– 156 वें मर्यादा महोत्सव का हुआ समापन
– मर्यादाओं के प्रति निष्ठावान रहने की आचार्यवर ने प्रदान की प्रेरणा
01-02-2020, शनिवार, हुब्बल्ली, कर्नाटक। एक गुरु और एक विधान की विरली पहचान रखने वाले तेरापंथ धर्म संघ के अतिविशिष्ट मर्यादा महोत्सव के भव्य आयोजन से हुब्बल्लीवासियों में अपूर्व उत्साह नजर आ रहा है। तेरापंथ का मर्यादा महोत्सव अपने आप में एक अनूठी पहचान रखता है। मर्यादा-अनुशासन का यह विशेष पर्व जिसका तेरापंथ के चतुर्थ आचार्यश्री जीतमलजी ने शुभारंभ किया था। इस बार जैन श्वेतांबर तेरापंथ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य में 156 वां मर्यादा महोत्सव का तीन दिवसीय कार्यक्रम हुब्बल्ली के बाल संस्कार इंग्लिश मीडियम स्कूल में आयोजित हुआ। महोत्सव के तृतीय दिन कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्यश्री द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चार से हुआ। तत्पश्चात मुनि दिनेशकुमारजी द्वारा मर्यादा घोष एवं मर्यादा गीत का संगान किया गया। महोत्सव के उपलक्ष में साधु-साध्वीवृंद एवं समणीवृन्द द्वारा सामूहिक गीतों की प्रस्तुति दी गई।
मुख्य उद्बोधन प्रदान करते हुए ज्योतिचरण श्री महाश्रमण जी ने कहा कि हम सभी संघ में साधना कर रहे हैं। संघ वही जिसमें आज्ञा का प्रवर्तन होता है। आज अपने धर्म संघ का मर्यादा महोत्सव मना रहे हैं। पूज्य आचार्य श्री भिक्षु ने इस संघ का सूत्रपात किया। विक्रम संवत 1817 में इसकी स्थापना हुई। धर्म संघ के लिए विधान, मर्यादा की भी आवश्यकता होती है। विक्रम संवत 1859 को आज ही के दिन माघ शुक्ला सप्तमी को मर्यादा पत्र लिखा गया। उसमें लिखी हुई मर्यादाएं हमारे धर्म संघ का आधार है। आचार्यश्री भिक्षु ने मर्यादाएं लिखी। यह पत्र धर्म संघ का छत्र बना हुआ है। आचार्य भिक्षु ने धर्म संघ का प्रवर्तन किया। उसके बाद उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा का एक दशक हमने देखा। दसों आचार्यों का मैं सम्मान के साथ वंदन करता हूं। उनके द्वारा बढ़ाए गए धर्म संघ में आज हम जी रहे हैं।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि तेरापंथ अध्यात्म प्रदान धर्म संघ है। संघ में मर्यादाओं का महत्व है। हम ध्यान रखें कि हमें आत्मा का कल्याण करना है। आत्म साधना करनी है। मूल साध्य हमारा आत्मा का कल्याण है। हमें आत्मोदय करना है। अपेक्षा है हमारे भीतर आत्मनिष्ठा हो। मूल लक्ष्य, नियम सुरक्षित रहे। प्रण को निभाने में हम प्राणों की भी परवाह न करें। धर्म संघ में हम हैं। आत्मनिष्ठा के बाद संघनिष्ठा हमारे में होनी चाहिए। कहा गया शरीर को छोड़ दे लेकिन धर्म शासन को न छोड़ें। संघ हमारे लिए आश्वास है, विश्वास है, माता-पिता के समान है। सबके लिए शरण है। शासन महामहिम है, इसमें हम निष्ठा रखें। हमारे संघ में आचार्य एक हैं। आचार्य की आज्ञा के प्रति सम्मान हो, आज्ञानिष्ठा हो, आचार निष्ठा हो। सब एक आचार्य की आज्ञा में रहे।
आचार्यश्री ने मर्यादा पत्र का वाचन किया एवं सभी साधु-साध्वियों ने पंक्तिबद्ध हो हाजरी का वाचन किया तो परिषद में नैयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत हो उठा। आचार्यश्री द्वारा स्वनिर्मित गीत का संगान किया गया।
तत्पश्चात पूज्यवर ने फरमाया कि साधु-साध्वियों के साथ-साथ श्रावक समाज के लिए भी विधान है। सभी को उसके प्रति जागरूक रहना चाहिए। आचार्यवर ने श्रावक-श्राविकाओं को भी श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन कराया। सभी को संस्थाओं एवं कार्य में शुद्धि, प्रमाणिकता की भी प्रेरणा प्रदान की।
मर्यादा महोत्सव हुबली में संतों की संख्या 67, साध्वियां 131 एवं समण 1, समणिया 57 कुल 256 चरित्रात्माओं की सहभागिता रही।
घोषणाओं के क्रम में हैदराबाद चतुर्मास 2020 में 28 अगस्त को दीक्षा समारोह में समणी ओजस्वीप्रज्ञा, मुमुक्षु चंदनबाला, मुमुक्षु मधुमिता, मुमुक्षु प्रेक्षा को को साध्वी दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। 29 जून 2020 को हैदराबाद में चातुर्मास प्रवेश होगा। अगला मर्यादा महोत्सव रायपुर में आयोजित होगा जिसका प्रवेश 14 फरवरी 2021 को होगा। तत्पश्चात पूज्यवर ने साधु-साध्वियों के चातुर्मास एवं विहार आदि क्षेत्रों की घोषणा की। संघ गान के द्वारा अंत में समारोह का समापन हुआ।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी का कर्नाटक स्तरीय मंगल भावना समारोह 15 फरवरी 2020 को बेलगावी में आयोजित होगा।