नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यौनकर्मी होने का यह मतलब नहीं है कि कोई भी व्यक्ति उसके साथ जबदरस्ती कर ले। उसे यौन संबंध बनाने से मना करने का पूर्ण अधिकार है। केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक सामूहिक बलात्कार का दोषी ठहराकर चार दोषियों को 10-10 साल के लिए जेल भेज दिया है। यह फैसला देकर कोर्ट ने आरोपियों को बरी करने का दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश भी निरस्त दिया।
जस्टिस आर भानुमति और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने मंगलवार को दिए फैसले में कहा कि हाईकोर्ट को पीड़ित के बयानों को नहीं नकारना चाहिए था। यह ठीक है कि वह आसान गुणों वाली महिला है लेकिन उसकी भी अपनी एक हैसियत है। पीठ ने कहा कि दस्तावेजों पर हाईकोर्ट संज्ञान नहीं ले सकता। ये दस्तावेज पीड़ित के खिलाफ वेश्यावृति की शिकायत को लेकर थे जो घटना से एक हफ्ता पूर्व के थे।
यौनकर्मी के साथ किसी हाल में जबरदस्ती नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
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