सबरीमाला मंदिर करीब 800 साल पुराना माना जाता है और इसमें महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद चला आ रहा है। इसे लेकर ये मान्यता है कि भगवान अयप्पा नित्य ब्रह्मचारी माने जाते हैं। जिसकी वजह से इस मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं का आना वर्जित है। भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए 41 दिन पहले से तैयारी करनी होती है। इस प्रक्रिया को मंडल व्रतम कहा जाता है। इस बार ये व्रत 17 नवंबर से शुरू हो रहा है।
- धनु मास के दौरान होती है मंडला पूजा
सबरीमाला अयप्पा मंदिर में धनु मास के दौरान यानी जब सूर्य धनु राशि में होता है। तब मंडला पूजा 11 वें या 12 वें दिन मनाई जाती है। मंडला पूजा भगवान अयप्पा के भक्तों द्वारा की गई 41 दिनों की लंबी तपस्या का अंतिम दिन होता है। इस व्रत की शुरुआत मंडला पूजा से 41 दिन पहले यानि मलयालम कैलेंडर के अनुसार जब सूर्य वृश्चिक राशि में होता है तब वृश्चिक मास के पहले दिन से होती है। सबरीमाला अयप्पा मंदिर में मंडला पूजा और मकर विलक्कू दो सबसे प्रसिद्ध कार्यक्रम हैं जब मंदिर को ज्यादा दिनों तक भक्तों के लिए खुला रखा जाता है।
- इस पूजा में किया जाता है गणेशजी का आव्हान
मंडला पूजा के दौरान भक्त तुलसी या रूद्राक्ष की माला पहनते हैं जो भगवान अयप्पा को प्रिय है। चंदन का लेप लगाते हैं। 41 से 56 दिनों तक चलने वाली इस महापूजा के दौरान भक्त मन और तन की पवित्रता का पूरा ध्यान रखते हैं। इस पूजा में भगवान गणेशजी का आव्हान किया जाता है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। पूजा के दौरान भगवान अयप्पा के दर्शन का भी बहुत महत्व है इसलिए कई भक्त मंदिर में दर्शन के लिए भी जाते हैं। कुछ भक्त ये महापूजा मकर संक्रांति तक भी करते हैं।
- महापूजा और मंदिर में दर्शन करने का महत्व
मान्यता है कि अगर यहां आने वाले श्रद्धालु तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, उपवास रखकर और सिर पर नैवेद्य यानी भगवान को चढ़ाए जाने वाला प्रसाद लेकर दर्शन के लिए आते हैं तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। श्रद्धालुओं के अनुसार भगवान अयप्पा के दर्शन करने से सोचे हुए काम पूरे हो जाते हैं और हर तरह के रोग और परेशानियां खत्म हो जाती हैं।
- सबरीमाला मंदिर का इतिहास
सबरीमाला मंदिर यानि श्री अय्यप्पा मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पत्तनमतिट्टा जिले के पेरियार टाइगर रिजर्वक्षेत्र में है। ये प्राचीन मंदिर दुनिया के बड़े तीर्थों में एक माना जाता है। इनके दर्शन के लिए हर साल यहां 4.5 से 5 करोड़ लोग आते हैं। इस मंदिर की व्यवस्था का जिम्मा राज्य में मंदिरों का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के हाथ में है। 12वीं सदी के इस मंदिर में भगवान अय्यपा की पूजा होती है। दक्षिण पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का रूप) का पुत्र माना जाता है। जिनका नाम हरिहरपुत्र भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान की स्थापना स्वयं परशुराम ने की थी और यह विवरण रामायण में भी मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य भगवान विश्वकर्मा के सान्निध्य में पूरा हुआ। बाद में परशुराम जी ने मकर संक्रांति के दिन यहां भगवान की स्थापना की।