जयपुर:गहलोत सरकार ने राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों को राहत प्रदान की है। राज्य के कार्मिक विभाग ने अहम आदेश जारी कर स्पष्ट किया है कि दत्तक ली हुई संतान तीसरी संतान के रूप में नहीं मानी जाएगी। कार्मिकों की पदोन्नति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। गहलोत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि दत्तक ली गई तीसरी संतान को भी संतान के रूप में ही गिना जाएगा। राजस्थान में पिछली वसुंधरा सरकार ने 2 से अधिक संतान होने पर सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति रोकने का प्रावधान किया था, लेकिन बाद में गहलोत सरकार ने सत्ता में आते ही दो से अधिक संतान वाले कार्मिकों को राहत देते हुए तीन वर्ष तक रोकी जाने वाली एसीपी को समाप्त कर दिया था।
राजस्थान में 1 जून 2001 के बाद अगर किसी सरकारी कर्मचारी के 2 से अधिक संतान होने पर 5 वर्ष तक प्रमोशन नहीं मिलता है। तीसरी संतान को लेकर की गई सख्ती के बाद कर्मचारियों ने बीच का रास्ता निकाल लिया था। कर्मचारी अपनी एक संतान को दत्तक के रूप में घोषित कर देते थे, ताकि मिलने वाले लाभ में किसी प्रकार की कटौती नहीं हो सके। इस तरह की शिकायतें लगातार कार्मिक विभाग के पास पहुंच रही थी। जिसके बाद गहलोत सरकार ने तीसरी संतान को लेकर स्पष्टीकरण जारी किया है। कार्मिक विभाग के अनुसार, सरकार ने 2 से अधिक संतान होने पर पदोन्नति रोकने का यह प्रावधान जनसंख्या नियंत्रण को लेकर लिया था। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी अनाथ आश्रम से या किसी भी पारिवारिक सदस्य से दत्तक संतान लेने से जनसंख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। ऐसे में उसकी संख्या कर्मचारियों की कुल संतानों की संख्या में नहीं गिना जाएगा।
राजस्थान में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने तीसरी संतान को लेकर नियम बनाया था। जिसकी पूरे देश में सराहना हुई थी। पिछली वसुंधरा सरकार के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि सरकारी कर्मचारी की तीसरी संतान होने पर उसकी 5 वर्ष तक पदोन्नति रोकने के मामले में सरकार गंभीर है। कटारिया ने शून्यकाल में विधायक माणिकचंद सुराणा के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जबाव में कहा कि यदि कोई अच्छा कदम है तो उसे बदला नहीं जा सकता। राज्य सरकार कर्मचारियों के हित में है और कर्मचारियों का बुरा करना नहीं चाहती है।