- जैन विश्व भारती के ‘महाश्रमण विहार’ में आचार्यश्री के प्रवास का दूसरा दिन
- घने कोहरे और ठंड में भी अपने आराध्य के दर्शन उपस्थित रहे श्रद्धालु
- सभी जीवों का कल्याण करने वाली अहिंसा को आचार्यश्री ने किया विवेचित
16.01.2022, रविवार, लाडनूं, नागौर (राजस्थान)। हाड़ कंपाती ठंड और घने कोहरे के बावजूद भी जब आस्था प्रबल हो तो ठंड भी भागती नजर आती है। तेरापंथ की राजधानी लाडनूं का जैन विश्व भारती परिसर रविवार को भले ही घने कोहरे से ढंका हुआ था, किन्तु श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व ही अपने आराध्य तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अध्यात्म का प्रकाश पाने को उपस्थित नजर आ रहे थे। हांलाकि कोविड-19 के प्रोटोकॉल के कारण आचार्यश्री के सम्मुख उपस्थित नहीं होने की कसक तो उनके मन में अवश्य थी, किन्तु अपने आराध्य के अपने नगर में विराजमान होने व उनकी मंगलवाणी का श्रवण का लाभ प्राप्त कर श्रद्धालु श्रद्धा से परिपूर्ण नजर आ रहे थे।
निर्धारित समयानुसार प्रातःकाल के ऑनलाइन रूप से आयोजित होने वाले मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अहिंसा एक प्रसिद्ध शब्द है। भला ऐसा कौन धर्म-संप्रदाय होगा तो अहिंसा को न मानता हो। हां कोई धर्म/संप्रदाय अहिंसा को सूक्ष्मता से मानता है तो कोई सामान्य रूप में ही, किन्तु अहिंसा सर्वत्र है। सामान्यतया अहिंसा व्यापक धर्म है। अहिंसा एक ऐसी नीति है जो सभी के लिए कल्याणकारी है। राजनैतिक संदर्भों में भी अहिंसा की नीति रहनी चाहिए। पूरे विश्व में मैत्री की चेतना का जागरण होना चाहिए। एक देश दूसरे देश के प्रति मैत्री का भाव रखें। कभी युद्ध न बने, इसके लिए पारस्परिक वार्तालाप के द्वारा युद्ध को दूर भगाने का प्रयास करना चाहिए।
सामाजिक, पारिवारिक सन्दर्भों में भी अहिंसा सुखदायी होती है। आत्मकल्याण के लिए भी अहिंसा परम आवश्यक है। अहिंसा और समता मानों गहराई से जुड़े हुए हैं। आदमी के मन में समता की भावना हो, तो अहिंसा संपुष्ट हो सकती है। आदमी के भीतर अभय का भाव होना चाहिए। अभय में दोनों बाते हैं कि न किसी से डरना और न ही किसी को डराना। सहिष्णुता भी अहिंसा का आवश्यक अंग है। परिवार में कभी छोटे तो कभी बड़ों को भी सहन करते हैं तो परिवार में सौहार्द बना रह सकता है। आदमी यह प्रयास रखे कि जो व्यवहार उसे स्वयं के लिए पसंद नहीं, वह व्यवहार उसे दूसरे के साथ भी नहीं करना चाहिए। अहिंसा भगवती सभी जीवों का कल्याण करने वाली है। आदमी अपनी ओर से किसी को भी दुःख, कष्ट न पहुंचाने का प्रयास करे। अहिंसा शांति और विकास दोनों में सहायक होती है।
आचार्यश्री ने प्रसंगवश कहा कि जयपुर प्रवास के दौरान राजस्थान में मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोतजी से मुलाकात और वार्तालाप के दौरान उन्होंने कहा कि मैंने अपने राज्य में एक अहिंसा विभाग का प्रारम्भ किया है। अहिंसा की नीति तो सर्वत्र कल्याण करने वाली है। आदमी को निरंतर अहिंसा के पथ पर गतिमान रहने का प्रयास करना चाहिए।