कोबा, गांधीनगर (गुजरात)। जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अमृतवाणी से अभिसिंचन प्रदान करने वाले, लोगों को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। तदुपरान्त आचार्यश्री के साथ उनके वार्तालाप का भी क्रम रहा। तदुपरान्त वे आचार्यश्री के साथ मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में भी उपस्थित हुए और अपना उद्बोधन भी दिया। वैसे प्रायः वर्ष में एक बार सरसंघचालक महोदय का युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहुंचने का क्रम वर्षों से चला आ रहा है।
बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित जनता को सर्वप्रथम महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करने से पूर्व भगवान महावीर पर आधारित एक गीत का आंशिक संगान कर उसकी व्याख्या करते हुए कहा कि ये भक्ति गीत भगवान महावीर के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति का साधन ये गीत हैं। भक्ति के साथ-साथ ऊंचे आदर्शों की बात भी बताई गई है। इस कार्तिक महीने में अनेक आचार्यों से जुड़े हुए दिन भी आ जाते हैं तो अनेक चारित्रात्माओं के दीक्षा समारोह भी आ जाते हैं। आदमी को अपने आराध्य के प्रति भक्ति की भावना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में संभागी बनने हेतु सरसंघचालक श्री मोहन भावगत भी मंच पर उपस्थित हुए तो उन्होंने सर्वप्रथम आचार्यश्री को वंदन मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री रायचंद लुणिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आगम में किसी की हिंसा नहीं करने की प्रेरणा प्रदान की गई है। आगम वाणी में अहिंसा, संयम, तप, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह व रात्रि भोजन विरमण की बातें भी मिलती हैं। हिंसा का निषेध किया गया है। आदमी को हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। भाष्य में साधु के लिए तो यहां तक कह दिया गया है कि चिकित्सा के लिए भी किसी प्राणी की हिंसा न करे। साधु के शरीर में भी बीमारी हो सकती है। चिकित्सा जगत में अनेक जांच के तरीके होते हैं, जिनके द्वारा डॉक्टर गड़बड़ी के मूल पर पहुंचता है और फिर कारण का निवारण कर डॉक्टर मरीज के रोग को दूर करता है। कोई भी कार्य होता है तो उसके पीछे कोई न कोई कारण होता ही है। कर्मवाद की बात भी बताई गई कि आदमी को उसके किए हुए कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है। किस जन्म के कर्म का फल कब उदय में आ जाए, यह कोई नहीं जानता।
साधु की भूमिका में अहिंसा महाव्रत है। गृहस्थ जीवन के लिए कहा गया है कि जितना संभव हो सके, उतना ही हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में तीन प्रकार की हिंसा बताई गई है- आरम्भजा, प्रतिरोधजा व संकल्पजा। रसोई, पानी, कृषि आदि में भी हिंसा होती है, जिसे आरम्भजा कहा जाता है, लेकिन वह हिंसा निंदनीय नहीं है। हालांकि उसमें भी जितनी कमी हो सके, की जा सकती है। इसी प्रकार अपने शरीर, अपने परिवार, समाज, राष्ट्र आदि की सुरक्षा के लिए भी आदमी को कही प्रतिकार करना होता है, उसमें भी हिंसा हो सकती है, वह हिंसा भी निंदनीय नहीं होती। गृहस्थ जीवन में संकल्पजा हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। लोभ, मोह, क्रोधवश किसी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि हम सन् 2021 में नागपुर में आरएसएस के मुख्यालय गए थे। मोहनजी भागवत आज आए हैं। प्रायः प्रतिवर्ष आपके आगमन का क्रम रहता है। इतने बड़े व्यक्तित्व हैं, फिर भी हर साल हमारे यहां पदार्पण होता है, यह आपकी उदारता है। ऐसे व्यक्तित्व जो चिंतनशील हों, मनीषी हों, ज्ञानी हों, जिनका प्रभाव हो, जिनके भीतर परोपकार की भावना हो ऐसे व्यक्तियों के पथदर्शन से दूसरों का भला भी हो सकता है। खूब धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करते रहें। आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा के उपरान्त आरएसएस के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने अपने अभिभाषण में कहा कि मैं सर्वप्रथम परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन करता हूं।
मैं प्रतिवर्ष आपकी सन्निधि में पहुंचता हूं तो यह मेरी उदारता से भी ज्यादा यह बात है कि आपके पास आने से मेरी बैटरी चार्ज हो जाती है। हम लोग समाज में राष्ट्र की भलाई का कार्य करते हैं। राष्ट्रीय चारित्र के निर्माण का कार्य करते हैं। राष्ट्रीय चरित्र के साथ-साथ व्यक्तिगत चारित्र भी होना बहुत आवश्यक है। इन दोनों का आधार नैतिकता है और नैतिकता का आधार अध्यात्म है। केवल भौतिकता में तो केवल जीवन जीना होता है। आपस में सौहार्द भावना नहीं होने से हिंसा होती है। मैं सब में और सब मुझमें है तो हिंसा रूक सकती है। सद्भावना, नैतिकता को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। हमारे समाज की परंपराएं पंच महाव्रतों से बड़ी निकटता के साथ जुड़ी हुई हैं।
आज लोगों की स्थिति बदल गई है। नहीं तो कोई मांगने वाला आ जाए तो उसे खाली हाथ नहीं लौटाना, उसे मुट्ठी भर भी अनाज अवश्य देना चाहिए। यह संस्कार बच्चों को भी दिया जाता है। सप्ताह में एक बार अपने पूरे परिवार के साथ बैठें और श्रद्धानुसार भजन करना, घर का बना शुद्ध सात्विक भोजन करना और उसके बाद देश, धर्म, संस्कृति, परिवार पर चर्चा होनी चाहिए। देश के लिए, समाज के लिए, परिवार के लिए, सभ्यता व संस्कार के लिए कार्य करने की प्रेरणा देनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा का भी ध्यान देना चाहिए। पानी का बचाव हो, अपने घर को हरित बनाएं। स्वदेशी चीजों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। आचार्यश्री व श्री भागवत के वक्तव्य के बाद आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ आज का कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।
महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत का शुभागमन

Highlights
- गृहस्थ भी हिंसा का करें अल्पीकरण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
- सद्भावना, नैतिकता की प्राप्ति अध्यात्म से : आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत
- दो संघ के प्रमुखों के मधुन की साक्षी बनी प्रेक्षा विश्व भारती
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