- आचार्यश्री ने ज्ञान की नगरी कोटा में ज्ञानार्जन के साथ भावात्मक शुद्धि बढ़ाने का दिया मंत्र
- कई शिक्षण संस्थानों के प्रमुख व हजारों विद्यार्थियों को मिला ज्ञान
- खनन व गोपालन मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया ने भी किए आचार्यश्री के दर्शन
- समुपस्थित विद्यार्थियों ने श्रीमुख से संकल्पत्रयी संग कभी आत्महत्या न करने का भी किया संकल्प
03.12.2021, शुक्रवार, कोटा (राजस्थान)। स्वाध्याय गरिमापूर्ण शब्द है। स्वाध्याय शब्द का अर्थ होता है स्व+अध्याय। जिसके माध्यम से स्वयं का अध्ययन किया जा सके, स्वयं का ज्ञान हो जाए वह स्वाध्याय है। जैसे किसी महापुरुष की जीवनगाथा पढ़ने के उपरान्त आदमी यह सोचे कि क्या मेरे भीतर भी ऐसे गुण हैं? नहीं हैं तो वैसे गुणों का विकास कर स्वयं का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। उन जैसे महापुरुष न भी बन सकें तो कुछ तो उस दिशा में गति की जा सकती है। ध्यान से पढ़ना और उसे मनन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय में पहली बाधा आलस्य है और दूसरी बाधा नींद है। आलस्य तो आदमी के शरीर में रहने वाला महान शत्रु है और परिश्रम के समान आदमी को कोई मित्र, बंधु नहीं है। इसलिए विद्यार्थियों को निरंतर स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। आलस्य को छोड़ और निद्रा को बहुमान देने से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के साथ-साथ भावात्मक शुद्धता भी और फिर अच्छा आचरण हो जाए तो परिपूर्णता की बात हो सकती है। इसलिए विद्यार्थियों को ज्ञानार्जन में निरंतर श्रम करने और भावात्मक विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
उक्त ज्ञानार्जन की बातें जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, आध्यात्मिक ज्ञान के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कोटा के जैन श्वेताम्बर दादाबाड़ी (दानबाड़ी) में शुक्रवार को विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों व उनके संचालकों को बताईं। शुक्रवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान ज्ञान की नगरी कोटा के अनेक शैक्षिक संस्थानों के हजारों विद्यार्थी पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने क्रोध को काबू में रखने को प्रेरित किया। तत्पश्चात आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ भावात्मक विकास की प्रेरणा प्रदान करते हुए उन्हें अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो विद्यार्थियों व शिक्षण संस्थाओं से जुड़े शिक्षकों, संचालकों आदि ने सहर्ष संकल्पत्रयी को स्वीकार किया। शिक्षण संस्थानों के संचालकों द्वारा काष्ठ से निर्मित कॉपी व पेन्सिल आदि ज्ञानार्जन से संबंधित उपहार श्रीचरणों में समर्पित किए तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए उन्हें अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी के साथ-साथ कभी भी आत्महत्या न करने का भी संकल्प कराया।
आज चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्यश्री ने हाजरी पत्र का वाचन करते हुए इसके महत्त्व को व्याख्यायित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री की आज्ञा ने मुनिकुमारश्रमणजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया तो आचार्यश्री ने उन्हें 51 कल्याणक बक्शीश किए। समुपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। अहिंसा यात्रा प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी ने विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा की विस्तारित जानकारी दी।
आचार्यश्री के दर्शन को उपस्थित राजस्थान सरकार के खनन व गोपाल विभाग के मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया ने आचार्यश्री के दर्शन व मंगल प्रवचन श्रवण के पश्चात अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं आपश्री के दर्शन कर धन्यता का अनुभव कर रहा हूं। आज आपकी दी हुई शिक्षा इस शिक्षा नगरी को नया आलोक दे रही है। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद हम सभी को निरंतर मिलता रहे। तत्पश्चात ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कन्या मण्डल द्वारा गीत का संगान किया गया। टीपीएफ के अध्यक्ष श्री अखिलेश कांठेड़, श्री अरविन्द चौपड़ा, व श्री गोविन्द माहेश्वरी आदि ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। एलिन कैरियर, कैरियर प्वाइंट, बंसल क्लासेज, मोशन एजुकेशन, वाईब्रेंट अकादमी, नुक्लियस एजुकेशन व आकाश इंस्टिट्यूट के विद्यार्थी पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। शिक्षा नगरी कोटा में समुपस्थित विद्यार्थियों को आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि मननकुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी व मुनि कमलकुमारजी द्वारा प्रेक्षाध्यान आदि के प्रयोग गए। इस दौरान विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया।
कार्यक्रम के उपरान्त सायं साढ़े तीन बजे आचार्यश्री ने दादाबाड़ी से सान्ध्यकालीन विहार किया। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री कोटा नगर में लगभग पांच किलोमीटर का विहार गुलाबबाड़ी स्थित अणुव्रत भवन में पधारे। जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।