सादडी सदन पुणे । सादडी सदन पुणे में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे श्रमण संघीय जैन दिवाकरीय जिनशासन प्रभाविका श्री चारुप्रज्ञाजी म. सा आदि ठाणा 3 के सानिध्य मे चातुर्मास धर्म आराधना के साथ चल रहा है । तपस्या की कडी मे आज आईचुकीबाई (आशाबेन) तातेड ने 10 उपवास, वैशाली बलघट ने 8 उपवास, वनिताजी चंगेडीया ने 6 उपवास, अतुल छाजेड ने 4 उपवास के प्रत्याख्यान लिए ।
धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए जिनशासन प्रभाविका चारुप्रज्ञाजी म. सा ने कहा कि सेवा मानव-जीवन को उत्कृष्ट और पूर्ण बनाने की एक महत्वपूर्ण साधना है। जो फल अनेक तरह की तपश्चर्याओं, साधनाओं, कर्मकाण्ड, उपासनाओं से प्राप्त होता है वह मनुष्य को सेवा के द्वारा सहज ही मिल जाता है। मनुष्य का तन, मन, धन सब कुछ पवित्र बन जाता है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, विश्वात्मा का सान्निध्य प्राप्त होता है सेवा से। सेवा ही मनुष्य का सर्वोपरि धर्म है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन का यथार्थ लक्ष्य सेवा ही है। आध्यात्मिक, धार्मिक जीवन बिताने पर भी अन्ततः मनुष्य को सेवा की ही प्रेरणा मिलती है। जो जितना विकसित होगा उसमें सेवा की भावना उतनी ही प्रबल होगी।
यही मनुष्य के आत्म विकास की सच्ची निशानी है। जीवन लक्ष्य की मंजिल का मार्ग सेवा की सीढ़ियों पर होकर ही जाता है। सचमुच सेवा का मार्ग ज्ञान, मति तप योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है धन सम्पत्ति रूप यौवन प्रभुता सब मनुष्य को संतुष्ट करने में अपूर्व ही सिद्ध होते हैं, किंतु एक सेवा ही है जो उसे शाँति संतोष प्रदान करती है। सेवा जीवन यज्ञ है। इस में मनुष्य संसार रूपी कुण्ड में जनता जनार्दन के मुँह में सेवा की आहुतियाँ देता है। हमें सेवा को जीवन के एक आवश्यक व्रत के रूप में ग्रहण करना चाहिए। सेवा की साधना कोई भी किसी भी परिस्थिति में कर सकता है। सेवा के लिए पैसे की आवश्यकता नहीं है। उत्कृष्ट भावना, अपनी संकुचितता छोड़ कर जन जीवन के साथ एक रूप होना ही सेवा के लिए पर्याप्त है। जो लोग यह सोचते हैं क्या करें हमारे पास धन नहीं हम में कोई योग्यता नहीं कैसे सेवा करें? ऐसे लोग समझने में भूल करते हैं। पैसे से किसी की सेवा नहीं होती वह तो साधन है जो सेवा वृत्ति के विकास के साथ स्वयमेव ही चला आता है। बहुत से लोगों की शिकायत होती है, क्या करें अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। काम की चक्की में दिन रात इतने उलझे रहते हैं कि अवकाश ही नहीं मिलता। किंतु सेवा व्रत लेने वाले यदि में सेवा की इच्छा हो तो अत्यन्त व्यस्त जीवन में से भी समय निकाल सकते है।आवश्यकता इस बात की है कि हम में इसके लिए उत्कृष्ट अभिलाषा हो, प्रयत्न, भावना हो।सेवा को जीवन साधना का अंग मान कर हम आँशिक रूप में ही चालू कर सकते हैं। अधिक नहीं प्रति दिन एक दो घण्टे ही निकाल लें तो बहुत है। और यह किसी के लिए कठिन नहीं है। जब लोग खेल-कूद मनोरंजन सैर-सपाटों के लिए समय निकाल लेते हैं तो कोई कारण नहीं कि वे प्रति दिन कुछ भी समय सेवा के लिए न निकाल सकें । सैकडे अवसर सेवा के लिए हमारे समक्ष रहते हैं। हम इन अवसरों पर दूसरों की सहायता कर सकते हैं, उन्हें सहयोग दे सकते हैं। सेवा साधना में मनुष्य को अपने बड़प्पन, पद प्रतिष्ठा की भावना का त्याग करना आवश्यक है।
उक्त मंगल उदगार आज प्रात: जैन दिवाकरिय जिनशासन प्रभाविका चारुप्रज्ञाजी म. सा ने धर्म सभा मे प्रवचन देते हुए व्यक्त किए । साध्वी हेमप्रज्ञाजी म. सा ने ये जीवन है न मिल पाये दुबारा गीत का गान कीया । इससे पुर्व साध्वी जयप्रज्ञाजी म. सा ने प्रवचन दिया। प्रवचन के पश्चात 10 मिनट का ध्यान कराया गया । धर्म सभा का संचालन राजेश जी सोलंकी ने कीया ।
जानकारी देते हुए श्री संघ के महामंत्री अशोक जी कावेडीया ने बताया दिनांक 28 तारीख को वीतराग सेवा संघ पुणे की और से राष्ट्रसंत आचार्य आनन्दऋषीजी म. सा की जन्म जयंती के निमित भव्य रक्तदान शिवीर का आयोजन सादडी सदन मे किया जा रहा है। सभी अधिक से अधिक संख्या में पधारकर इस आयोजन को सफल बनाये।
सेवा ही मनुष्य का सर्वोपरि धर्म है:साध्वी चारुप्रज्ञा
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