नई दिल्ली:पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाया जा सकता, इस पर केरल हाईकोर्ट ने जीएसटी काउंसिल से जवाब मांगा है। केरल हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद को पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में शामिल नहीं करने के कारणों को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने पूछा कि पेट्रोलियम पदार्थ जीएसटी के तहत क्यों नहीं आ सकते। मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार की अगुवाई वाली पीठ ने केरल प्रदेश गांधी दर्शनवादी नामक संगठन द्वारा दायर एक रिट याचिका पर यह निर्देश दिया। इस याचिका में जीएसटी परिषद के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें जीएसटी के तहत पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल नहीं करने का फैसला लिया गया है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि जीएसटी परिषद की बैठक में हाल ही में निर्णय लिया गया था कि इस स्तर पर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत शामिल करना उचित नहीं है। बता दें कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के तहत लाने की मांग पर विचार करने के लिए परिषद की बैठक हुई थी। मगर परिषद ने इसे शामिल करने से इनकार कर दिया था।
द हिन्दू की मुताबिक, मामले की सुनवाई के दौरान संगठन की तरफ से पेश हुए वकील अरुण बी. वर्गीज ने दलील दी कि जीएसटी काउंसिल ने याचिकाकर्ता के अनुरोध को खारिज करने के लिए कोई उचित कारण नहीं बताया था। परिषद ने इस पर मंथन ही नहीं किया। मौजूदा स्थिथि इस संबंध में निर्णय लेने के लिए पर्याप्त परिपक्व थी क्योंकि पेट्रोल और डीजल की कीमत दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी और इसका अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा था। वास्तव में जो लोग पेट्रोल और डीजल का उपयोग भी नहीं करते थे, वे भी तेल के मूल्य वृद्धि से समान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
याचिकाकर्ता के मुताबिक, देश के विभिन्न राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए कर की अलग-अलग दरों के कारण पेट्रोल और डीजल के लिए अलग-अलग कीमतें वसूल की जा रही थीं। वास्तव में, यह संविधान के अनुच्छेद 279ए (6) के तहत विचार के अनुसार सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीय बाजार को प्राप्त करने में एक बाधा थी। इसमें कहा गया है कि एक लीटर पेट्रोल या डीजल की कीमत में राज्य और केंद्रीय करों का कम से कम 60 फीसदी हिस्सा होता है।