04.09.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। मानव-मानव के कल्याण के लिए महान अहिंसा यात्रा करने वाले, अपने दो सुकोमल चरणों से लगभग 55 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर नवीन इतिहास का सृजन करने वाले, जन-जन में आध्यात्मिकता की ज्योति जगाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2023 का पांच महीने का चातुर्मासिक प्रवास मुम्बई महानगर के नन्दनवन परिसर में कर रहे हैं। नन्दनवन जन-जन का मानों तीर्थ बना हुआ है। जहां लोगों के आने का क्रम निरंतर लगा हुआ है।
सोमवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर के अंतःवासी संतों में गौतम स्वामी का नाम आता है। गौतम स्वामी का भगवान महावीर से मानों विशेष लगाव था। एक बार गौतम स्वामी के मन में थोड़ी कमजोरी हुई और उन्होंने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि प्रभो! मेरे द्वारा दीक्षित साधु-संतों को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई, वे केवली बन गए, किन्तु मुझे अभी तक केवलज्ञान की प्राप्ति क्यों नहीं हुई? भगवान महावीर ने अपने प्रमुख शिष्य की कमजोरी को दूर करते हुए पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि तुम्हारा मेरे प्रति चीरकाल से प्रेम है। तुम्हारा मेरे प्रति विशेष राग का भाव है।
भगवान महावीर ने राग भाव को व्याख्यायित करते हुए कहा कि राग के दो प्रकार होते हैं- प्रशस्त राग और अप्रशस्त राग। पदार्थों के प्रति, वस्तु, व्यक्ति आदि के प्रति राग अप्रशस्त राग होता है। इसे तुच्छ राग भी कहा जाता है। प्रशस्त राग वह है जो कल्याणकारी हो। अपने देव, गुरु और धर्म के प्रति राग का भाव हो तो वह प्रशस्त राग होता है, किन्तु केवलज्ञान प्राप्ति के लिए प्रशस्त राग का भी नाश होना आवश्यक होता है। गौतम स्वामी को भगवान महावीर के प्रति प्रशस्त राग का भाव था। वह भाव अनेक जन्मों से उनके साथ रहा और मोक्ष में भी साथ-साथ ही हैं। भगवान महावीर ने गौतम स्वामी को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मेरे प्रति तुम्हारा जो राग भाव है, वह तुम्हारे केवलज्ञान प्राप्ति में बाधक बन रहा है, किन्तु मेरे जाने के बाद तुम्हें भी केवलज्ञान की प्राप्ति होगी। भगवान महावीर के महाप्रयाण के उपरान्त गौतम स्वामी को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।
इससे मानव को यह प्रेरणा लेना चाहिए कि ज्यारा राग और मोह भाव से बचने का प्रयास करना चाहिए। राग व मोह का भाव अपने प्रिय के वियोग पर दुःख और व्यथित करने वाला बन सकता है। संयोग है तो वियोग भी स्वाभाविक है। मृत्यु के किसी के वश में नहीं होती। कभी तो माता-पिता के रहते ही बेटा चला जाता है। जीवन में कभी ऐसी स्थिति भी बन सकती है तो आदमी को यह धैर्य व साहस रखने का प्रयास करना चाहिए कि मृत्यु को रोक पाना किसी के हाथ की बात नहीं। जिसका जितने समय का संयोग था, वह रहा। ऐसी विकट परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा भगवती के सातवें खण्ड को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि भगवती जैसे विशालकाय आगम का यह सातवां खण्ड आया है। आगमों से विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री भिक्षु के समय तो इस रूप में कितने आगम प्राप्त हुए या नहीं हुए, किन्तु आचार्यश्री भिक्षु और श्रीमज्जयाचार्य में कितना आगमिक ज्ञान रहा। कितनी प्रतिभा रही कि श्रीमज्जयाचार्य ने भगवती सूत्र पर राजस्थानी भाषा में राग-रागिणियों में विशालकाय ग्रंथ को उद्भाषित कर दिया। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय से आरम्भ हुआ आगमों का यह कार्य आज भी चल रहा है। किसी समय महासभा आगमों के प्रकाशन करने वाली थी, किन्तु अब जैन विश्व भारती आगमों, ग्रंथों आदि के प्रकाशन का काम करती है। इसमें साधु-साध्वियों और श्रावक समाज का भी योगदान है। इस संदर्भ में मुनि अभिजितकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। गुरुदेव ठिकाणा सेवा संयोजक श्री अविनाश इंटोदिया ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए अपनी टीम के साथ गीत का संगान किया।