“निषेधात्मक विचारों को रोकने का सरल उपाय है स्वाध्याय”
बल्लारी। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य डॉ मुनिश्री पुलकित कुमारजी मुनि आदित्य कुमारजी ठाणा 2 के पावन सानिध्य में पर्युषण महापर्व की आराधना उत्साह से की जा रही है। डॉ मुनिश्री ने कहा पर्युषण आत्मनिवास का पर्व है। जैन समुदाय में पर्युषण की आराधना त्रिसंध्या अनुष्ठान के रूप में होती है जैसे प्रातः मुनि के मुख से प्रवचन सुनना, दोपहर को जाप व स्वाध्याय करके एवं सायंकाल प्रतिक्रमण द्वारा आत्मलोचन करना होता हैं। जैन पर्व त्याग प्रधान होते हैं। पर्युषण एक दृष्टि से आत्मनिवास का पर्व है।
मुनि पुलकित कुमारजी ने स्वाध्याय दिवस की प्रेरणा देते हुए कहा निषेधात्मक विचारों को रोकने का सरलतम उपाय है स्वाध्याय करना। स्वाध्याय कर्म निर्जरा तथा आत्म उज्जवलता का उत्तम साधन भी है। भारतीय संस्कृति की तीनों मुख्य धाराओं वैदिक, जैन एवं बौद्ध में ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वाध्याय को महत्वपूर्ण बताया है। स्वाध्याय अर्थात् स्वयं के द्वारा स्वयं को जानने का प्रयास है। जो स्वाध्यायशील होता है वही महान और भगवान बन सकता है।
नचिकेता मुनि आदित्य कुमारजी ने स्वाध्याय दिवस के संदर्भ में गीत प्रस्तुत करते हुए स्वाध्याय के पांच प्रकारों का विवेचन किया। प्रवचन के पश्चात हॉस्पेट से समागत खुशबू रितेश तातेड तथा सिंधनूर से राजेंद्र जीरावला ने मुनिश्री से 27 दिन मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान लिया। इस अवसर पर महिला मंडल अध्यक्षा प्रवीणा लुणावत, प्रतीक जीरावला, तेरापंथ सभा अध्यक्ष कमलचंद छाजेड़ मोतीचंद भंडारी प्रवीण गोठी मंगलचंद नाहर ने तपस्वी बहन तथा भाई का महाश्रमण मोमेंट से तप अभिनंदन किया। मासखमण तपस्वी भाई राजेंद्र जीरावला ने मुनिश्री के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।इस अवसर पर रोहिणी देवी, रेखा देवी जीरावला, जवाहरलाल चोपड़ा,मनिष चोपड़ा, महावीर जीरावला, राकेश, रितेश तातेड आदि उपस्थित थे।