- शिव की नगरी शिवाड़ में पड़े पूज्य ज्योतिचरण
- 13 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे घुश्मेश्वर विश्रान्ति निलयम
- श्रद्धासिक्त श्रद्धालुओं ने किया भव्य स्वागत, सहर्ष स्वीकार की संकल्पत्रयी
18.12.2021, शनिवार, शिवाड़, सवाई माधोपुर (राजस्थान)। जन-जन के मानस को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के माध्यम से पावन बनाने वाले अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ सवाई माधोपुर जिले में स्थित शिव की नगरी शिवाड़ में पधारे तो शिवाड़वासियों ने अहिंसा यात्रा प्रणेता का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री शिवाड़वासियों पर कृपा बरसाते हुए नगर के मध्य से पधारते हुए लोगों पर आशीषवृष्टि की तो लोग निहाल हो उठे। बैंडबाजा और स्वागत जुलूस के साथ नगर में स्थित श्री घुश्मेवर ज्योतिर्लिंग ट्रस्ट द्वारा निर्मित घुश्मेश्वर विश्रान्ति निलयम में पधारे।
इसके पूर्व शनिवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री ने धवल सेना के साथ डिडायच से मंगल प्रस्थान किया। ठंड से हाथ-पैर मानों सुन्न हो रहे थे, लेकिन जनकल्याण के लिए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल रश्मियों के साथ गतिमान हो चुके थे। सूर्य की रश्मियां भी धीरे-धीरे धरती का स्पर्श तो कर रही थीं, किन्तु वे ठंड को कम करने के लिए अपर्याप्त थीं। मार्ग के दोनों ओर खेतों में सरसों के फसल के पीले फूलों ने तो मानों धरती को पीले रंग का आवरण चढ़ा रखा था। मार्ग के विभिन्न गांव के श्रद्धालुओं को दर्शन और आशीष से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री के कदम निरंतर गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। इस क्षेत्र में ग्रामीण लोगों की आस्था देखते ही बन रही है। जगह-जगह आचार्यश्री के दर्शनार्थ काफी संख्या में लोग उपस्थित हो रहे हैं, जिन्हें आचार्यश्री से पावन प्रेरणा भी प्राप्त हो रही है। आज भी मार्ग में कई लोग आचार्यश्री को अर्पित करने के लिए विभिन्न सामग्री के साथ उपस्थित हुए। आचार्यश्री ने सभी की भावनाओं को स्वीकार करते और सभी को मंगल आशीष प्रदान करते हुए शिवाड़ में पधारे।
घुश्मेश्वर विश्रान्ति निलयम में आयोजित मुख्य प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि प्रवृत्ति के तीन साधन होते हैं – शरीर, वाणी और मन। चेतना को राजा अथवा मुखिया मान लिया जाए तो ये तीनों उसके कर्मचारी होते हैं। शरीर से आदमी कोई काम करता है। किसी की सेवा करता है, यात्रा आदि कोई भी कार्य करता है। वाणी के माध्यम से आदमी किसी को ज्ञान प्रदान कर सकता है, भजन कर सकता है, किसी को कष्ट भी पहुंचा सकता है। मन मानों गुप्त कर्मचारी की भांति होता है। किसके मन में क्या चल रहा है, यह जानकारी स्पष्ट नहीं हो पाती। हालांकि अंदाज से कुछ जानकारी तो प्राप्त की जा सकती है, किन्तु स्पष्ट जान पाना मुश्किल है। मन दुर्मन और सुमन दोनों हो सकता है। अच्छे विचार करने वाला मन सुमन तो बुरे विचार वाला मन दुर्मन होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि चिन्तन की स्वस्थता चित्त को प्रसन्नता प्रदान करने वाली होती है। आदमी को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में सम रहने का प्रयास करना चाहिए। अभाव को देखकर दुःखी नहीं, बल्कि जो प्राप्त है, उसे देख प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने चिन्तन को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिए। सुख-दुःख, हानि-लाभ, जन्म-मृत्यु में समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। चिन्तन से ही आदमी सुखी और चिन्तन से ही आदमी दुःखी बनता है। आदमी का चिन्तन प्रशस्त और सकारात्मक हो तो चित्त को प्रसन्नता प्राप्त हो सकती है।
आचार्यश्री ने शिवाड़ आगमन के संदर्भ में कहा कि आज शिव की नगरी शिवाड़ में आना हुआ है। शिव का अर्थ कल्याण होता है। तो यहां की जनता में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना का विकास हो तो यहां की जनता का भी कल्याण हो सकता है। आचार्यश्री की प्रेरणा से अभिप्रेरित होकर उपस्थित लोगों ने अहिंसा यात्रा क तीनों संकल्पों को सहर्ष स्वीकार किया। आचार्यश्री के स्वागत में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के अध्यक्ष श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने कहा कि शिव की नगरी में आज जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे हैं। हमारा सौभाग्य जो आपश्री के दर्शन और प्रवचन श्रवण का लाभ मिला। आपके इस यात्रा का संदेश विश्व का कल्याण कर रही है। इसके अलावा स्थानीय सकल जैन समाज के अध्यक्ष श्री दिनेश जैन, ट्रस्टी श्री दुर्गाशंकर पारिक, वरिष्ठ पत्रकार श्री शंभूदयाल मिश्रा व श्री संदीप जैन ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।