पंकज श्रीवास्तव/पटना। बिहार के एक आरटीआई एक्टिविस्ट और एक पुलिस अधिकारी के बीच एक लड़ाई काफी समय चली, जिसने बिहार की मीडिया के अलावा यहां के जन मानस में भी काफी जगह बनाई। पिछले दिनों इसी मामले को लेकर हमने पुलिस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे से बात चीत की। उसी बातचीत में विवाद का परत दर परत विश्लेषण करती यह रिपोर्ट-
पिछले 17 सितंबर को मुजफ्फरपुर सदर थाना में आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत कुमार के ऊपर पॉस्को एक्ट के तहत एक केस दर्ज हुआ। हेमंत का दावा था ” एक आरटीआई एक्टिविस्ट की जुबान बंद कराने के लिए ये फर्जी केस बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने अपने चहेतों से मेरे ऊपर कराया है।” कारणों पर प्रकाश डालते हुए हेमंत ने बताया कि “मैंने आरटीआई डाल कर गुप्तेश्वर पांडे के शैक्षणिक प्रमाण-पत्रों की माँग की थी।” हेमंत के द्वारा डाला गया आरटीआई कहता है कि आईपीएस गुप्तेश्वर पांडे ने संस्कृत से आनर्स फिर एमएससी और एमफील की है। इस सवाल के जबाब में गुप्तेश्वर पांडे का कहना है कि जब मेरी नियुक्ति हुई थी। उस काल में पुलिस विभाग के आकडो को सहेजना और कलमबद्ध करना लिपिक का काम होता था। ये मानवीय त्रुटी थी जो किसी और की शैक्षणिक योग्यता को मेरे प्रोफाइल में दर्ज कर दिया गया।वैसे हेमंत और गुप्तेश्वर पांडे का विवाद कोई नया नहीं है। गुप्तेश्वर पांडे ने हमारे संवाददाता पंकज श्रीवास्तव को तकरीबन 100 पन्नों का लिखित फाइल दिखाया। इस दरम्यान एक वरिष्ठ आईपीएस कभी आक्रोशित होता तो कभी भावुक। अपनी आँखों की कोर में लरजते आंसुओं को छुपाने का असफल प्रयास भी करता दिखा। दर्द था प्रोफेशन की आड में लोगों ने उनके संग गलत किया। बकौल गुप्तेश्वर पांडे आरटीआई कार्यकर्ता और पत्रकारों के प्रति मेरे मन में बेहद सम्मान था। जो अब खतम हो गया है। एक वाक्ये का जीक्र करते हैं। बीबीसी हिन्दी जैसे प्रतिष्ठत पोर्टल ने अभी हाल में ही मुजफ्फरपुर शहर के बहुचर्चित नववरुणा हत्याकांड पर एक स्टोरी चलाया। उसके पत्रकार ने मेरा पक्ष जानने के लिए फोन किया। हैरत देखिए पत्रकार और मेरी पूरी काँल-रेकॉर्डिग तुरन्त हेमंत कुमार के पास पहुँच गयी।
अपने पाठको को इस विवाद को समझाने के लिए हम गुप्तेश्वर पांडे द्वारा उपलब्ध उस फाइल के चंद अंशों का समेट रहें हैं। तकरीबन 100 पन्नों की इस फाइल में पिछले 16 साल की हर वो घटना विस्तार से दर्ज है और अपनी बेगुनाही का तर्क देता है। फइल की शुरुआत में दर्ज है मुजफ्फरपुर का नववरुणा हत्याकांड बर्ष 2012 महिना सितंबर और तारीख होती है 19 इस दिन मुजफ्फरपुर के एक थाने में नववरुणा नामक बच्ची के गुमशुदगी का केस दर्ज होता है। उस वक्त गुप्तेश्वर पांडे मुजफ्फरपुर के डीआईजी होते हैं। कहने वाले कहते हैं इस केस को गुप्तेश्वर पांडे ने उलझा दिया जबकि पांडे का दावा है अमूमन अपहरण, हत्या, लूट या डकैती जैसे केसों में पुलिस महानिरिक्षक या अपर पुलिस महानिरिक्षक जैसा पुलिस पदाधिकारी नहीं जाते क्योंकि उन्हें 10 जिला देखना होता है लेकिन मैंने इस घटना के तुरन्त बाद एसएसपी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया। दूसरी ओर ये मामला लगातार तुल पकड़ता गया। इसके लिए मैंने एसएसपी पर केस उद्भेदन करने का दबाव बनाया। इस घटना के 40 दिनों के बाद यानि 28 या 29 अक्टूबर 2012 को हमने तकरीबन 50 पुलिसकर्मियों के संग घटना स्थल का निरिक्षण किया। इस