- गुलाबी नगरी जयपुर बनी धर्मनगरी, जयपुर का पग-पग ज्योतिचरणों से होगा पावन
- दस कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे बरड़िया विला
- छह महीने बाद मुनि वर्धमानकुमारजी ने किए आचार्यश्री के दर्शन, व्यक्त किए हृदयोद्गार
- उल्लसित बरड़िया परिवार ने पूज्यचरणों दी श्रद्धाभिव्यक्ति
24.12.2021, शुक्रवार, जयपुर (राजस्थान)। गुलाबी नगरी के नाम से सुप्रसिद्ध जयपुर वर्तमान समय में धर्मनगरी बन गई है। अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी शांतिदूत, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरणों का स्पर्श पाकर राजस्थान की राजधानी ज्योतित हो रही है। आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में जयपुर का जन-जन गोते लगा अपने जीवन को संवारने में जुट गया है। जयपुर के विभिन्न उपनगरों में विहरण सहित कुल ग्यारह द्विवसीय प्रवास के लिए जयपुर की सीमा में गुरुवार को पावन प्रवेश करने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को पदमपुरा से प्रातः की मंगल बेला में जयपुर शहर में स्थित बरड़िया विला की गतिमान हुए तो सैंकड़ों श्रद्धालुजन अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए निकल पड़े। मार्ग में जन-जन को अपने आशीष और मंगलपाठ से लाभान्वित करते आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग दस किलोमीटर का विहार कर अपनी अहिंसा यात्रा के साथ बरड़िया विला में पधारे। इस परिसर से जुड़े परिवार के लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण अभिनन्दन किया।
इस परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन में आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने अभिप्रेरित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी को स्वयं की आत्मा से लड़ने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं से लड़कर सुख की प्राप्ति हो सकती है। दुनिया में कई एक बार दूसरे से लड़ने की स्थिति बन जाती है। कई बार एक देश दूसरे देश के प्रति वैर भाव साधकर लड़ाई को तत्पर हो जाता है अथवा लड़ाई कर भी लेता है। कुछ समय के बाद आपसी समझौता भी हो जाता होगा। यह तो सामान्य बात होती है, किन्तु स्वयं के साथ लड़कर अपनी आत्मा को शुद्ध बनाने का प्रयास करने वाला सुखी हो सकता है। स्वयं से लड़ने का अर्थ है अपने भीतर स्थित अशुभ आत्मा, कषाय से युक्त आत्मा से आदमी को लड़ने का प्रयास करना चाहिए। इस लड़ाई में आदमी की शुभ आत्मा, चारित्र आत्मा आदि सहयोग प्रदान कर सकती हैं। आदमी को अपने कषायों को कम अथवा उसे नष्ट करने और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने प्रसंगवश कहा कि तेरापंथ के नवमें गुरु परम पूज्य आचार्य तुलसी आज के ही दिन 12 वर्ष की अल्पायु में आचार्य कालूगणी से दीक्षित हुए। मुनि तुलसी कम उम्र में ही शिक्षक बन गए और लगभग 22 वर्ष की अवस्था प्राप्त करने के साथ ही वे तेरापंथ धर्मसंघ के अधिनेता भी बन गए। वे लम्बे समय तक आचार्य पद पर रहे। इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं। आचार्यश्री ने बरड़िया परिवार को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि परिवार में धर्म के अच्छे संस्कार बने रहें।
मंगल प्रवचन के उपरान्त पेटलावद में चतुर्मास सम्पन्न कर गुरुदेव के दर्शन कर अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने मुनि वर्धमानकुमारजी व मुनि राहुलकुमारजी को पावन आशीष प्रदान किया। अपने आराध्य के अपने स्थान में पाकर आह्लादित बरड़िया परिवार के श्री राजेन्द्र बरड़िया, श्री निमर्ल बरड़िया, श्री राजकुमार बरड़िया ने अपने उल्लसित भावों को अभिव्यक्ति दी। श्रीमती खुशबू जैन ने गीत का संगान किया।