जालना। तेरापंथ धर्मसंघ के दशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी प्रज्ञा के अवतार थे। उनकी प्रज्ञा के जागरण में महती भूमिका थी उनकी गुरु के प्रति अनन्य समर्पण की भावना। वे निष्काम भाव से सदैव गुरु के प्रति समर्पित रहे। फलत: एक के बाद एक उपलब्धियों से उनका जीवन अभिमंत्रित होता रहा। गुरुदेव तुलसी के निर्देश से उन्होंने जिस ध्यान पध्दति का अनुसंधान किया उसे प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से पहचान प्राप्त हुई।
ध्यान का अभ्यास हर किसी के लिए सहज नहीं है। पर ध्यान कि उपसंपदा के सूत्र का जो अभ्यास करता है उसके लिए वह सहज हो जाता है ।आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने उपसंपदा के पांच सूत्र दिए ।भावक्रिया ,प्रतिक्रियाविरति, मैत्री, मिताहार मितभाषण ये ऐसे बिन्दू हैं जो ध्यान के योग्य भूमि का निर्माण करते हैं। समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्या साध्वी निर्वाणश्रीजी ने यह उद्गार व्यक्त किए।
प्रखरवक्ता साध्वी योगक्षेमप्रभा जी ने कहा मैं अपना सौभाग्य मानती हूं कि मुझे आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के चरणों में बैठकर कुछ ज्ञान, कुछ ध्यान करने का अवसर मिला। आचार्य महाप्रज्ञ जी ऐसे सरस्वती पुत्र थे जिनके वाणी और कर्म से अहर्निश करूणा का निर्झर बहता रहता था। प्रेक्षाध्यान उस निर्झर की एक अमल धारा है। उसका अभ्यास करने के लिए हम सर्वप्रथमअपने चित्त को श्वास पर केंद्रित करें ।श्वास को साधते — साधते हम अपने मन को साधने में सफल हो जाते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ उपासिका स्वरूपा पीपाड़ा एवं उर्मिला पीपाड़ा द्वारा समुच्चारित महाप्रज्ञ अष्टकम से हुआ। साध्वीलावण्यप्रभाजी ,साध्वी कुंदनयशाजी, साध्वी मुदितप्रभाजी, साध्वी श्रेयसप्रभाजी एवं साध्वी मधुरप्रभाजी ने समवेत रूप से अभ्यर्थना गीत समर्पित किया ।प्रेक्षा फाउंडेशन के सदस्य पवन जी सेठिया ने अपने भावों की प्रासंगिक अभिव्यक्ति देते हुए प्रणति समर्पित की ।कुछ समय के लिए “ओम ह्रीं श्रीं महाप्रज्ञ गुरुवे नमः इस मंत्र पद का सस्वर संगान पाठ किया गया ।साध्वी श्री ने ‘अर्हं ‘ के न्यास का प्रयोग करवाया। यह प्रयोग सभी श्रोताओं को अत्यंत रुचिकर लगा ।विगय के प्रत्याख्यान के साथ तप का प्रयोग भी किया। अनेक भाई– बहिनों ने प्रतिदिन प्रेक्षा ध्यान का अभ्यास करने का संकल्प व्यक्त किया ।ज्ञातव्य है कि यह समारोह प्रेक्षाफाउंडेशन के तत्त्वावधान में परिसंपन्न हुआ।
जालना में हर्षोल्लास से मनाया आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी का द्वितीय चरण
Leave a comment
Leave a comment