दौरेे का मीडिया को भी भनक लग चुकी थी नतीजा मौके पर प्रिंट मीडिया, एलेक्ट्रानिक मीडिया और पोर्टल के पत्रकार भारी संख्या में मौजूद थे। घटना के लगभग ढाई महिने बाद अमूल्य चक्रवर्ती यानि नववरुणा के पिता के घर से तकरीबन 5 कदम की दूरी पर एक संकरी गली में नाली सफाई का काम चल रहा था। इसी नाली मेें एक सड़ी-गली लाश मिली। पुलिस पहुँची लोगों का हुजूम लगा लेकिन चौकाने वाली बात जिस अमूल्य चक्रवर्ती की बेटी नववरुणा गुम हुई वो अपने घर से महज 5 कदम चलकर उस लाश को देखने नहीं आये। और तो और उन्होंने इस घटनाक्रम केे दौरान अपना दरवाजा तक नहीं खोला। पुलिस ने उन्हें इसके लिए कई बार गुजारिश भी की “कम से कम आप एक बार तो लाश देख लीजिए।” बहरहाल इस लाश की बरामदगी पर मुजफ्फरपुर और मीडिया में खुब हंगामा बरपा मामला सीआईडी को सौप दिया गया। इधर पुलिस चुप नहीं बैठी थी। उसने आस पड़ोस के सभी थानों से उस उम्र वर्ग के सभी गुम हुए लोगों की सूची मँगा ली थी लेकिन ऐसा कहीं कुछ नहीं था। दूसरी ओर लाश का वैज्ञानिक परीक्षण बता रहा था। लाश 15 साल की बच्ची की है। पुलिस के पास इस लाश के पहचान का अब एक ही रास्ता बचा लाश का डीएनए टेस्ट कराया जाए। यहाँ एक नयी समस्या थी मतलब कानून कहता है कि मृतक के परिजन जब तक राजी न हो लाश का डीएनए टेस्ट नहीं हो सकता। मतलब डीएनए टेस्ट के लिए पिता अमूल्य चक्रवर्ती का राजी होना जरुरी था। वो राजी नहीं थे। तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भी अमूल्य चक्रवर्ती से गुजारिश की वो डीएनए टेस्ट को राजी हो जाए मामला स्पष्ट हो जायेगा। वो नहीं माने
विधानसभा में भी ये मामला उठा तत्कालीन संसदीय मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सदन को जानकारी दी कि नववरुणा के पिता डीएनए टेस्ट के लिए राजी नहीं हैं। फाइल की माने तो मामला सीबीआई को कैसे सौपा गया ये गुप्तेश्वर पांडे को नहीं पता। मामला जैसे ही सीबीआई के हाथ में आया डीएनए टेस्ट हुआ और ये स्पष्ट हो गया कि लाश नववरुणा की ही है।
उस फाईल में एक नया घटनाक्रम जुड़ता है। मतलब 22 नवंबर को गुप्तेश्वर पांडे सरकारी काम से पटना जा रहें थे। इसी बीच उनके मोबाइल पर एक महिला का फोन आया। उसने रोते हुए बताया कि वो मुजफ्फरपुर के एक बैंक में कार्यरत है और शहर के एक हास्टल में रहती है। उसके मोबाइल पर अज्ञात नंबर से एसएमएस और काँल आता है। इतना ही नहीं बैंक आने-जाने के क्रम में मेरा पिछा किया जाता है। मैं मानसिक रुप से परेशान हूँ। आप मेरी मदद नहीं करेंगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। यही वो वक्त था जब दिल्ली के निर्भया कांड ने देश के जनमानस को हिला कर रख दिया था। इधर बिहार के सीतामढी में भी कुछ ऐसी ही घटना प्रकाश में आयी थी। जहाँ एक युवती ने अपने प्रताडना की गुहार थाने से लेकर आला अधिकारियों तक की थी। दुर्भाग्य पुलिस ने गम्भीरता से उसे नहीं लिया नतीजा उसने आत्महत्या कर लिया, तब बिहार पुलिस की भारी फजिहत हुई थी। गुप्तेश्वर पांडे ने फोन काटा और तुरन्त एसएसपी को निर्देश दिया। नतीजा पुलिस ने अगले दिन लड़की के बताये समय में जाल बिछाया और हेमंत कुमार को पकड़ लिया। गुप्तेश्वर पांडे की उस फाईल में स्पष्ट लिखा है। मुझे पता नहीं था कि जो लड़का पकड़ा गया है वो हेमंत कुमार ही है। उससे मेरा पूर्व परिचय था। हमारे संवाददाता पंकज श्रीवास्तव ने जब फाइलों से इतर उनसे सीधा सवाल किया आपका परिचय हेमंत कुमार से कैसे हुआ तो उनका