‘‘लेखिका तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम् असाधारण साध्वी प्रमुखा हैं जो गत पचास वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने का अद्भुत कार्य कर रही हैं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन भरे मार्गदर्शन में तेरापंथ महिला समाज ने अभूतपूर्व प्रगति की है। महिला समाज अपने संस्कारों और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए विकास पथ पर अग्रसर हो इसके लिए वे अहर्निश प्रयासरत हैं।’’
माइकल एंजिलो बहुत समय से एक मूर्ति पर काम कर रहा था। मूर्ति के एक-एक अंग पर बारीकी से ध्यान देता था। पास खड़े एक व्यक्ति को कुछ अटपटा-सा लगा। उसने माइकल से प्रश्न किया तो वह बोला- ‘छोटी-छोटी बातें ही आदमी को परफैक्ट बनाती है। हो सकता है, बेहतर काम करने पर कोई तारीफ न करे पर पर बढ़िया काम करने का अहसास ही एक बड़ी उपलब्धि है।
महिला सृजन का प्रतीक है। उसकी कलात्मक अंगुलियों में नैसर्गिक सृजनशीलता है। अपने बचपन में गुड्डे-गुड्डियों का निर्माण करती है। किशोरावस्था में प्रवेश होने के बाद रसोईघर में उसकी सृजन यात्रा शुरू होती। यौवन के दहलीज पर कदम रखने के बाद अथवा शादी के बाद नए घर को सजाने-संवारने में उसका सृजन-चेतना अंगडाई लेने लगती है। बच्चों का जन्म महिला सृजन क्षमता का एक अनूठा उदाहरण है। बच्चों के पालन-पोषण और उनमें श्रेष्ठ संस्कारों के संप्रेषण में जिस सृजनशीलता की अपेक्षा रहती है, उस पर सामान्यतः महिला वर्ग का एकाधिकार है, ऐसा मानना भी संभवतः अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा।
सृजनयात्रा के विविध पड़ावों को पार करती हुई महिला एक ऐसे पड़ाव पर पहुंचती है, जहां उसके स्व का विस्तार होता है आर परिवार का स्वरूप कुछ व्यापक बन जाता है। इस भमिका पर वह एक संस्था का अंग बनकर खड़ी होती है। संस्था के संचालन एवं संस्था द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों को अंजाम देने के लिए वह अपने समय तक अपनी शक्ति का समुचित नियोजन करना चाहती है। हालांकि संस्था से जुड़ने के बाद वह काम करना सीख लेती है, फिर भी कुशल कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए उसे विशेष रूप से अपना निर्माण करना होता है।
सफल कार्यकर्ता अपने संगठन के विकास में अपना विकास देखता है। वह संगठन के संविधान एवं उसके संचालन की प्रक्रिया से परिचित रहता है। पद, प्रतिष्ठा और नाम की भूख से उपरत रहकर काम करने में विश्वास करता है। वह अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम करना जानता है। नियत समय पर अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए वह अथक परिश्रम करता है, जिसमें दृढ़ इच्छा-शक्ति के साथ काम करने का जज्बा होता है, जो अपनी योग्यता और सामथ्र्य बढ़ाने की दृष्टि से जागरूक रहता है, जो निन्दा-प्रशंसा, मान-अपमान, हीनता-अतिरिक्तता आदि द्वंद्वों में उलझे बिना निश्ंिचतता से काम करता है तथा अपनी सफलता का श्रेय अपने नेतृत्व को देना चाहता है। इस प्रकार और भी अनेक सूत्र हो सकते हैं, जिनको साधकर कार्यकर्ता अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल परम पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में नए कार्यकर्ताओं के निर्माण की दिशा में प्रस्थान करना चाहता है। आचार्य श्री महाश्रमण का मंगल आशीर्वाद और सार्थक मार्गदर्शन महिला वर्ग के सपनों को साकार करने तथा उम्मीदों को पूरा करने में आलम्बन बना रहेगा, ऐसा विश्वास है।
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के अमृत महोत्सव पर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा प्रदत आलेख।