नई दिल्ली: कृषि कर्जमाफी जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रमों से प्रदेश सरकारों के खजाने पर बढ़ते बोझ के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने राज्यों में राजकोषीय संतुलन डगमगाने के बारे में आगाह किया है। आरबीआइ ने बुधवार को 15वें वित्त आयोग के साथ बैठक में इस बारे में संकेत दिया। आरबीआइ ने यह भी कहा कि जीडीपी के अनुपात में राज्यों पर बकाया कर्ज भी बढ़ रहा है।
आरबीआइ ने कहा कि उदय (बिजली वितरण कंपनियों की आर्थिक सेहत सुधारने की योजना), कृषि कर्जमाफी और इनकम सपोर्ट जैसी योजनाएं राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं को तगड़ी चोट पहुंचा रही हैं। इन योजनाओं के चलते वित्त वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमानों में राज्यों में राजकोषीय अनुशासन बनाये रखने की कोशिशें पटरी से उतर सकती हैं। बैठक में आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास और 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह सहित कई शीर्ष अधिकारी मौजूद थे।
आरबीआइ की चेतावनी भरी टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आम चुनाव से पहले कई राज्यों ने किसानों और गरीबों के लिए लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा की है। राजकोषीय अनुशासन के पटरी से उतरने को खराब राजकोषीय प्रबंधन करार देते हुए आरबीआइ ने संशोधित अनुमानों में निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं किए जाने को लेकर भी चिंता प्रकट की है। हालांकि, राज्यों ने वित्त वर्ष 2019-20 की शुरुआत में जो बजटीय अनुमान पेश किए हैं उससे राजकोषीय घाटा कम रहने का संकेत मिलता है। आरबीआइ ने यह भी कहा कि राजस्व प्राप्तियों के अनुपात में ब्याज भुगतान में कमी आने के बावजूद राज्यों पर जीडीपी के अनुपात में बकाया कर्ज में वृद्धि हो रही है।
बैठक में सरकारी उधारी, राज्य वित्त आयोगों के गठन और वित्त आयोग को स्थायी रूप से जारी रखने जैसे विषयों में पर भी चर्चा हुई। साथ ही राज्यों को बाजार से उधार लेने में आने वाली चुनौतियों के संबंध में भी बैठक में चर्चा की गई। बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि राज्यों को उनका नकदी प्रबंधन बेहतर बनाना चाहिए। साथ ही राज्यों को नकदी की जरूरत की भविष्यवाणी करने की क्षमता में भी सुधार करना चाहिए।