- आचार्यप्रवर ने किया जीव परिणमन का विश्लेषण
31 अगस्त 2021, मंगलवार, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान। तीर्थंकर के प्रतिनिधि तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जैनागम ठाणं पर आधारित प्रवचनमाला के अंतर्गत आज धर्म देशना देते हुए कहा दुनिया में नित्यता और अनित्यता का क्रम सदैव चलता रहता है। स्थिरता के बिना परिवर्तनशीलता नहीं है और परिवर्तनशीलता के बिना स्थिरता नहीं है। एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना परिणमन कहलाता है। ये जीव और अजीव दोनों में होता है। जैन दर्शन के अनुसार भावों में परिवर्तनशीलता आती है, कर्मों का उदय होता है जिसके फलस्वरूप जीव का परिणामांतर होता रहता है।
आचार्यवर ने आगे कहा कि जीव परिणाम के कुछ प्रकार है। जैसे – गति, इंद्रिय, कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, चारित्र, वेद आदि। इनमें से कुछ त्याज्य है तो कुछ उपादेय है। कषाय परिणाम त्याज्य होता है। लेश्या, योग शुभ अशुभ दोनों रूप में होते है लेकिन फिर भी अंतिम समय में ये भी त्याज्य होते है। केवल ज्ञान की उच्च भूमिका में आने के बाद जीव सब चीजों से ऊपर पहुंच जाता है। व्यक्ति का चारित्र परिणाम उन्नत रहे, ऐसा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास रहे यह काम्य है।
कार्यक्रम में साध्वी श्री योगप्रभा ने गीतिका की प्रस्तुति दी।श्रीमती चंदा बाबेल, दर्श चोरड़िया ने अपने विचार रखे। पूज्य प्रवर ने श्री सुरेश चंद्र बोरदिया को 25 की तपस्या में 30 मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया।