- भगवती सूत्र के माध्यम से आचार्यश्री ने भावों का किया वर्णन
- ज्ञानशाला का है व्यापक नेटवर्क : आचार्यश्री महाश्रमण
25.09.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। पर्युषण महापर्व के परिसम्पन्न होने के उपरान्त देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं के आने का क्रम पुनः प्रारम्भ हो गया है। नन्दनवन में संघबद्ध पहुंच रहे श्रद्धालु अपने आराध्य की सेवा-उपासना के साथ-साथ मंगल प्रेरणा पाथेय को प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। मुम्बई के पंचमासिक चतुर्मास के तीन महीने पूर्ण होने वाले हैं, किन्तु श्रद्धालुओं को उत्साह में सदैव नवीनता ही देखने को मिल रही है।
सोमवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भाव कितने प्रकार के होते हैं? भगवान महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि भाव छह प्रकार के होते हैं- औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक व सान्निपातिक। अध्यात्म जगत में आत्मवाद और कर्मवाद का सिद्धान्त है। अध्यात्म के ये दो महास्तंभ हैं। आत्मा है तो फिर कर्म की बात होती है।
भाव आत्मा और कर्म से जुड़ी हुई स्थिति है। कर्मों के उदय और विलय से निस्पन्न होने वाली आत्मा की अवस्था भाव है। यह भाव जीव का स्वरूप है। औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक सब भाव हैं। आत्मवाद और कर्मवाद के आलोक में हम भाव को देख सकते हैं। अज्ञानता की स्थिति ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होती है और उसके क्षायोपशमिक भाव से ज्ञान के विकास की बात होती है। हालांकि केवलज्ञानी के समक्ष तो किसी का कितना ज्ञान हो सकता है। किसी को इस जगत में विद्वान कहा जाए, किन्तु केवलज्ञानी के समक्ष उसके कितना मामूली ज्ञान हो जाता है। इसी प्रकार मोहनीय कर्म की स्थिति भी बनती है। आदमी को अपने भावों को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलन/दीक्षान्त समारोह के अंतिम दिन मंचीय कार्यक्रम समायोजित हुआ। इस संदर्भ में ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहनराज चोपड़ा व श्री किशनलाल डागलिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमारजी ने भी अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए।
आचार्यश्री ने समुपस्थित प्रशिक्षक/प्रशिक्षिकाओं को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञानशाला परियोजना जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की बहुपयोगी परियोजना है। यह लम्बे समय से संचालित है। ज्ञानशाला में जो भी बच्चों को प्रशिक्षण देते हैं, उनके प्रशिक्षण की बात है। यह प्रशिक्षण मानों बीएड, एमएड की भांति है, जो प्रशिक्षण देने की कला का विकास कर सकता है। ज्ञानशाला के विकास में अभिभावकों का भी प्रसंग होता है। इसके लिए प्रबन्धन संबंधी बातें भी होती हैं। ज्ञानशाला एक व्यापक नेटवर्क है। कितनी-कितनी जगह ज्ञानशालाएं संचालित होती हैं। गुरुदेव तुलसी के समय जन्मी यह व्यवस्था भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित बनाने का प्रयास कर रही है। भौतिकता इतनी भी हावी न हो, इसके लिए भौतिकता पर आध्यात्मिकता, संस्कार और अध्यात्म का अंकुश रहना चाहिए। यह अंकुश बच्चों में जन्म से भी विकसीत और पुष्ट हो जाएं तो कोरे भौतिकतावाद से बचा जा सकता है। ज्ञानशाला बच्चों को प्रशिक्षण के माध्यम से अच्छे ज्ञान और संस्कार के विकास का प्रयास करती रहे।
कार्यक्रम के अंत में ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-मुम्बई ने भी अपनी प्रस्तुति दी व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।