- आपकी अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए आता हूं: संघ प्रमुख मोहन भागवत
- ज्ञान का सार है अहिंसा: अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण
20.09.2021, सोमवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा (राजस्थान)। अपनी अहिंसा यात्रा के साथ सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश लेकर भारत की सीमा से परे विदेशी धरती को भी पावन बनाने वाले, अखण्ड परिव्राजक, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत पूज्य सन्न्धिि में पहुंचे। वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में आचार्यश्री की सन्निधि में उपस्थित होना भले ही पहली बार था, किन्तु भागवतजी वर्ष में कभी भी आचार्यश्री के दर्शन को वे उपस्थित होते रहते हैं, अपने उसी क्रम को बरकरार रखा।
प्रातः मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत पूज्य सन्निधि में उपस्थित हुए। आचार्यश्री से दर्शन व मंगल आशीष प्राप्त किया। महाश्रमणजी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने कहा कि भारतीय संस्कृति विशिष्ट है। जो बुराइयों से परे होता है, जहां दुष्टता व बुराइयां न हो, वह हिन्दू है। हिन्दू धर्म सभी धर्मों का मूल है और भारत हिन्दू देश है। आचार्यश्री की मंगलवाणी से जन-जन में सद्भावना व नैतिकता का विकास होता रहे और लोगों का व्यवहार अच्छा होता रहे।
महातपस्वी महाश्रमण ने समुपस्थित संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित उपस्थित व वर्चुअल माध्यम से जुड़े श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी ज्ञानी होता है। अहिंसा को ज्ञान का सार कहा गया है। आदमी के जीवन में विचार, संस्कार और आचार का बहुत महत्त्व है। नदी का एक छोर विचार और नदी का दूसरा छोर आचार को मानें तो संस्कार उसमें सेतु का कार्य करता है। प्रथम विचार अच्छा हो और संस्कार अच्छे प्राप्त हों तो आचार भी अच्छा हो सकता है। आदमी के भीतर अच्छे विचार, सुन्दर संस्कार हों तो आदमी का आचार भी सुन्दर हो सकता है। आचार्यश्री ने आगमवाणी, श्रीमद् भगवतगीता के कई श्लोंकों का वर्णन करते हुए आदमी को अच्छे विचार, संस्कार और आचार बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री संघ प्रमुख के आगमन के संदर्भ में कहा कि भागवतजी मनीषी व्यक्ति हैं। यदा-कदा हमारे यहां आते रहते हैं। इतने बड़े संगठन के मुखिया हैं। संगठन का इतना विकास भी है। आरएसएस द्वारा कितने-कितने विद्यालय भी संचालित हैं तो बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी मिले, उनकी आस्था जागृत हो तो उनका आचार अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री की मंगलवाणी का सश्रद्धा श्रवण करने के पश्चात् संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि मुझे आचार्यश्री की वाणी से प्रेरणा मिलती है। आपके दर्शन से जीवन का सार तत्त्व प्राप्त होता है, इसलिए मैं आपश्री के वचनामृत का पान करने के लिए आता हूं। भीलवाड़ा चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अयध्यक्ष श्री प्रकाश सुतरिया ने स्वागत में भावाभिव्यक्ति दी। इस दौरान अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण के प्रमुख श्री स्वांतरंजन, श्री मनोज, श्री माणकचंद, श्री मुरलीधर, श्री राजेन्द्र, श्री गुणवंत कोठारी आदि अनेकों के संघ के पदाधिकारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम की सम्पन्नता के उपरान्त संघ प्रमुख आचार्यश्री के साथ एकान्त वार्तालाप कर व आशीष प्राप्त कर वे पुनः गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए।
साधु-साध्वियों की जिज्ञासाएं, तेरापंथ अनुशास्ता व आरएसएस प्रमुख द्वारा समाधान
दोपहर बाद एकबार पुनः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो अनयास ही एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन हो गया। अपने-अपने संघ के दोनों प्रमुखों से समुपस्थित साधु-साध्वियों ने संगठनात्मक कार्यप्रणाली, सैद्धांतिक प्रणाली, व्यवस्थागत, शैक्षिक व्यवस्था, समाज सुधार, वैश्विक धारतल पर संघ अथवा संगठन की जिम्मेदारियों सहित अनेकों प्रश्न हुए। उन सभी प्रश्नों को आचार्यश्री महाश्रमणजी व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवतजी द्वारा समाहित किया गया।