पुणे:भीमा- कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी दक्षिणपंथी नेता मिलिंद एकबोटे शुक्रवार को यहां जांच आयोग के समक्ष पेश हुए, लेकिन गवाही देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जय नारायण पटेल के नेतृत्व वाला आयोग पुणे जिले में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास एक जनवरी 2018 को हुई जातिगत हिंसा के मामले में जांच कर रहा है।
एकबोटे के आवेदन के बाद आयोग ने उन्हें गवाह के रूप में मुक्त कर दिया। आवेदन में एकबोटे ने कहा कि पुलिस जांच अभी पूरी होनी है और आरोपपत्र दायर नहीं हुआ है, इसलिए वह गवाही नहीं देना चाहेंगे। उन्होंने दावा किया कि उन्हें ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने और उनके राष्ट्रवादी विचारों की वजह से निशाना बनाया गया। आयोग के वकील आशीष सतपुते ने कहा कि एकबोटे का आवेदन पढ़ने के बाद आयोग ने उन्हें गवाह के रूप में मुक्त कर दिया।
बता दें कि एक जनवरी 2018 को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर एक समारोह आयोजित किया गया था, जहां हिंसा होने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इतिहास में जाएं तो भीमा-कोरेगांव लड़ाई जनवरी 1818 को पुणे के पास हुई थी। ये लड़ाई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवाओं की फौज के बीच हुई थी। इस लड़ाई में अंग्रेज़ों की तरफ से महार जाति के लोगों ने लड़ाई की थी और इन्हीं लोगों की वजह से अंग्रेज़ों की सेना ने पेशवाओं को हरा दिया था। महार जाति के लोग इस युद्ध को अपनी जीत और स्वाभिमान के तौर पर देखते हैं और इस जीत का जश्न हर साल मनाते हैं।
जनवरी में भीमा-कोरेगांव में भी लड़ाई की 200वीं सालगिरह को शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया। इस दिन लोग यह दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए। भीम कोरेगांव के विजय स्तंभ में शांतिप्रूवक कार्यक्रम चल रहा था। अचानक भीमा-कोरेगांव में विजय स्तंभ पर जाने वाली गाड़ियों पर किसी ने हमला बोल दिया।
इसी घटना के बाद दलित संगठनों ने 2 दिनों तक मुंबई समेत नासिक, पुणे, ठाणे, अहमदनगर, औरंगाबाद, सोलापुर सहित अन्य इलाकों में बंद बुलाया जिसके दौरान फिर से तोड़-फोड़ और आगजनी हुई। इसके बाद पुणे के ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस रवीन्द्र कदम ने भीमा-कोरेगांव में दंगा भड़काने के आरोप में विश्राम बाग पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया और पांच लोगों को गिरफ्तार किया।