– ज्ञान की निर्मलता को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
– सरसशैली में आचार्यश्री ने किया कालूयशोविलास का वाचन
21.08.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न मायानगरी मुम्बई के मीरा-भायंदर महानगरपालिका के अंतर्गत घोड़बंदर रोड के निकट स्थित नन्दनवन परिसर। जहां जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी सैंकड़ों साधु-साध्वियों संग वर्ष 2023 का चतुर्मास कर रहे हैं। यह परिसर आध्यात्मिक वातावरण से आच्छादित नजर आ रहा है। जिस प्रकार बाहर की ओर पहाड़ों पर छाई हरियाली जन-जन को मंत्रमुग्ध बना रही है, उसी प्रकार नन्दनवन में श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली गुरुवाणी जन-जन का आध्यात्मिक-धार्मिक भावों से सराबोर कर रही है।
सोमवार को नन्दनवन परिसर में बने विशाल तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीव और पुद्गल का सम्बन्ध होता है। शरीर जो दिखाई देता है, वह पुद्गल है तो शरीर के भीतर स्थित चेतना जीव है। जीव और पुद्गल के सम्बन्ध से सृष्टि पर जीवन चलता है। दिखाई देने वाले शरीर से मानों पुद्गल का थोड़ा दूर का सम्बन्ध है, किन्तु तैजस और कार्मण शरीर से तो पुद्गल का बहुत निकटता का सम्बन्ध है। तैजस और कार्मण के साथ जीव का ऐसा सम्बन्ध होता है, कि स्थूल शरीर की मृत्यु के बाद भी तैजस और कार्मण शरीर के साथ जीव प्रस्थान करता है।
आचार्यश्री ने शरीर की स्थितियों की जानकारी देते हुए कहा कि जिस चीज की प्राप्ति कर्मों के अभाव से होती है, उनमें वर्ण, रस, गंध और स्पर्श नहीं होता। बुद्धि भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम भाव से प्राप्त होने वाली है, इसलिए इसमें वर्ण, रस, गंध और स्पर्श नहीं होता। ज्ञानावरणीय कर्म जितना हल्का होता है, बुद्धि उतनी ही निर्मल होती है। बुद्धि से कितना-कितना कार्य किया जा सकता है। बुद्धि और ज्ञान का विकास खूब अच्छा हो सकता है। गुरु के विनय, सेवा, अवस्था और ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम बुद्धि के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। बुद्धि व ज्ञान का विकास तो बहुत अच्छा होता है, किन्तु उसके साथ यह भी ध्यान देने का प्रयास होना चाहिए कि बुद्धि का सही सदुपयोग हो। बुद्धि और ज्ञान का विकास है तो आज दुनिया कहां चन्द्रमा है और उसके पास चन्द्रयान आदि भेज सकता है। बुद्धि का अच्छा उपयोग तो और कितना अच्छा विकास हो सकता है। बुद्धि व ज्ञान से भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिकता का भी अच्छा विकास हो सकता है। आगम के सूत्रों के रहस्यों व मूल अर्थ को उजागर किया जा सकता है। बुद्धि का अपना जगत होता है। बुद्धि के विकास और उसके सदुपयोग का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त पूज्य कालूगणी के जीवनवृत्त ‘कालूयशोविलास’ का सरसशैली में वाचन किया। इस वाचन के माध्यम से वर्तमान में आचार्यश्री कालूगणी के जीवन के अंतिम क्षणों का वर्णन किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी उपस्थित जनता को अभिप्रेरित किया।