 4122 से बढ़ कर 4984 हो गए। इससे प्रदर्शित होता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक लोग संसद और राज्य विधानसभाओं में पहुंच रहे हैं। यह अत्यधिक आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के तेजी से निस्तारण के लिए तत्काल और कठोर कदम उठाए जाएं।’
सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित करने तथा सीबीआई व अन्य एजेंसियों की ओर से जल्दी से जांच कराने के लिए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर कुछ निर्देश जारी करता रहा है। हंसारिया ने कहा कि हाई कोर्ट की ओर से दाखिल स्थिति रिपोर्ट से भी साफ होता है कि कुछ राज्यों में विशेष अदालतें गठित की गई हैं जबकि अन्य में संबद्ध क्षेत्राधिकार की अदालतें समय-समय पर जारी निर्देशों के आलोक में सुनवाई कर रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘क्षेत्राधिकार वाली ये अदालतें सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के साथ-साथ खुद को आवंटित अन्य दायित्वों का भी निर्वहन कर रही हैं। कई राज्यों में, वहीं न्यायाधीश अनुसचूति जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम आदि जैसे विभिन्न विधानों के तहत एक विशेष अदालत हैं।’
जस्टिस ने इस बात का जिक्र किया कि 25 अगस्त 2021 के आदेश के अनुसार, जांच में तेजी, मामलों की सुनवाई, अदालतों को बुनियादी ढांचे मुहैया करना और जांच में विलंब के कारणों का आकलन करने के लिए निगरानी समिति के गठन से जुड़े मुद्दे पर केंद्र सरकार द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है। उन्होंने कोर्ट से यह निर्देश जारी करने का अनुरोध किया कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई कर रहीं अदालतें विशेष रूप से इन्हीं मामलों की सुनवाई करें और इन मामलों की सुनवाई पूरी होने के बाद ही अन्य मामले लिए जाएं।