कॉक्स बाजार:बांग्लादेश ने रह रहे 2.7 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और बांग्लादेश सरकार ने शुक्रवार को पहचान पत्र जारी किए। इस पहचान पत्र के जरिए शरणार्थियों को वतन वापसी का अधिकार मिल जाएगा। जिससे उनके कुछ बेहतर कल की उम्मीद बंध रही है। म्यांमार में हिंसा का शिकार हुए रोहिंग्या समुदाय के लिए यह ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि इस समुदाय के पास अब तक किसी भी तरह का पहचानपत्र नहीं है, जिस कारण वे राज्यविहीन समुदाय बन चुके हैं। यूएनएचसीआर के प्रवक्ता आंद्रेज माहेसिस ने बताया कि म्यांमार से आए 2.70 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को पंजीकृत कर पहचान पत्र जारी कर दिया गया है। अबतक कुल 270348 शरणार्थियों वाले 59842 परिवारों को पहचान पत्र जारी किया गया है।
प्रतिदिन हजारों शरणार्थियों का पंजीकरण हो रहा
छह जगहों पर हर दिन चार हजार से ज्यादा शरणार्थियों का पंजीकरण किया जा रहा है। इन स्थानों पर कुल 450 से अधिक कर्मचारी लगातार काम करते हैं। पंजीकरण की प्रक्रिया पिछले साल जून में शुरू हुई जिसे इस साल के अंत तक पूरा किए जाने का लक्ष्य है।
बंगलादेश में नौ लाख से ज्यादा रोहिंग्या ने ली शरण
अभी तक रोहिंग्या शरणार्थियों की बड़ी संख्या के पास कोई पहचानपत्र नहीं था। पहचानपत्र होने से उन्हें अन्य मानवीय अधिकार भी मिल सकेंगे। म्यांमार में अगस्त, 2017 से रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई जिसमें बड़ी संख्या में बच्चों, महिलाओं को पुरुषों ने जान गंवाई। डर के कारण 741000 रोहिंग्या ने वहां से भागकर बंगलादेश में शरण ली। बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट किनारे बसे शहर कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविरों में फिलहाल 9 लाख से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं, इसमें से कुछ पहले से ही बांगलादेश में रह रहे थे।
म्यांमार हिंसा से प्रताड़ित होकर भागे
रोहिंग्या को ऐतिहासिक तौर पर अरकानी भारतीय नाम से भी जाना जाता है। म्यांमार देश के रखाइन राज्य और बांग्लादेश के चटगांव इलाके इस समुदाय के मूल क्षेत्र हैं। रखाइन राज्य के बौद्ध बहुल होने के कारण रोहिंग्याओं पर इस समुदाय ने हमले किए। म्यांमार के सुरक्षा बलों ने भी आम रोहिंग्याओं पर हमले किए। अत्याचार के माहौल से तंग आकर इस समुदाय की बड़ी आबादी थाईलैंड में शरणार्थी हो गई।