- शुभ का आधार अपना सुधार- समणी निर्देशिका कमलप्रज्ञा जी
पालघर। आचार्य श्री महाश्रमण की सुशिष्या समणी निर्देशिका कमलप्रज्ञा जी ठाणा 3 सान्निध्य में पर्युषण पर्व का पांचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर ज़ूम मीटिंग ऐप पर समणी निर्देशिका कमल प्रज्ञा जी ने संबोधित करते हुए कहा अणुव्रत और महाव्रत धर्म के दो रूप है। सब महाव्रती नहीं हो सकते लेकिन घर गृहस्थ में रहकर वे अणुव्रतो की साधना कर सकते हैं। आचार्य तुलसी ने नैतिक मूल्यों व चारित्रिक उन्नयन के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। अणुव्रत यानी जीवन शुद्धि की न्यूनतम आचार संहिता। अणुव्रत केवल आचार संहिता ही नहीं अपितु जीवन का दर्शन है। जीवन जीने की कला है। स्वयं को स्वयं से जोड़ने की प्रक्रिया है। किसी भी वर्ग, जाति, संप्रदाय का व्यक्ति अणुव्रत के नियमों को स्वीकार कर सकता है। यह धर्म और व्यवहार का सेतु है। देश को अणुबम कि नहीं अणुव्रत की अपेक्षा है। आचार्य तुलसी मानवता के मसीहा थे।
मानवीय एकता के पक्षधर थे। अणुव्रतों के नियमों से स्वीकार करने से व्यक्ति भव परंपरा को कम कर सकता है। समणी करुणा प्रज्ञा जी ने अपने संबोधन में कहा पर्युषण अध्यात्म का पर्व है। पर्युषण सीमा में आने का पर्व है। पर्युषण व्रतों को स्वीकरन का पावन पर्व है। पर्युषण अणुव्रतों को अपनाने का पर्व है। अणुव्रत वह लाइट हाउस है जो समुद्र में भटकते हुए मनुष्य को सही दिशा, बोध देता है। समणी सुमन प्रज्ञा जी ने अणुव्रत चेतना दिवस पर गीतिका का संगान किया। यह जानकारी सभा मंत्री दिनेश राठौड़ ने दी।