केंद्र सरकार अपना दूसरा बड़ा वित्तीय दांव खेल रही है। पहला दांव था, बिक्री कर से उपभोग कर पर आना, हालांकि यह बदलाव राजस्व लक्ष्य को पूरा करने में नाकाम रहा है। जो सरकार दो महीने पहले हर चीज पर कर लगाने में लगी थी, उसने अचानक से तरीका बदल लिया है और कंपनियों के नुकसान की भरपाई करने लगी है। क्या इससे विकास की तेज रफ्तार बहाल हो जाएगी और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि को गति मिलेगी? ऐसा किस कीमत पर होगा? एक अन्य अहम सवाल भी है, जिसका जवाब वैश्विक स्तर पर प्रतिध्वनित होगा, क्या कर में कटौती की भरपाई ऋण लेने की बजाय नए नोट छापकर होने जा रही है? दूसरे शब्दों में कहें, तो क्या यह ‘हेलीकॉप्टर मनी’ है?
जहां सरकार के कॉरपोरेट मुनाफे को 34.9 प्रतिशत से 25.2 प्रतिशत पर ले जाने से शेयर बाजार को बल मिला है, वहीं बॉन्ड मार्केट में राजकोषीय मुनाफाखोरी के बारे में नए संदेह पैदा हुए हैं। कर कटौतियों का आभार, अब ज्यादातर भारतीय कंपनियां अपने कर को 30 प्रतिशत से नीचे रख सकेंगी। ताजा कर कटौती से तो शेयर सूचकांक में भी पांच से छह प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। लगता है, बैंक और वित्तीय संस्थाएं ही कमाई की पूरी फसल काट सकेंगी। इन संस्थाओं को ऊंचे शेयर भाव की जरूरत है, ताकि वे ज्यादा पूंजी की उगाही कर सकें, अपने ऋण खाते को बढ़ा सकें, अपने खराब कर्ज की समस्या दूर कर सकें।
गैर-वित्तीय क्षेत्रों की प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है। भारत की जीडीपी वृद्धि छह साल के निचले स्तर पांच प्रतिशत पर है। ऑटो और स्टील कंपनियां कम कर दरों के पूरे लाभ को अपनी झोली में डालने की बजाय कीमतों में कटौती का विकल्प चुन सकती हैं। शुक्रवार को घोषित पैकेज ने नई विनिर्माण कंपनियों के लिए मात्र 17 प्रतिशत लाभ कर दर की पेशकश की है। यह दर हांगकांग और सिंगापुर से भी बेहतर है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मौका मिलता है कि वह ‘हाउडी मोदी’ जैसे कार्यक्रमों में भारत में कम कर दर का गुणगान कर सकें। कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो क्षेत्र में निवेश के मोर्चे पर चीन के विकल्प के रूप में भारत को पेश कर सकें। हालांकि बड़े फायदे के लिए वैश्विक मांग में बढ़ोतरी और भारत में व्यवसाय करने में सहूलियत बढ़ना जरूरी है। लेकिन तब तक कर कटौती की भरपाई कैसे होगी? शायद नोट प्रिंटिंग प्रेस से।
रिजर्व बैंक ने विगत 18 महीनों में न केवल 3.5 ट्रिलियन रुपये के सरकारी बॉन्ड की खरीद की है, और भारत सरकार को 1.76 ट्रिलियन रुपये का लाभांश भी दिया है। केंद्र सरकार को जो धन रिजर्व बैंक ने दिया है, लगभग उतने की ही कर कटौती सरकार ने कंपनियों के लिए कर दी है। यह पूछना तार्किक होगा कि क्या भारत की विकास रणनीति पैसा पैदा करके कर कटौती में लगा देने की है? पूर्व बैंकर और प्रोफेसर अनंथ नारायण ने कहा है, अगर बड़ी मुद्राओं के मुकाबले रुपया पांच प्रतिशत कमजोर हो जाता है, तो भारतीय रिजर्व बैंक से केंद्र सरकार को और 2.5 ट्रिलियन रुपये मिल सकते हैं। कर कटौती से पहले नारायण ने लिखा था, भारत मुद्रा छापने और खर्च करने के चक्र के बीच है। ऐसी वित्तपोषित कर रियायत से केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता पर मार पड़ रही है और वह केंद्र सरकार के जूनियर पार्टनर के रूप में बदल रहा है। ‘हेलीकॉप्टर मनी’ तो अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतिम विकल्प है, जब औसत ब्याज दर बिल्कुल नीचे चली जाती है। मुद्रास्फीति 3.2 प्रतिशत के लक्ष्य से भी कम है, जिसके कारण वास्तविक ब्याज दरें काफी ऊपर हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए राजकोषीय गुंजाइश सीमित है, इसके बावजूद शानदार कर कटौती की घोषणा करके भारत सरकार ने एकतरफा रूप से ‘हेलीकॉप्टर’ भेजा है। इसे जारी रखना अब भारतीय रिजर्व बैंक का काम बन जाएगा। यदि यह जुआ कामयाब हो गया, तो संभव है, देश को मुद्रास्फीति में गिरावट और कमजोर रुपये का सामना करना पड़े। यदि यह प्रयास विकास की रफ्तार बहाल करने में विफल रहा, तो एक फ्लैट कर के साथ कॉरपोरेट लाभ और व्यक्तिगत आय पर शिकंजा कसने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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