रिजर्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफारिशों को अमल में लाते हुये सोमवार को रिकार्ड 1.76 लाख करोड़ रुपये का लाभांश और अधिशेष आरक्षित कोष सरकार को हस्तांतरित करने का फैसला किया। इससे नरेंद्र मोदी सरकार को राजकोषीय घाटा बढ़ाये बिना सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिलेगी।
केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा कि गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई में रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल ने 1,76,051 करोड़ रुपये सरकार को हस्तांतरित करने का निर्णय किया है। इसमें 2018-19 के लिये 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष और 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रावधान के रूप में चिन्हित किया गया है। अतिरिक्त प्रावधान की यह राशि आरबीआई की आर्थिक पूंजी से संबंधित संशोधित नियमों (ईसीएफ) के आधार पर निकाली गयी है।
आरबीआई से प्राप्त राशि से सरकार को अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के प्रयासों में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पांच वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गयी है। कन्ज्यूमर खर्च में भी कमी आई है। ऑटो इंडस्ट्री में 10 हजार के करीब नौकरी गई हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिये पिछले सप्ताह विभिन्न कदमों की घोषणा की। हालांकि, सरकार की कोशिश राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत पर सीमित रखने की है।
मुंबई की इंडिया निवेश सिक्योरिटीज के रिटेल रिसर्च प्रमुख धर्मेश कांत ने कहा, ‘इन फंड्स से सरकार अर्थव्यवस्था को जरूरी बूस्ट दे पाएगी। अपने राजकोषीय घाटे को भी निंयत्रित रख सकेंगे।’ वित्त मंत्रालय इस ट्रांसफर का इस्तेमाल बजट उधारी को कम करने में इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि, अभी कोई खर्च करने को लेकर अभी भी अंतिम फैसला नहीं किया गया है।
आरबीआई अपने निवेश से हुए लाभ और नोट और क्वाइन पर हुए फायदे को हर साल सरकार को डिविडेंड के तौर पर देता है। बीते सालों में वित्त मंत्रालय सरकार से ज्यादा भुगतान की मांग कर रहा है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि केंद्रीय बैंक के पास जरूरत से ज्यादा कैपिटल है।
इस मुद्दे पर पहले भी आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच आरबीआई में अधिशेष राशि की सीमा तय करने को लेकर गतिरोध की स्थिति बन गयी थी। परिणामस्वरूप आरबीआई ने नवंबर, 2018 की अहम बोर्ड बैठक में रिजर्व बैंक की ईसीएफ की समीक्षा के लिए एक समिति के गठन का निर्णय किया था। हालांकि, समिति के गठन से पहले ही पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल ने बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति का गठन किया जिसने केंद्रीय बैंक के कैपिटल फ्रेमवर्क को जाना। बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आरबीआई के स्वीकार करने के बाद यह कदम उठाया है। समिति को यह तय करने को कहा गया था कि केंद्रीय बैंक के पास कितनी आरक्षित राशि होनी चाहिए। सरकार की तरफ से वित्त सचिव राजीव कुमार इस समिति में शामिल थे। समिति ने 14 अगस्त को अपनी रपट को अंतिम रूप दिया था।