- भव्य स्वागत जुलूस के साथ ठाणेवासियों ने अपने सुगुरु का किया अभिनंदन
- रेमण्ड कैम्पस पूज्यचरणों से हुआ पावन, पांच दिनों का प्रवास इसी कैम्पस में
- मोक्ष की प्राप्ति तक अहिंसा के राजमार्ग पर चले मानव : अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण
- एमएलसी सहित ठाणेवासियों ने व्यक्त किए अपने हृदयोद्गार
16.01.2024, मंगलवार, ठाणे (वेस्ट), (महाराष्ट्र)। मुम्बई महानगर के उपनगरों की विस्तृत यात्रा करने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को ठाणे जिले में पावन प्रवेश किया तो ठाणेवासी खुशी से झूम उठे। अपने आराध्य को अपने क्षेत्र में पाकर तेरापंथी श्रद्धालु ही नहीं, अपितु अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी उत्साहित नजर आ रहे थे। प्रातःकाल की मंगल बेला में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मुलुण्ड से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में अनेकानेक श्रद्धालु जनता आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुई।
मायानगरी में आध्यात्मिकता की गंगा को प्रवाहित करने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे-जैसे ठाणे की ओर बढ़ते जा रहे थे, ठाणेवासियों का उत्साह भी बढ़ता जा रहा था। मार्ग में मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के आचार्यश्री मुक्तिसागरजी अपने शिष्यों के साथ आचार्यश्री के सम्मुख उपस्थित हुए। दोनों संप्रदाय के आचार्यों का स्नेहिल मिलन लोगों को उल्लसित बना रहा था। विहार के दौरान आचार्यश्री ने जैसे ही ठाणे की सीमा में मंगल प्रवेश किया, पूरा ठाणे मानों जयघोष से गुंजायमान हो उठा। बुलंद जयघोष के साथ स्वागत जुलूस का भी क्रम प्रारम्भ हो गया। आचार्यश्री जन-जन को अपने दोनों करकमलों से आशीर्वाद प्रदान करते हुए ठाणे के पंचदिवसीय प्रवास हेतु रेमण्डल के कैम्पस में पधारे।
इस कैम्पस के निलगिरी उद्यान में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संदेश प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अहिंसा की वृत्ति भी होती है तो हिंसा की चेतना भी होती है। हिंसा और अहिंसा दोनों ही आदमी के जीवन में देखी जा सकती है। हिंसा का अभाव अहिंसा है। आदमी हिंसा करता है, प्राणीयों को कष्ट पहुंचाता है, उसकी पृष्ठभूमि में राग और द्वेष की वृत्ति काम करती है। समरांगण में युद्ध बाद में होता है, उसकी पहली लड़ाई दिमाग में ही प्रारम्भ होती है। जीवन व्यवहार में भी हिंसा और अहिंसा को देखा जा सकता है। एक-दूसरे को कष्ट पहुंचाना या उत्पीड़ित करना भी परिवार, समाज अथवा में देश को देखने को मिल सकता है।
हिंसा का संस्कार आदमी के भीतर में होता है। अहिंसा का भाव भी आदमी के भीतर होते हैं। मनुष्य कभी अहिंसा के भावों में तो कभी वह हिंसात्मक भावों में भी चला जाता है। जिस प्रकार अहिंसा परम धर्म है, उसी प्रकार अपरिग्रह को भी परम धर्म कहा गया है। परिग्रह और लोभ के कारण आदमी हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है। कई बार बाह्य परिस्थितियां हिंसा की प्रवृत्ति में निमित्त बन सकती हैं। भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी- ये भी आदमी की हिंसा को प्रज्ज्वलित करने में सहायक बन सकता है। आदमी क्रोध और लोभ के कारण हिंसा कर सकता है। हिंसा दुःख पैदा करने वाली होती है। अहिंसा शांति प्रदान करने वाली होती हैं। आदमी को अहिंसा के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा के पथ पर चलने से उन्नति भी हो सकती है।
आदमी को प्राणी मात्र के प्रति मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा सभी प्राणियों का क्षेम और कल्याण करने वाली है। इसलिए अहिंसा को माता भी कहा गया है। अहिंसा को सुरक्षित रखने के लिए आदमी के भीतर समता के भाव का भी विकास करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा के राजमार्ग पर चलते रहने का प्रयास हो तो मोक्ष की मंजिल भी प्राप्त हो सकती है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। ठाणे के स्वागताध्यक्ष श्री महेन्द्र बागरेचा, तेरापंथी सभा ठाणे के अध्यक्ष श्री रमेश सोनी, रेमण्ड कम्पनी के संयोजक व स्थानकवासी समाज की ओर से श्री शांतिलाल पोखरना व मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री उत्तमचंद सोलंकी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ठाणे के भाजपा एमएलसी श्री निरंजन डावखेरे ने भी आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।