नई दिल्ली:केंद्र सरकार चुनावी वर्ष में लेखानुदान पेश करने की बजाय 2019-20 का पूर्ण बजट लाने की तैयारी कर रही है। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम मोदी सरकार के दोबारा चुने जाने के विश्वास को दिखाता है। वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को पूर्ण बजट पेश करने की योजना बना रहे हैं, जबकि लोकसभा चुनाव साल की पहली छमाही में हो सकते हैं। सरकार ने इससे पहले 2017 में एक फरवरी को बजट पेश किया था, ताकि अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकारी विभाग योजनाओं और खर्च की पूरी तैयारी कर सकें।
चुनावी साल में पूर्ण बजट पेश करने को लेकर सरकार यह तर्क दे सकती है कि बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत नई सरकार के सत्ता संभालने के बीच दिशाहीन स्थिति में नहीं रह सकता। सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि 2018-19 का संशोधित अनुमान और 2019-20 का बजटीय अनुमान मांगते हुए सभी विभागों को पत्र भेजे गए हैं। सिर्फ चुनाव की वजह से अर्थव्यवस्था को अधर में नहीं डाला जा सकता और खर्च में जो अंतर होगा, उसे आगे भी पूरा किया जा सकता है। सरकार वर्ष 2018-19 की अर्थव्यवस्था का रिपोर्ट कार्ड देने वाला आर्थिक सर्वेक्षण भी पेश कर सकती है, जबकि यह जिम्मेदारी भी सामान्यता अगली सरकार पर छोड़ी जाती है।
विशेषज्ञों ने कहा, सही कदम होगा
अर्न्स्ट एंड यंग के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि अगर बजट के जरिये नीतिगत निरंतरता को बनाए रखा जाता है तो यह सही कदम होगा। जब तक सरकार के आखिरी साल के बजट में कर नीति जैसे बड़े बदलाव नहीं किए जाते हैं और उस वित्त वर्ष के खर्च की मंजूरी ली जाती है, तो यह पूरी तरह सही रुख होगा।
एक और परंपरा टूटेगी
अगर चुनावी वर्ष में पूर्ण बजट पेश होता है तो सरकार बजट से जुड़ी एक और परंपरा को तोड़कर आगे बढ़ेगी। इससे पहले 2016 में एक फरवरी को बजट पेशकर फरवरी माह के आखिरी में बजट लाने की परंपरा तोड़ी थी। वहीं 92 साल की परंपरा से हटकर 2017 में आम बजट से अलग रेल बजट पेश नहीं किया गया।
एक और परंपरा टूटेगी, लेखानुदान की जगह पूर्ण बजट की तैयारी में सरकार
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