हर वर्ष दिवाली के अवसर पर हम दीप जलाते हैं, घर को रोशनी से सजाते हैं और अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव मनाते हैं। पर क्या हम कभी इस बात पर विचार करते हैं कि बाहरी दीपों की तरह हम स्वयं भी किसी के जीवन में एक ‘दीप’ बन सकते हैं? ऐसा दीप, जो न केवल अपने जीवन को रोशन करे, बल्कि दूसरों के अंधकार को भी प्रकाश दे?आज के समय में जब समाज में निराशा, भेदभाव ,अवसाद और स्वार्थ की भावना बढ़ रही हो तब एक सच्चा इंसान वही है जो दूसरों के जिंदगी में आशा, प्रेम और प्रेरणा का रोशनी जलाएं।
यह कार्य कोई महान संत या नेता ही कर सकता है, ऐसा नहीं है। हम-आप जैसे सामान्य लोग भी यह कर सकते हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपने भीतर करुणा, सहानुभूति और सेवा की भावना को जगाएं। जब हम किसी हताश व्यक्ति को दिलासा देते हैं, किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं, किसी बच्चे को शिक्षित करने में योगदान देते हैं, या किसी बुजुर्ग को सहारा देते हैं, तब हम उनके जीवन में एक दीप बनते हैं। यह दीप केवल तेल और बाती से नहीं जलता, बल्कि हमारी सोच, हमारे कर्म और हमारे हृदय की गर्माहट से जलता है। समाज में परिवर्तन लाने के लिए किसी बड़े आंदोलन की आवश्यकता नहीं, बल्कि इंसान अगर यह संकल्प ले कि वह अपने स्तर पर किसी एक व्यक्ति के जीवन में रोशनी लाएगा, तो यह छोटी-छोटी किरणें मिलकर एक बड़ा प्रकाश बन सकती है। अब रावण तलवार लेकर सामने नहीं आते लेकिन वह हमारे भीतर ही कहीं न कहीं मौजूद होते है । ध्यान से देखिए न हमारे क्रोध में, ईर्ष्या में, लालच में, अहंकार में। और जब हम इन्हीं बुराइयों को पहचान कर उन्हें मिटाने का प्रयास करते हैं, तभी हमारे भीतर सच्ची दिवाली का प्रकाश जलता है।
दिवाली, केवल दीपों का त्यौहार नहीं, बल्कि अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और बुराई से अच्छाई की ओर यात्रा का प्रतीक है। यह वह अवसर है जब हम न केवल अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, बल्कि अपने मन और जीवन को भी रोशनी से भरने का संकल्प लेते हैं। जिस तरह एक छोटा दीपक भी घने अंधेरे को चीर सकता है, वैसे ही एक अच्छा कार्य, एक नेक इरादा, और एक सकारात्मक सोच समाज के नकारात्मक माहौल को बदल सकती है। दिवाली हमें यही सिखाती है कि हम खुद वह ‘दीप’ बनें जो दूसरों के जीवन में रोशनी लाए। अबकी बार के दिवाली को केवल परंपराओं या भौतिक उत्सवों तक सीमित न रखकर, दया, करुणा, प्रेम और सामुदायिक सद्भाव के मूल्यों को सर्वोपरि रखना चाहिए इस दिवाली पर, हमें जाति-धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर, जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए, झुग्गी बस्तियों में रोशनी लाने के लिए पहल करने चाहिए,जानवरों के प्रति दया दिखानी चाहिए और साथ ही अपने भीतर के अंधेरे जैसे डर, नफरत, ईर्ष्या को दूर करके ज्ञान और आनंद का प्रकाश फैलाना चाहिए, जिससे सचमुच दिवाली मनाई जा सके।
आप भी जानते ही हैं कि मधुमक्खियो का इकट्ठा किया हुआ शहद चीटियों का इकट्ठा किया हुआ है अनाज और तो और इंसान का इकट्ठा किया हुआ धन हमेशा ही दूसरों के काम ही आता है । इसलिए इस दिवाली संकल्प ले की कुछ ऐसे अच्छे कर्म करने है जो हमेशा के लिए स्मृतियों मे रहे ,किसी वंचित तबकों के बस्तियों में रोशनी लाने के लिए पहल करे, जरूरतमंद लोगों को अपने सामर्थ्य अनुसार निस्वार्थ भाव से मदद कर दे इससे बढ़िया और दिवाली क्या ही हो सकता जो आपके एक पहल से किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाए तो आप ओ दीप बन जाओ जो दूसरों के जीवन में रोशनी आ जाए । चिंतक/एक्टिविस्ट/ IAS Mentor/दिल्ली विश्वविद्यालय/ABVDSMS सेना राष्ट्रीय अध्यक्ष 9069821319
खुद वह ‘दीप’ बनें जो दूसरों के जीवन में रोशनी लाए।डॉ विक्रम चौरसिया

Leave a Comment
Leave a Comment