- धर्म, अधर्म और संयतासंयत की स्थिति को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
- भाद्रव शुक्ला द्वादशी से जुड़े अनेक ऐतिहासिक प्रसंग : आचार्यश्री महाश्रमण
26.09.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि साधु का धर्म में स्थित है? जो संयत नहीं हैं, वे अधर्म में स्थित हैं और संयतासंयत हैं वे धर्माधर्म में स्थित हैं? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि हां, संयम, अहिंसा, तप, में लगा हुआ साधु धर्म में स्थित होता है। जिसमें न कोई संयम, न त्याग, न तप होता है, जो असंयमी होता है, वह अधर्म में स्थित होता है और जिसके जीवन में थोड़ा संयम, नियम आदि है और थोड़ा नहीं है अर्थात् वह श्रावक जो संयतासंयत है, धर्माधर्म में स्थित होता है।
साधु अपने जीवन में 18 पापों से विरत होता है। मन, वचन और काया से उसके सर्व प्रकार की हिंसा का त्याग होता है, असंयमी और अव्रती का जीवन अधर्म में स्थित हो जाता है। श्रावक अपने जीवन में कुछ व्रत रखता, नियम पालता है, व्रत, उपवास, जप आदि का भी प्रयोग करता है और गृहस्थ है तो आरम्भ, समारम्भ, खाना-पीना बनाना आदि भी करता है तो वह धर्माधर्म में स्थित होता है। साधु के रूप में धर्म में स्थित हो जाना तो बहुत बड़ी बात होती है। उक्त पावन पावन प्रेरणा मंगलवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान कीं।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगे कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्य, प्रथम गुरु महामना आचार्यश्री भिक्षु हुए। धर्म में रहते हुए तपस्या कर लेना किसी अच्छी बात होती है। महामना आचार्यश्री भिक्षु ने आज के ही दिन अर्थात् भाद्रव शुक्ला द्वादशी को अनशन स्वीकार कर लिया था। आज के ही दिन से जुड़ा हुआ एक और प्रसंग है कि तेरापंथ धर्मसंघ के सातवें अनुशास्ता आचार्यश्री डालगणी का महाप्रयाण हुआ था। वे तेरापंथ धर्मसंघ के विलक्षण आचार्य थे। उनको किसी आचार्य ने अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया, बल्कि संतों की हुई बैठक के बाद उन्हें आचार्य बनाया गया। वे तेजस्वी और विलक्षण आचार्य थे। उन्होंने अपने आचार्यकाल में तीन बार कच्छ-भुज की यात्रा की। लगभग 12 वर्षों का उनका आचार्यकाल रहा।
भाद्रव शुक्ला द्वादशी को लाडनूं में उनका महाप्रयाण हो गया था। वैसे आज का दिन परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और मुझसे भी जुड़ा हुआ है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने आज के ही दिन अपने युवाचार्य की नियुक्ति की थी, यानी मुझे अपनी अमल-धवल चद्दर ओढ़ाई थी। पूज्य गुरुदेव द्वारा यह दायित्व का आशीर्वाद आज के ही दिन प्राप्त हुआ था। हम सभी ज्यादा से ज्यादा अपने आपको धर्म में रत रहने का प्रयास करें और अपनी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त श्री रवि मालू ने गीत का संगान किया। साध्वी मंजुरेखाजी ने अपने सुगुरु के मुख से आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। अन्य अनेक तपस्वियों ने श्रीमुख से अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।