अलौकिक आनंद का स्त्रोत: स्वाध्याय उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार एवं शासन श्री साध्वी सोमलता जी

मुम्बई। स्वाध्याय रसिक सन्त शिरोमणि आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञनुवर्ती उग्र विहारी तपोमूर्ति श्री कमल कुमार जी व शासन श्री साध्वी सोमलता जी के सांनिध्य सोमलता जी के सांनिध्य में पर्युषण पर्व स्वाध्याय दिवस की शुरुवात मुनि श्री नमि कुमार ने आदिनाथ भगवान की स्तुति से की। मुनि श्री अमन कुमार जी ने अनुप्रेक्षा का प्रयोग करवाया।
उग्र विहारी मुनि श्री कमल कुमार जी ने विशाल जनमेदिनी को स्वाध्याय की प्रेरणा देते हुए कहा स्वाध्याय तप है, जो व्यक्ति स्वाध्याय में तल्लीन रहता है। वह परम अलौकिक आनंद को प्राप्त करता है। और भव भव के संचित कर्मो की निर्जरा कर सम्यवक्त को पुष्ट करता है। आपने हाजरी का वाचन करते हुए कहा आचार्य भिक्षु ने जो संविधान की धाराओ में प्राण प्रतिष्ठा की वह एकन्त्र में जनतंत्र की जीवंत तस्वीर है।
शासन श्री साध्वी सोमलता जी ने श्रमण भगवान महावीर के पूर्व भावो का सजीव चित्रण करते हुए कहा श्रमण भगवान महावीर ने नयसार के भव में शुभ भावो के साथ संयमी आत्माओ को शुद्ध दान देकर सम्यक्त्व को प्राप्त किया। संसार को सीमित किया। आपने आगे कहा स्वाध्याय से मनुष्य के ह्रदय में प्रेम का आनंद का स्रोत बहता है। निरन्तर स्वाध्याय करने से दिव्य लब्धियां प्राप्त हो सकती है। आप ने कहा स्वाध्याय अज्ञान रूपी भय को दूर करने के लिए दिप के समान है। विचार मंथन के लिए सीप है। साध्वी जागृत प्रभा जी ने स्वाध्याय कैसे? कब करना चाहिए? इस विषय पर प्रस्तुति दी। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया गया ।

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