नई दिल्ली:चुनावों के इस मौसम में त्रिपुरा हाईकोर्ट का दिलचस्प फैसला आया है। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक भाषणों में नेताओं द्वारा गालियों और अपशब्दों का इस्तेमाल अपराधिक धमकी के दायरे में नहीं आएगा।
हाईकोर्ट ने कहा तमाम भाषण होते है जिसमें बहुत कुछ कहा जाता है, जिनका कोई मतलब नहीं होता। न ही वे ठोस बातें होती हैं। त्रिपुरा के इस मामले में उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए सीपीआई नेता और राज्यसभा सांसद झरना दास बैद्या के खिलाफ अपराधिक मुकदमा खत्म करने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि भाषण के दौरान गाली गलौज, अपशब्दों का इस्तेमाल और शारीरिक इशारे आईपीसी की धारा 503, 504 व 506 के दायरे में नहीं आएंगे।
शिकायत के अनुसार, कम्युनिस्ट नेता ने भाषण में कहा था कि 2018 में विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विप्लव देब और उनके अभियानकर्ता तो त्रिपुरा में रहेंगे नहीं, लेकिन कार्यकर्ता यहीं रहेंगे, वे गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। गोमाती उदयपुर के मजिस्ट्रेट ने शिकायत पर संज्ञान लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि एक तो आरोपी एमपी है और उनके खिलाफ सीआरपीसी धारा 197 के तहत पूर्व अनुमति लिए केस नहीं चल सकता। दूसरे इस मामले में अपराधिक धमकी से संबंधित आईपीसी की धारा 503, 504 व 506 के लागू करने लिए आवश्यक तथ्यों को अभाव है। पदमामोहन जमातिया ने इस फैसले के खिलाफ अपील की।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने फैसले में कहा कि इस मामले में मुकदमे के लिए पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है, क्योंकि सांसद कोई सरकारी कार्य नहीं कर रहे थे, वह एक राजनैतिक सभा में थे जिसका सरकारी ड्यूटी से कोई ताल्लुक नहीं है। जहां तक भाषण का सवाल है तो इसमें उकसावा होना चाहिए और यह भी वास्तविक होना जरूरी है, जिससे कोई भड़क कर किसी को शारीरिक चोट पहुंचा दे। इस मामले में शिकायतकर्ता ने इस बात को खुद नहीं सुना है, उसे यह बात तीसरे व्यक्ति ने बताई बताई है। इसके बाद उसे टीवी अखबार से यह पता लगा।
कोर्ट ने कहा भाषण में सामान्य शब्द हैं जो किसी को निशाना बनाकर नहीं कहे गए हैं। इसमें किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचने के लिए भी नहीं कहा गया है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की जाती है।