राजराजेश्वरी नगर। तेरापंथ भवन में महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या शासनश्री साध्वीश्री कंचनप्रभाजी ने धर्म सभा को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा संसारी आत्मा राग-द्वेष,अज्ञान,मोह-माया के कारण कर्म बंधन के पाश में जकड़ी रहती है इसलिए कर्म बंद सहज है। परंतु कर्म बंधन से मुक्ति का साधन है तपस्या। तपस्या से आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है इंद्रिय संयम बढ़ता है। जैसे अग्नि से मिट्टी से घुला मिला सोना चमक को प्राप्त करता है उसी प्रकार तपस्या से महान कर्म निर्जरा होती है। आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है। इस प्रकार तप से तेजस्विता बढ़ती है।
शासनश्री साध्वीश्री मंजूरेखाजी ने कहा अध्यात्म आराधना वैराग्य की तरफ बढाती है। जिससे आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है जीवन की क्षणभंगुरता तथा शरीर की नश्वरता तपस्या की मूल्यवत्ता का संदेश देती है। यही वजह है कि अनेक व्यक्ति तपः साधना से स्वयं का कल्याण करते हुए धर्म शासन की प्रभावना करते हैं।
साध्वी श्री जी ने कहा हमारे सम्मुख श्री श्रेयांश बैद अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सोनल के साथ 8 की तपस्या तथा सुश्री हेतल चौरडिया भी 8 की तपस्या के प्रत्याख्यान के लिए पूरे परिवार के साथ उपस्थित हुए हैं। श्रीमती चंचल माण्डोत ने भी कल 29 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष श्री मनोज डागा, तेयुप अध्यक्ष श्री सुशील भंसाली, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती लता बाफना ने तप अनुमोदना में विचार रखें। साध्वी मंजूरेखाजी, साध्वी उदितप्रभाजी, साध्वी निर्भयप्रभाजी साथ में चेलनाश्रीजी ने तप अनुमोदना में सुमधुर गीत का संगान किया। पारिवारिक महिलाओं ने तप गीत का संगान किया। तपस्वी भाई बहनों को साहित्य एवं अभिनंदन पत्र भेंट कर संघीय संस्थाओं द्वारा सम्मान किया गया।
तप से बढ़ती है तेजस्विता – साध्वी कंचनप्रभा
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