भारत में तमिलनाडु के पेरावोरानी के निकट तंजावूर के विलनकुलम में अक्षयपुरीश्वर मंदिर है। ये मंदिर पुष्य नक्षत्र से संबंधित है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि देव हैं। इसलिए ये मंदिर भगवान शनि के पैर टूटने की घटना से जुड़ा हुआ है। पुष्य नक्षत्र के संयोग पर ही यहां भगवान शिव ने शनिदेव को दर्शन दिए थे। इसलिए पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए लोग इस मंदिर में दर्शन और नक्षत्र शांति के लिए आते हैं। शनि की साढ़ेसाती में पैदा हुए लोग भी पुष्य नक्षत्र के संयोग में यहां पूजा और विशेष अनुष्ठान करवाते हैं।
- करीब 700 साल पुराना है मंदिर
तमिलनाडु के विलनकुलम में बना अक्षयपुरीश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर तमिल वास्तुकला के अनुसार बना है। माना जाता है कि ये मंदिर चोल शासक पराक्र पंड्यान द्वारा बनवाया गया है। जो 1335 ईस्वी से 1365 ईस्वी के बीच बना है। माना जाता है कि ये मंदिर करीब 700 साल पुराना है। इस मंदिर के पीठासीन देवता शिव हैं। उन्हें श्री अक्षयपूर्वीश्वर कहा जाता है। वहीं उनकी शक्ति को देवी श्री अभिवृद्धि नायकी के रूप में पूजा जाता है।
- शनिदेव को मिला विवाह और पैर ठीक होने का आशीर्वाद
इस शक्तिस्थल से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां शनिवार को पुष्य नक्षत्र और अक्षय तृतीया तिथि के संयोग में शनिदेव ने अपने पंगु रोग को दूर करने के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। यहां बहुत सारे बिल्व वृक्ष थे। उनकी जड़ों में शनिदेव का पैर उलझने से शनिदेव यहां गिरे थे। शनिदेव के गिरते ही भगवान शिव वहां प्रकट हुए और शनिदेव झटके से उठ गए। उस समय भगवान शिव ने शनिदेव को विवाह और पैर ठीक होने का आशीर्वाद दिया। तमिल शब्द विलम का अर्थ बिल्व होता है और कुलम का अर्थ झूंड होता है। यानी यहां बहुत सारे बिल्ववृक्ष होने से इस स्थान का नाम विलमकूलम पड़ा।
- पत्नियों के साथ विराजित है शनिदेव
यहां शनिदेव की पूजा का बहुत महत्व है। इस मंदिर में वे अपनी पत्नियों मंदा और ज्येष्ठा के साथ हैं। इन्हें यहां आदी बृहत शनेश्वर कहा जाता है। शनिदेव पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं। इसलिए ये स्थान पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिए खास माना जाता है। पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग यहां पुष्य नक्षत्र, शनिवार या अक्षय तृतीया पर आकर शनिदेव की पूजा करते हैं। शनिदेव अंक 8 के स्वामी भी हैं इसलिए यहां 8 बार 8 वस्तुओं के साथ पूजा करके बांए से दाई ओर 8 बार परिक्रमा भी की जाती है।
- मंदिर की बनावट
मंदिर की आयताकार बाउंड्री दीवारों से बनी हैं। मंदिर प्रांगण विशाल है और यहां कई छोटे मंडप और हॉल बने हुए हैं। मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भीतरी मंडप है जो बड़े पैमाने पर दीवारों से घिरा हुआ है। यहां कोटरीनुमा स्थान हैं जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता है। इस देवालय के बीच में गर्भगृह बना हुआ है। जहां भगवान शिव अक्षयपुरिश्वर के रूप में विराजमान हैं। यहां पत्थर का एक बड़ा शिवलिंग है। मंदिर के पुजारी ही इस गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं।
- भगवान शिव के अलावा अन्य देव
भगवान अक्षयपुरिश्वर यानी शिवजी के अलावा यहां भगवान गणेश, भगवान नंदिकेश्वर की भी मूर्ति हैं। यहां मां दुर्गा और देवी गजलक्ष्मी भी विराजित हैं। शनिदेव अपनी पत्नियों मंदा और ज्येष्ठा के साथ विराजित हैं। यहां भगवान सूर्य और भैरव देवता की भी मूर्ति हैं। इनके साथ ही भगवान सुब्रमण्य अपनी पत्नी देवी श्री वल्ली और दिव्यनै के साथ विराजित हैं। मंदिर में नन्दी, भगवान दक्षिणामूर्ति, ब्रह्मा और भगवान नटराज की भी मूर्तियां स्थापित हैं।
- पुष्य नक्षत्र का महत्व
भगवान शनि पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं और शनिदेव के गुरु भगवान शिव हैं। इसलिए तमिलनाडु के इस मंदिर में पुष्य नक्षत्र पर अच्छी सेहत, विवाह, सुख और समृद्धि के लिए शनिदेव के साथ उनके गुरु भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है यहां पुष्य नक्षत्र के संयोग पर शनि की महादशा और साढ़ेसाती से पीड़ित लोग पूजा करें तो परेशानियों से राहत मिलती है। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए यहां विशेष पूजा की जाती है।