आचार्यप्रवर ने किया आकाशास्तिकाय का विवेचन
19 अगस्त 2021, आदित्य विहार, तेरापंथ नगर , भीलवाड़ा, राजस्थान। तीर्थंकर के प्रतिनिधि अध्यात्म सुमेरू आचार्य महाश्रमण का दुर्लभ पावन प्रवास अध्यात्मिकता एवं तात्विक ज्ञान की वृद्धि के साथ निरंतर प्रवर्धमान है। साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका चतुर्विध धर्मसंघ में विभिन्न तपस्याएं भी हो रही है। आचार्यप्रवर के दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्तकर सभी भीलवाड़ा वासी धन्यता की अनुभूति कर रहै हैं।
आचार्यप्रवर ने अपने मंगल उद्बोधन में जैन लोकवाद के परिपेक्ष्य में लोक की दस स्थितियां बताते हुए कहा कि आकाश दो भागों में विभक्त है – लोक और अलोक। आकाश का कोई अंत और छोर नही होता है, आकाश अनादि अनंत है। पहचान के संदर्भ में आकाश के विभाजन किए गए है। जीवन व्यवहार में भी विभाजन की पृष्ठभूमि का आधार अगर राग-द्वेष रहित है तो वह उपयोगी होता है। लोकाकाश में धर्मास्तिकाय आदि छः द्रव्य होते है, अलोक जहा केवल आकाश ही है वहा कोई पुदगल और जीव नहीं होते है। लोक से अलोक में कोई जीव नहीं जा सकता है।
आचार्यवर ने आगे कहा कि इस दुनिया में जीव का जन्म-मरण का चक्र सतत चलता रहता है। चाहे कोई सत्ताधीश हो या कोई चक्रवर्ती, तीर्थंकर ही हो पर अमर कोई नही होता। लोक का शाश्वत नियम है कि जिसका जन्म हुआ उसकी मृत्यु निश्चित है। सांसारिक जीवों के पाप और मोहनीय कर्म का बंध प्रतिक्षण होता रहता है। धार्मिक व्यक्ति इस और सदैव जागरूक रहे कि बुरे कर्मों का जितना हो सके उतना वर्जन करे।
आज कार्यक्रम में जनरल मेजर श्री एन. एस. राज पुरोहित ने शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। अपने विचार भी मेजर ने व्यक्त किए। इस अवसर पर श्री ओम कोठारी, श्रीमती उषा सिसोदिया, श्री नरेश नाहटा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी। श्री प्रज्ञ कांठेड़ ने गीतिका की प्रस्तुति दी।
दुनिया में सतत चल रहा है जन्म मरण का चक्र – आचार्य महाश्रमण
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