जबाब था। एक आरटीआई कार्यरत के हैसियत से मैं उन्हें जनता ही नहीं सम्मान भी करता था। फाइल भी बताती है बेगुसराय जिले के एक केस में हेमंत कुमार ने बतौर एक आरटीआई एक्टिविस्ट एके 47 के विषय में जानकारी माँगी थी। जिसे पुलिस ने बरामद किया था। आरटीआई का आशय यही था उसे मैंने अपने पास रख लिया। ये मामला तकरीबन 15-16 साल पुराना है। बहरहाल गुप्तेश्वर पांडे एक सीधे सवाल के जबाब में स्वीकार किया हेमंत कुमार मेरे बड़े प्रशंसक थे लेकिन अपनी गिरफ्तारी के बाद उन्होंने मुझसे मदद माँगी। मैं पुलिस की मर्यादा में बंधा था यहाँ कानून का अतिक्रमण हुआ था। नतीजा मैंने इंकार कर दिया। ये भी एक कटु सत्य है। उसी वक्त मैंने मुजफ्फरपुर में ‘ मजनू ‘ नामक एक आपरेशन चलाया था जो मनचलों के ऊपर था। संयोग देखिए अपनी गिरफ्तारी की सुबह हेमंत ने मेरे मोबाइल पर इस आपरेशन के सकारात्मक प्रभाव पर शुभकामनाएं भी भेजी थी। बहरहाल इस केस में हेमंत जेल नहीं गये सीजीएम कोर्ट से उन्हें जमानत दे दिया। उस थानेदार की बर्खास्तगी पर अड़े हेमंत को मुझसे मदद नहीं मिली। नतीजा हेमंत कुमार ने मेरे विरुध मोर्चा खोल लिया। सबसे पहले हेमंत कुमार ने पुलिस महानिदेशक को आवेदन देकर बताया कि 7 बर्ष पूर्व मैंने विभाग को बिना बताये राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के संग लाँ की परीक्षा दी है। बाद में अपने प्रभाव से मैंने उन काँपियों को जलवा दिया। मामला न्यायालय में भी गया लेकिन खारिज हो गया। फिर यही मामला महानिदेशक निगरानी तक पहुंचा। इस मामले में हेमंत नेे संघ लोक सेवा आयोग, मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार,जीतन राम माँझी, पुलिस महानिदेशक अभयानंद, पुलिस महानिदेशक निगरानी,एंव पी के ठाकुर को भेजा। हेमंत ने इसके बाद मेरे विरुध एक और मामला लाया मुजफ्फरपुर महानिरिक्षक के आवास से सटे जमीन पर मैंने अवैध कब्जा किया है। पुलिस महानिदेशक ने जाँच के बाद इस मामले को खारिज कर दिया। इसके बाद हेमंत ने विभाग से मेरे टीए के विषय में जानकारी माँगी। इनका आरोप था कि मैंने गलत ढंग से टीए निकाला है। हेमंत कुमार ने इसके बाद पुलिस उप-महानिरिक्षक से पुलिस महानिरिक्षक में मेरी हुई प्रोन्नति पर भी सवाल खड़ा किये। पुलिस महानिदेशक को प्रतिवेदन तक दिया। आरटीआई से सूचना माँगी उल्लेखनीय है कि यहाँ मेरे एक साल के वेतन वृद्धि जब्ती का आदेश तक निकल गया। बाद में सरकार ने अपनी गलती सुधारी और मुझे मेरा पैसे वापस किये। प्रधानमंत्री के मुजफ्फरपुर चुनावी दौरे के वक्त हेमंत कुमार ने पोस्टर, बैनर लगाकर नववरुणा मामले को उठाकर मुझे फंसाने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री के चुनावी दौरे पर एसपीजी ने इन बैनर पोस्टरों को हटाया। इसी लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की सभा हेमंत के सहयोगी अभिषेक रंजन ने नववरुणा का मामला उठाकर हंगामा किया। वर्ष 2009 में मैंने स्वैच्छिक सेवानिवृति का आवेदन दिया जिसे राज्य सरकार ने स्वीकृत कर लिया लेकिन नियम कहता है 30 वर्ष के सेेवा अवधि के बाद सेेवानिवृति मिल सकती है। मतलब राज्य सरकार के इस आदेश को केन्द्र ने नियम के अधिन खारिज कर दिया। दुसरी ओर हेमंत ने इस मामले को 7 से 9 करोड़ के डील मेें तब्दील कर प्रचारित-प्रसारित किया।
डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत कुमार के हर आरोप का दिया जवाब
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