अन्नदाता हम सभी का शान है, किसान भाइयों पर देश व पूरे जहां को अभिमान है, मगर अफसोस खुद को किसानों का नेता बताने वाले ठेकेदारों व अराजक तत्वों ने इस आंदोलन को शर्मसार कर दिया ,किसानों के हक की लड़ाई को हाईजैक करके देश के हीरो अन्नदाता को बदनाम कर दिया । हमारे देश का किसान ऐसी हिंसा कर ही नहीं सकते ,जो दिल्ली में हिंसा किए है ओ सब उग्रवादी थे किसानों को बदनाम व आंदोलन को कमजोर करने के लिए साजिश के साथ हिंसा किया गया था। दोस्तो आंदोलन करना हम सभी का अधिकार है, जो सत्ता में बैठे बड़े से बड़े दिग्गजों के सिंहासन को हिलाने की क्षमता रखती है, आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत है शालीनता, संवेदनशीलता, संघर्ष.. गांधी जी ने भी तो कहे ही थे कि “अहिंसा परमो धर्मः” आंदोलन देखना है तो आजादी से बड़ा आंदोलन क्या कोई होगा? लेकिन क्या आपने कभी गांधी जी के हिंसा की वकालत करते हुए सुना था? तो फिर किसानों के आंदोलन में हिंसा की एंट्री क्यों हुई? सवाल इसलिए है, क्योंकि तलवार भाजने वाले दहशतगर्द कभी किसान नहीं हो सकते,जो किसान लोगों का पेट भरने के लिए खेतों में दिन रात काम करते है ,इस वैश्विक महामारी में भी पूरे परिवार के साथ खेतों में डटे रहें वो किसान देश की मर्यादा का कत्ल नहीं कर सकते है , किसी भी आंदोलन के आंदोलनकारियों की ये सामूहिक जिम्मेदारी होती है कि हिंसा ना हो। अन्नदाता वर्षों से हाशिए पर रहा, सभी राजनीतिक और संगठनों ने केवल और केवल अन्नदाता को मोहरा बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकी है, और इस बार भी जब अन्नदाता अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाया तो गंदे राजनेता और संगठनों ने इस आंदोलन को ही गंदा कर दिया, जो अन्नदाता सभी का पेट भरता है उसका दर्द आखिर लोग क्यों नहीं समझते हैं? अब तो मीडिया और बौद्धिक लोगो को बहस करने के लिए मुद्दा मिल ही गया है, लेकिन अन्नदाता को क्या मिला?
हमेशा की तरह फिर से अन्नदाता इन राजनैतिक दलों व संगठनों का मोहरा ही बनकर रह गया। आप ही सोचो आंदोलन किसानों का था, लेकिन सवाल हर कोई पूछ रहा था कि खेतों में कौन से किसान काम कर रहे हैं?वर्षों से हमारा अन्नदाता खेतों में अपने पूरे परिवार के साथ दिन-रात कड़ी मेहनत ही कर रहा है, लेकिन अपने अधिकारों के लिए आवाज भी नहीं उठा पाता है, बुरी हालत है आज हमारे किसानों की अगर किसान खेतों से निकलकर सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगे तो शायद बहुत से घरों में रात का चूल्हा भी नहीं जलेगा , यह बात आज किसी से छुपा हुआ नहीं है , कुछ किसानों की स्थिति जरूर सही है , जिनको अंगुली पर गिना जा सकता है, उसमें पंजाब हरियाणा के किसान हो सकते है, लेकिन बिहार , उत्तर प्रदेश झारखंड की किसानों की हालत इतनी बुरी है कि वह किसी भी विरोध प्रदर्शन में नहीं आ सकते, क्योंकि एक किसान खेती के साथ-साथ और भी दूसरे छोटे-मोटे काम धंधे और मजदूरी करके अपने परिवार को पालते हैं,फिर ऐसे में कैसे वह दिल्ली तक अपने अधिकारों को पाने के लिए आवाज उठाते हुए आ सकते हैं, मैं खुद किसान का बेटा हूं, मेरे पिताजी खेती के समय खेतों में काम करते हैं , फिर जल्दी से आकर आटे की चक्की में पूरा परिवार काम करता है, देश के अलग-अलग हिस्सों के किसानों की ऐसी ही हालत है , मुझे बहुत खुशी हुई थी कि आज हमारे अन्नदाता के आवाजों को उठाते हुए समृद्ध किसान वर्ग लोग दिल्ली तक पिछले 2 महीनों से अधिक समय से बैठे हुए हैं, लेकिन अब दुखी हूं कि इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए कुछ उग्रवादी और हम किसान के विरोधी तत्वों ने अन्नदाता के आंदोलन को ही कमजोर कर दिया, यही तो कहीं ना कहीं सरकार भी चाहती ही थी, दोस्तो सच्चाई भी यही है कि आंदोलन की शुरुआत देश के अन्नदाताओं ने ही किया था, मगर इसमें धीरे-धीरे अराजक तत्वों की एंट्री हो गई, देखते ही देखते ये आंदोलन छेड़खानी और नशेबाजी का अड्डा बन गया, क्या किसान भाई ये चाहते थे कि उसके पवित्र आंदोलन में गंदगी फैले और उसके हक की बातें होना बंद हो जाए?
क्या अन्नदाता ये चाहते थे कि इस आंदोलन के जरिए उसकी छवि की धज्जियां उड़ाई जाए? किसान की छवि उसी दिन धूमिल हो गई थी, जब आंदोलन में बैठे भेड़ियों ने महिलाओं के साथ बदतमीजी करनी शुरू कर दी, पूरा देश जानता है कि किसान कभी भी ऐसी नीच हरकतों को अंजाम नहीं दे सकता है, लेकिन किसानों के नाम पर आंदोलन हो रहा था जिससे किसानों की बदनामी होने लगी । आपको बता दें कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती ही यही है कि यहां जनता सर्वोच्च स्थान पर विराजमान है. लोकतंत्र की परिभाषा ही यही है कि ‘जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए’ लेकिन अन्नदाता के आंदोलन को कमजोर करने के लिए इस आंदोलन में गंदे राजनेता व उग्रवादियों ने शामिल हो कर अपना मकसद पूरा कर लिया,और अब अन्नदाता जाएं भाड़ में ,यही आज तक होता आया है ,किसानों के साथ इनके समस्यायों के समाधान से इनको कोई मतलब ही ना रहता है । आप ही सोचो ना जब दो महीने से ज्यादा समय से चल रहे प्रदर्शन में जब कोई गलती नहीं हुई तो गणतंत्र दिवस पर परेड के समय क्यों हुई और करने वाला कौन था? इसकी जांच पुलिस को करते हुए कार्रवाई करनी ही चाहिए ताकि भविष्य में कोई ऐसा न करे , साथ ही गूंगे , बहरे और अंधो से अनुरोध है कि जो रोटी देता है कृपया उस रोटी देने वाले किसानों को अपशब्द ना बोलो, देश कितना भी तरक्की कर लेगा लेकिन रोटी आपको भी किसानों के खेतों से ही पैदा हुआ अनाज से ही मिलेगा, ना कि आप गूगल से डाउनलोड करके खाओगे।
अन्नदाता के आंदोलन को कमजोर करने के लिए साजिश के तहत हिंसा किया गया!
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