- कर्मवाद को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित, पाप कर्मों से बचने को किया अभिप्रेरित
- 5वां राष्ट्रीय डॉक्टर्स सम्मेलन पूज्य सन्निधि में समायोजित
11.11.2021, गुरुवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। इस संसार में प्राणी अपने-अपने कर्मों से दुःखी बनते हैं। इस संसार में 84 लाख जीव योनियां बताई हैं। जितने प्रकार के जीव उतने प्रकार के उनके कर्म भी होते हैं। प्राणियों में भिन्नता है तो उनके कर्मों में भी भिन्नता है। इसलिए हर प्राणी का अपना कर्म है, जिसके आधार पर वे कभी सुख तो कभी दुःख को प्राप्त करते हैं। सबका अपना-अपना पुण्य-पाप होता है। प्राणी स्वयं अपने कार्यों के द्वारा अपने कर्म का बंधन करता है। प्राणी ने जो कर्म किया है, उसका फल भी उसे भोगना होगा। जो कर्म जिस प्राणी को बंधे हैं, उसका फल उसी प्राणी को भोगना होता है। आदमी के जीवन में जब दुःख आता है तो उसके दुःख को उसके स्वजन, मित्र, भाई, बन्धु दूसरा कोई बांट नहीं सकता, उसे वह दुःख स्वयं ही भोगना होता है। आदमी अकेले अपने कर्मों का फल भोगता है क्योंकि कर्म अपने कर्ता का अनुगमन करता है। उपरोक्त मंगल उद्बोधन अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ से धर्मसभा को प्रदान किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि मनुष्य जाति में देखें तो कोई बहुत ज्ञानी है, विद्वान है तो कोई अज्ञानी और मूर्ख भी दिखाई देते हैं। शारीरिक दृष्टि से कोई मजबूत, स्वस्थ, शक्तिशाली तो कोई निर्बल-सा दिखाई देता है। कोई स्वभाव से शांत, उपशांत, मधुरभाषी, प्रतनु कषाय वाला तो कोई बहुत जल्दी गुस्सा करने वाला, अशांत, कठोर बोलने वाला भी होता है। आयुष्य की दृष्टि से भी देखें तो कोई बहुत लम्बे आयुष्य वाला जो दसवें, ग्यारहवें दशक तक भी चला जाए और कोई अल्पायु में ही कालधर्म को प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार आदमी अपने-अपने कर्मों के अनुसार अपना-अपना फल भोगता है और सुख और दुःख को प्राप्त होता है। आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। संवर के साथ निर्जरा हो तो मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है। इस प्रकार आदमी को पाप कर्मों से बचाव कर मुक्ति के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त पूज्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा पांचवें राष्ट्रीय डॉक्टर्स सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें डॉक्टर अनील भण्डारी, डॉक्टर चेतन सामरा व डॉक्टर रणजीत ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने समुपस्थित डॉक्टरों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने का आशीर्वाद प्रदान किया। श्रीमती पिस्ता झाबक ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट डिम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी के कुलपति श्री बच्छराज दूगड़ व समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने यूनिवर्सिटी के लोगों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि यह शिक्षण संस्थान आध्यात्मिक, धार्मिक और शैक्षिक कार्य में प्रगति करता रहे, मंगलकामना।