– आचार्य सम्राट आनन्दऋषि जी. म.सा का जन्म जयन्ती समारोह
-एक ओजस्वी और तेजस्वी आचार्य थे आनन्दऋषिजी म.सा:साध्वी चारुप्रज्ञा
सादडी सदन पुणे। जैन दिवाकरिय जिनशासन प्रभाविका श्री चारुप्रज्ञाजी म.सा आदी ठाणा 3 के सानिध्य में सादडी सदन पुणे में चल रहे वर्षावास काल के दौरान गुरुवार को श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनन्दऋषिजी म.सा का जन्म जयंती समारोह मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण से हुआ। सर्व मंगलकारी नवकार महामंत्र का सजोडे अनुष्ठान तीन चक्रो की आराधना के साथ पुर्ण हुआ ।
आचार्य भगवन आनन्दऋषि जी. म.सा की जन्म जयंति सजोडे अनुष्ठान एवं सामुहिक आयंबिल ,एकासन,दया के साथ मनाई गई । प्रवचन हॉल मे नवकार महामंत्र का सामुहिक अनुष्ठान कीया गया । बडी संख्या मे श्रावक श्राविकाओ ने भाग लिया । साध्वीगण ने इस अनुष्ठान की महता भी बताई ।
आचार्य श्री की जयंती के पावन अवसर पर आज प्रात: सादडी सदन प्रवचन हाँल मे जैन दिवाकरिय साध्वी चारुप्रज्ञाजी म.सा ने धर्म सभा मे प्रवचन देते हुए व्यक्त कीए – भारत की पवित्र वसुन्धरा ने हर युग मे महान आत्माओ को जन्म दिया है । यहां की संस्कृति सदैव सन्त प्रधान रही है । संतो ने भारतीय जनमानस को जितना प्रभावित किया है ,उतना आज तक कोई भी नही कर पाया है । संत का जीवन गंगा की धारा की तरह सहज पवित्र और सतत गतिशील होता है । संत का चरण प्रवाह जिधर मुड जाता है उधर के वायुमण्डल मे पवित्रता आने लगती है । जन-जीवन मे जागृती की लहर दौड जाती है । जैन परम्परा के संतो का इतिहास त्याग , तपस्या और सेवामय रहा है । वे करुणा और लोक कल्याण के प्रतिक रहे है । आज महापुरुष की जन्म जयंति यहां मनाई जा रही है । आचार्य सम्राट आनन्दऋषि जी. म.सा श्रमण संघ के एक ओजस्वी और तेजस्वी आचार्य थे। जिस किसी ने भी उन्हे निकट से देखा उसके मन मे आचार्य प्रवर के प्रति श्रध्दा और प्रेम की भावना जागृत हुई । आपश्री प्रगाढ विद्वता ,अदम्य साहस , उत्तम कतृव्यनिष्ठा ,अद्वितीय अदभुत त्याग ,स्नेह और संगठण की भावना सराहनीय रही है ।
इससे पुर्व साध्वी जयप्रज्ञाजी म.सा ने प्रवचन देते हुए कहा कि जिस संत को हजारों-लाखों लोगों की असीम श्रद्धा भक्ति प्राप्त हो और वो उससे बिलकुल ही निस्पृह, अनासक्त तथा सीधा-सरल भाव-युक्त रहे, तो ये ऐसी बात होगी कि गुलाब का फूल तो है, सुगंध और सौन्दर्य भी है, मगर उसमे कांटा नहीं है । विद्या के साथ विनय, अधिकार के साथ विवेक, प्रतिष्ठा और लोकश्रद्धा के साथ सरलता आदि ऐसी अद्भूत बाते हैं, जो किसी विरले मे ही पायी जाती है। आचार्य सम्राट आनन्दऋषि जी म.सा में ये विरल विशेषताए देखकर मन श्रद्धा और आश्चर्य से पुलक-पुलक जाता है। उनके जीवन मे गहरे पैठकर देखने पर भी कहीं कटुता, विषमता, छल-छिद्र, अहंकार आदि के कांटे देखने को नहीं मिलेंगे। वे बहुत ही सरल पर, चतुर बहुत ही विनम्र पर, स्वाभिमानी बहुत ही मधुर पर, निश्छल और अनुशासित पर, कोमल हृदय श्रमण थे। ऐसे ही अनूठे, सीधे-सादे, विनम्र, गुणज्ञ, सरल और सच्चे संत थे आचार्य भगवंत जिनकी जन्म जयंती हम मनाने जा रहे है । उक्त मंगल उदगार आचार्य श्री की जयंती के पावन अवसर पर आज प्रात: सादडी सदन प्रवचन हाँल मे जैन दिवाकरिय साध्वी जयप्रज्ञाजी म.सा ने धर्म सभा मे प्रवचन देते हुए व्यक्त कीए उन्होने
कहा कि आचार्य श्री जी का जीवन एक दर्पण है। उन्होंने मात्र एक प्रवचन से ही जीवन को संयम योग्य बनाया। बुद्धि के प्रखर धनी थे। उनके जीवन से हम तप, त्याग, स्वाध्याय आदि की यथाशक्ति प्रेरणा लें तथा मन और भावों को एक सा बनायें। जिनका जीवन अध्यात्म प्रेरणा का एक स्वयं सिध्द उदाहरण है । महापुरुषो का व्यक्तीत्व कृतित्व इतना भव्य और दिव्य होता है कि उन्हे शब्दो के द्वारा बता पाना बहुत ही कठीन होता है क्योंकि शब्द सीमित है लेकीन व्यक्तीत्व की रेखाए अपरिमीत है ।
प्रवचन के पश्चात सादडी स्वाध्याय मण्डल ने मेरे आनन्द गुरु परमात्मा, तुम्हें वन्दन करे मेरी आत्मा गीत का गान कीया ।
रमेशजी सोलंकी ने हरपल गुरुवर तेरी याद सताए भजन का गान कीया ।
तपस्या की कमी मे आज फैंसीबाई ने 4 उपवास के प्रत्याख्यान लिए । धर्म सभा का संचालन राजेश जी सोलंकी ने कीया ।
अनुष्ठान एवं गुणानुवाद सभा के श्चात गौतम प्रसादी रखी गई ।
गौतम प्रसादी के लाभार्थी-श्रीमती फुलीबाई मोहनलालजी मेहता, श्रीमती मंजुलता चंपालाल जी मेहता ,सौ कुसुम किशोर मेहता । मेहता अन्ड कंपनी।
प्रभावना के लाभार्थी- सुरजबाई पोपटलाल जी सौलंकी, राजेन्द्र सरोज जी सौलंकी परिवार ।