- लगभग 18 कि.मी. का किया प्रलम्ब विहार, शान्तिदूत के ज्योतिचरण से पावन हुआ काटून्दा
- विद्यार्थियों में विनयशीलता का हो विकास: आचार्य महाश्रमण
- मुनि दर्शनकुमारजी व साध्वी चन्द्रिकाश्रीजी की स्मृति सभा का हुआ आयोजन
24.11.2021, बुधवार, काटून्दा, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)। भीलवाड़ा जिले में ऐतिहासिक चतुर्मास की सम्पन्नता और लगभग पांच दिनों के विहार पश्चात् अखण्ड परिव्राजक, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरणों ने भीलवाड़ा जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर चित्तौड़गढ़ जिले में सीमा में पड़े तो यह वीरभूमि ज्योतिचरणों स्पर्श पाकर प्रफुल्लित हो उठी। बुधवार को प्रातः आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बरुन्दनी से प्रस्थित हुए। रास्ते में आने वाले कई गांवों के लोगों को अपने मंगल आशीष से आच्छादित करते हुए हाइवे नम्बर 27 पर पधारे। कुछ समय पश्चात ही महीनों से आचार्यश्री के ज्योतिचरण से पावन स्पर्श और मंगलवाणी का लाभ उठाने वाला भीलवाड़ा जिला पीछे छूट गया। आचार्यश्री की अहिंसा यात्रा अब चित्तौड़गढ की सीमा में गतिमान हो चली। लगभग अठारह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर महातपस्वी महाश्रमणजी दोपहर लगभग साढ़े बारह बजे कोटून्दा गांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में पधारे। जहां गांववासियों व विद्यालय परिवार द्वारा ढोल-नगाड़े के साथ हार्दिक अभिनन्दन किया गया।
विद्यालय परिसर में आयोजित प्रातः के मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि विद्यार्थियों में विनय का विकास होना चाहिए। जो आदमी विनयशील, अभिवादनशील और वृद्धों की सेवा करने वाला होता है, उसकी आयु, विद्या, बल और यश में वृद्धि हो सकती है। विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ-साथ विनय का भाव भी पुष्ट हो तो महत्त्वपूर्ण बात हो सकती है। विनय का भाव पुष्ट रहे और मन किसी भी प्रकार के अहंकार से मुक्त रहे तो मानव जीवन का समुचित विकास संभव हो सकता है।
आचार्यश्री ने उपस्थित शिक्षकों, विद्यार्थियों व ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की जानकारी देते हुए तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो सभी ने सहर्ष खड़े होकर आचार्यश्री के श्रीमुख से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री राजेश कुमार ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
तदुपरान्त गत दिनों जयपुर में प्रवासित साध्वी चन्द्रिकाश्रीजी व भीलवाड़ा में प्रवासरत मुनि दर्शनकुमारजी के प्रयाण के संदर्भ में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में स्मृति सभा भी आयोजित हुई। जिसमें आचार्यश्री ने दोनों चारित्रात्माओं का परिचय देते हुए उनके आत्मा के प्रति मध्यस्थ भाव के साथ आगे की गति की मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स का ध्यान करवाया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी, साध्वी मुदितयशाजी, साध्वी ऋद्धिप्रभाजी, मुनि योगेशकुमारजी, मुनि कीर्तिकुमारजी, मुनि ऋषभकुमारजी व मुनि कोमलकुमारजी ने भी दोनों चारित्रात्माओं के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की।