- 7 कि.मी. का विहार, चारदिवसीय प्रवास को पधारे युगप्रधान गुरुराज
- अपने आराध्य के अभिनंदन में उमड़ी जनता, भव्य स्वागत जुलूस से किया अभिनंदन
- सुख की प्राप्ति के लिए स्वयं को तपाने का हो अभ्यास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
- पिंपरी चिंचवड़ की जनता ने अपने आराध्य के अभिनन्दन में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति
23.03.2024, शनिवार, पिंपरी चिंचवड़, पुणे (महाराष्ट्र)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ पिंपरी चिंचवड़ में भव्य मंगल प्रथम पदार्पण किया तो अपने आराध्य के स्वागत में श्रद्धालु जनता सागर की भांति उमड़ पड़ी। भारत के सुदूर क्षेत्रों के साथ नेपाल-भूटान की यात्रा करने के उपरान्त महाराष्ट्र की धरा को पावन बनाने वाले ज्योतिचरण के स्पर्श से पिंपरी चिंचवड़ की धरती भी मानों कृतार्थ हो गई। आचार्यश्री पिंपरी चिंचवड़ में होली सहित चार दिवसीय प्रवास निर्धारित है।
शनिवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल ताथवड़े से मंगल प्रस्थान किया। आज ज्योतिचरण तेरापंथ के श्रद्धा के क्षेत्र पिंपरी चिंचवड़ की ओर पधार रहे थे। इस क्षेत्र में एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री का यह प्रथम पदार्पण था। इस बात से पिंपरी चिंचवड़ की जनता श्रद्धा से ओतप्रोत नजर आ रही थी। कई उत्साही श्रद्धालु अपने आराध्य के स्वागत हेतु विहार में ही उपस्थित हो गए थे। हालांकि आज का विहार सात किलोमीटर का ही था, किन्तु प्रतिक्षारत श्रद्धालुओं इतनी दूरी भी मानों बहुत अधिक प्रतीत हो रही थी। जन-जन को आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री के पावन चरण जैसे ही पिंपरी चिंचवड़ की धरती पर पड़ी, पूरा वातावरण श्रद्धालुओं द्वारा उच्चरित जयघोष से गुंजायमान हो उठी। भव्य स्वागत जुलूस में सद्भावना की झलक दिखाई दे रही थी। अनेकानेक झाकियां अपने आराध्य के अभिनन्दन में दिखाई दे रही थीं। श्रद्धा के जुड़ते हाथ और भक्ति भाव से झुकते माथे को अपने दोनों करकमलों से आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री प्रवास स्थल की ओर बढ़ते जा रहे थे। मार्ग में जैन विद्या प्रसारक मंडल द्वारा संचालित रसिकलाल एम धारीवाल इण्टरनेशनल स्कूल के बच्चों ने आचार्यश्री का स्वागत किया। यहां आयोजित संक्षिप्त कार्यक्रम में आचार्यश्री ने बच्चों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
तदुपरान्त लगभग सात किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पिंपरी चिंचवड में चार दिवसीय प्रवेश के लिए एलप्रो इण्टरनेशनल स्कूल में पधारे। पिंपरी चिंचवड़ की धरा से शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रथम पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी सुखी जीवन जीना चाहता है। कई सुख की चाह होते हुए भी आदमी को दुःख भी प्राप्त हो जाते हैं। दुनिया में अनेक प्रकार के दुःख होते हैं। शारीरिक कष्ट भी प्राप्त होता है। बुढ़ापा दुःख देने लगता है, बीमारी दुःख का कारण बनती है। कई बार आदमी मानसिक दुःख से व्यथित होता है। सभी दुःखों मंे मूल में मोहनीय कर्म होता है, जिसके कारण दुःख पैदा होता है। शास्त्रों में सुखी रहने सूत्र बताया गया कि अपने आपको को तपाओ। सुकुमारता को छोड़कर कठोर जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। सुविधावादी नहीं श्रमशील जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए। सुविधावादिता एक अपेक्षा तक ठीक हो सकती है, किन्तु असुविधा में भी समता के साथ जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में परेशान होने के बजाय कठोरता से जीवन जीने का प्रयास होना चाहिए। कठिनाइयों से दूर नहीं भागना, भले उसका यथौचित्य सामना करने का प्रयास करना चाहिए।
पिंपरी चिंचवड़ की जनता को साध्वीप्रमुखाजी ने भी उद्बोधित किया। तेरापंथी सभा-पिंपरी चिंचवड़ के अध्यक्ष श्री प्रकाश गांधी, एलप्रो इण्टरनेशनल स्कूल के ऑनर श्री राजेन्द्र डाबड़ीवाल ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ युवक परिषद ने संयुक्त रूप से स्वागत गीत का संगान किया।