जम्मू: रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारतीय सेना देश की हर एक इंच जमीन की रक्षा करने में सक्षम है। अगर किसी देश ने भारत की ओर आंख उठाकर भी देखा तो उसे मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।
रक्षामंत्री ने वीरवार को पूर्वी लद्दाख के चुशुल में चीन के सामने वीरवार को रेजांग ला बैटल डे पर चुशुल में नए रेजांग ला वार मेमोरियल का उद्घघाटन किया। रेजांग ला के वीरों को श्रद्धांजलि देने के बाद रक्षामंत्री ने कहा कि भारत ने कभी किसी देश की जमीन पर कब्जा करने की नीयत कभी नही रखी। लेकिन अगर किसी ने देश की एकता, अखंडता को चुनौती दी तो इसका कड़ा जवाब मिलेगा। रक्षामंत्री के साथ इस मौके पर चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत व सेना की उत्तरी कमान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे।
रेजांगला में 18 नवंबर को 13 कुमाउं रेजीमेंट के 120 जवानों ने परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की कमान में करीब छह हजार चीनी सैनिकों से लोहा लेकर उन्हें नाकों चने चबा दिए थे। अंतिम सांस, अंतिम गोली तक लड़े भारतीय सेना के 114 वीरों ने शहादत देने से पहले दुश्मन के 7 हमले नाकाम करते हुए उसके 1300 सैनिक मार गिराए थे। सेना के 20 वीर ऐसे थे जो गोली, बारूद खत्म हाेने के बाद खाली हाथ बंदूक पर लगे चाकू के साथ दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
ऐसे में चुशुल पहुंचे रक्षामंत्री ने रेजांग ला के वीरों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि 1962 की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को समर्पित नया युद्ध स्मारक सेना के दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस की मिसाल है। यह केवल इतिहास के पन्नो में ही अमर नहीं है, बल्कि हमारे दिलों में भी धड़कता है। चार्ली कंपनी की बहादुरी नई पीढ़ी में देश के प्रति असाधारण वीरता दिखाने का जज्बा पैदा करेगी।
रक्षामंत्री ने कहा कि रेजांग ला का ऐतिहासिक युद्ध 18,000 फीट की ऊँचाई पर जिन विषम परिस्थितियों में लड़ा गया उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। मेज़र शैतान सिंह व उनके साथी सैनिक ‘आखिरी गोली और आखिरी साँस’ तक लड़े। उन्हाेंने बहादुरी और बलिदान का नया अध्याय लिखा। रेजांग ला पहुंचकर मैने उन 114 बहादुर सैनिकों की स्मृतियों को नमन किया जिन्होंने लद्दाख़ की दुर्गम पहाड़ियों 1962 की लड़ाई में सर्वोच्च बलिदान दिया था। रक्षामंत्री ने कहा कि रेज़ांग ला का युद्ध, विश्व की दस सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण सैन्य संघर्षों में से एक है।
रक्षामंत्री रेजांग ला वार मेमोरियल का उद् घाटन करने के लिए वीरवार सुबह लेह पहुंचे थे। चुशुल में रेजांग ला के वीरों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद रक्षामंत्री ने युद्घ में हिस्सा लेने वाले कई वीराें के परिजनों से भेंट कर उनका हौंसला बढ़ाया। इससे पहले रक्षामंत्री 59 साल पहले लड़े गए युद्ध के नायक सेवानिवृत ब्रिगेडियर आरवी जतर को खुद व्हील चेयर से उस वार मेमोरियल तक ले गए जिस पर उनके साथ लड़े साथियों के नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखे थे।
शहीदों के परिजनों से बातचीत में रक्षामंत्री ने कहा कि हम सशस्त्र सैनाओं, सैन्य परिवारों के कल्याण को समर्पित हैं। रक्षामंत्री ने नए वार मेमोरियल में युद्ध की यादों को ताजा करने के लिए बनाए गए म्यूजियम व अन्य हिस्सों का भी निरीक्षण किया। उनके साथ इस मौके पर रक्षामंत्री के साथ इस मौके पर लद्दाख के उपराज्यपाल आरके माथुर, सांसद जामयांग सेरिंग नाम्गयाल, चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उपथलसेना अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल सीपी मोहंती, उत्तरी कमान के आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी भी मौजूद थे।
रक्षामंत्री ने वीरवार शाम को दिल्ली लौटने से पहले चुशुल में चीन के सामने मोर्चा संभालने वाले सेना के फील्ड कमांडरों से बातचीत कर माैजूदा सुरक्षा परिदृश्य के बारे में जानकारी ली। इस दौरान उन्होंने सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा करने के साथ किसी भी प्रकार के हालात का सामना करने के लिए सेना द्वारा की गई आपरेशनल तैयारियां भी जानी।