सनस्क्रीन त्वचा के लिए कितनी जरूरी है? कौन-सी सनस्क्रीन सही रहेगी? गहरे रंग की त्वचा वालों को इसकी जरूरत होती है या नहीं, ये कई ऐसे सवाल हैं, जो सनस्क्रीन को लेकर मन में उठते हैं। जानते हैं, ऐसे ही सवालों के कुछ समाधान…
अमेरिकन कैंसर सोसायटी ने सिफारिश की है कि त्वचा के कैंसर से बचने के लिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें। 2013 में ऑस्ट्रेलिया में हुए शोध के अनुसार, सनस्क्रीन झुर्रियां पड़ने और त्वचा को ढीली होने से बचाती है। वहां की एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुमान के अनुसार, उम्र बढ़ने के कारण त्वचा में जो बदलाव आते हैं, उनमें से 90 प्रतिशत का कारण उम्र भर अल्ट्रावायलेट (यूवी) किरणों का एक्सपोजर है। नियमित सनस्क्रीन लगाने से न केवल त्वचा स्वस्थ रहती है, बल्कि त्वचा की कई समस्याओं से भी बचाव होता है। त्वचा स्वस्थ रखने वाले प्रोटीन का बचाव होता है। सनबर्न नहीं होता। त्वचा के कैंसर का खतरा कम होता है। साथ ही झुर्रियां पड़ने से भी बचाव होता है।
एसपीएफ क्या होता है एसपीएफ, अल्ट्रावायलेट किरणों से सनस्क्रीन द्वारा उपलब्ध कराई सुरक्षा को बताता है। त्वचा रोग विशेषज्ञ एसपीएफ 15 या एसपीएफ 30 लगाने की सलाह देते हैं। अगर किसी को दस मिनट में सनबर्न हो जाता है, तो एसपीएफ 15 वाली सनस्क्रीन इस समय को 15 गुना बढ़ा देती है यानी 150 मिनट कर देती है। पर एसपीएफ 30 वाली सनस्क्रीन 15 वाली सनस्क्रीन से दो गुना अच्छी है, ऐसा नहीं है। एसपीफ 15, 93% यूवीबी को फिल्टर करता है, तो एसपीएफ 30 इससे थोड़ा अधिक 97% यूवीबी को फिल्टर करता है। बाजार में कोई ऐसी सनस्क्रीन नहीं है, जो हानिकारक यूवी किरणों से 100 प्रतिशत सुरक्षा देती है। जिन लोगों को पसीना ज्यादा आता है, उन्हें वॉटर प्रूफ या स्वेट प्रूफ सनस्क्रीन लगानी चाहिए।
आपके लिए क्या है सही अधिकतर लोगों के लिए एसपीएफ 15 वाली सनस्क्रीन बेहतर होती है। जिन लोगों की त्वचा का रंग बहुत हल्का है या त्वचा के कैंसर का पारिवारिक इतिहास है या लुपस जैसे रोगों के कारण त्वचा सूर्य के प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, उन्हें एसपीफ 30 या उससे अधिक एसपीएफ वाली सनस्क्रीन लगानी चाहिए। सनस्क्रीन का चयन करने से पहले किसी अच्छे त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें।
हर रंग की त्वचा के लिए है जरूरी यह सही है कि सनस्क्रीन उन लोगों के लिए बहुत जरूरी है, जिनकी त्वचा का रंग हल्का (गोरी त्वचा में मेलानिन की मात्रा कम होती है) है या जिनकी त्वचा बहुत संवेदनशील है। पर जिनकी त्वचा का रंग गहरा (सांवला या काला) है, उन्हें भी इसे लगाना चाहिए। कारण, अल्ट्रावायलेट किरणें, हमारी त्वचा के अंदर तक प्रवेश कर जाती हैं और कोशिकाओं के डीएनए को क्षतिग्रस्त कर सकती हैं, जिससे त्वचा कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, अगर सनबर्न और धूप में त्वचा काली पड़ने की समस्या न हो, तब भी सनस्क्रीन लगानी चाहिए। कुछ लोग मानते हैं कि सनस्क्रीन लगाने से ही लोगों में विटामिन डी की कमी हो रही है, ऐसा नहीं है। विटामिन डी के लिए सुबह 10 बजे से पहले 30 मिनट धूप लेना ही काफी है।
कैसे और कितना लगाएं सनस्क्रीन धूप में निकलने से 15-30 मिनट पहले लगाएं। बहुत कम मात्रा में न लगाएं। चेहरे ही नहीं, शरीर के बाकी खुले भागों पर भी लगाएं। हर 2 घंटे बाद लगाएं। हमेशा अच्छे ब्रांड की सनस्क्रीन का ही इस्तेमाल करें।
सनस्क्रीन को जानें फिजिकल सनस्क्रीन: यह सनस्क्रीन त्वचा और सूर्य के बीच दीवार का काम करती है, जो सूरज की हानिकारक यूवी किरणों को त्वचा में प्रवेश करने से पहले ही वापस कर देती है। यह कम गाढ़ी होती है। इसका असर लंबे समय तक रहता है। इन्हें मिनरल सनस्क्रीन भी कहते हैं, क्योंकि इनमें प्राकृतिक मिनरल्स जिंक ऑक्साइड या टाइटेनियम डाइऑक्साइड का इस्तेमाल होता है। हालांकि इन मिनरल्स को कृत्रिम रूप से भी बनाया जा सकता है।
केमिकल सनस्क्रीन: यह त्वचा पर सुऱक्षा परत बनाने की बजाय उसमें अवशोषित होती है। जब त्वचा यूवी किरणों के संपर्क में आती है तो रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं, जो विकिरणों को ऊष्मा में बदल देती हैं, जिसे त्वचा बाहर कर देती है। इसका असर कम समय के लिए रहता है। इसे संवेदनशील त्वचा के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। शमीम खान (विशेषज्ञ: डॉ. अमित बांगिया, त्वचा रोग विशेषज्ञ, एशियन हॉस्पिटल, फरीदाबाद)
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