- प्रतिनिधि सम्मेलन के दूसरे दिन भी प्रतिनिधियों पर बरसी गुरुकृपा
- प्रतिकूल परिस्थिति में धर्म के प्रति अडिग रहने को आचार्यश्री ने किया उत्प्रेरित
- कालूयशोविलास के आख्यान से भी लाभान्वित हुई जनता
14.08.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)। सृष्टि में दो प्रकार की व्यवस्थाएं बताई गई हैं। एक व्यवस्था जहां कोई मुखिया नहीं होता, वहां सभी अपने-अपने कार्य स्वतः संपादित करते हैं। दूसरी व्यवस्था होती है जहां परिवार, समाज, संगठन, संस्था अथवा राष्ट्र का कोई न कोई मुखिया होता है, कोई विधान, संविधान, मर्यादा, व्यवस्था, नियम आदि होते हैं, जिसके माध्यम से व्यवस्थाएं सकुशल रूप में संचालित की जाती हैं। इस सभी तंत्रों व व्यस्थाओं का एक ही लक्ष्य होता है कि इससे जुड़े हुए लोग सुखी रहें, व्यवस्थाएं सुचारू चलें और उनकी सुरक्षा, सुविधा आदि के द्वारा सार-संभाल होती रहे व विकास होता रहे।
हमारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में भी शासन, विधान, मर्यादा व व्यवस्था के लिए संहिताएं और मर्यादावली आदि बने हुए हैं। चारित्रात्मा समुदाय के लिए अनुशासन संहिता निर्धारित की गई है तो गुरुकुलवासी चारित्रात्माओं के लिए एक अलग अनुशासन संहिता बनी हुई है। साधु के लिए मर्यादावली भी है। श्रावक समाज के लिए श्रावक संदेशिका के माध्यम से मर्यादा, व्यवस्थाएं निर्धारित की गई हैं। धर्मसंघ की संस्थाओं के लिए भी नियम हैं। हमारे धर्मसंघ में अनेक संस्थाएं हैं, उनमें से एक है जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा। इसका शुभारम्भ पूज्य कालूगणी के समय हुआ था। इस संस्था को बने हुए सौ वर्षों से अधिक का समय हो गया। तब लेकर अब तक महासभा ने खूब विकास किया है। महासभा का समाज में अपना वर्चस्व है। महासभा के तत्त्वावधान में बहुत से अच्छे कार्य सुन्दर रूप में हो रहे हैं। केन्द्रीय स्तर पर महासभा तो क्षेत्रीय स्तर पर महासभा के छोटे रूप में सभाएं हैं। क्षेत्रों में संभाएं जिम्मेवार होती हैं। महासभा का कितना बड़ा सामाजिक जिम्मा है। कितना भी बड़ा कार्य हो महासभा को निर्धारित किया जा सकता है।
महासभा तेरापंथ समाज की सर्वोपरि संस्था है। तेरापंथ समाज को महासभा जैसी संस्था का प्राप्त होना मानों सौभाग्य की बात है। मैंने तेरापंथी महासभा को ‘संस्था शिरोमणि’ कहा था। मेरा मानना है कि महासभा को संस्था शिरोमणि कहना सार्थक है। महासभा के नेतृत्व में इतना विराट अधिवेशन हो रहा है। सभी सभाएं और प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों मंे पूर्ण जागरूकता रखें। हमारी चारित्रात्माएं क्षेत्रों में खूब धार्मिक जागरणा करती रहें। महासभा खूब अच्छा विकास करती रहे। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, सिद्ध साधक, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को तीर्थंकर समवसरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के द्वितीय दिवस के मंचीय कार्यक्रम में आचार्यश्री ने आशीष के रूप में प्रदान की तो लगभग 429 क्षेत्रों के साढ़े चौदह सौ से अधिक प्रतिनिधि हर्षविभोर हो उठे।
सोमवार को तीर्थंकर समवसरण में श्रद्धालु व महासभा के प्रतिनिधि सम्मेलन में प्रतिभाग करने पहुंचे देश-विदेश के श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सोना और जागना भी जीवन में लगा रहता है। ये दोनों प्रवृत्तियां बाहर से भी सम्बन्धित होती हैं और इन्हें आंतरिक रूप से देखा जाए तो प्रमाद, मूर्छा, मोह, अज्ञान को सुसुप्ता अवस्था मान लिया जाए और ज्ञान, ध्यान, अप्रमाद और जागरूकता को जागना मान लिया जाए। भगवती सूत्र में तीन प्रकार की जागरिका बताई गई है-बुद्ध, अबुद्ध और सुद्रष्टा जागरिका। बुद्ध जागरिका केवलज्ञानी को होती है, जिनका मोह क्षीण हो चुका है। अबुद्ध जागरिका साधुओं की होती है। जिनके पास केवलज्ञान तो नहीं, किन्तु मति-श्रुत ज्ञान होता है। इसमें किसी-किसी को अवधि ज्ञान और मनः पर्यव ज्ञान भी हो सकता है। सुद्रष्टा जागरिका श्रमणोपासकों में बताई गई है। जो श्रावक जीव-अजीव को जानता हो, तप करने वाला हो, देव, गुरु और धर्म के प्रति जागरूक हो उनमें सुद्रष्टा जागरिका होती है। श्रावक समाज अपनी सुद्रष्टा जागरिका को बनाए रखने का प्रयास करे। जीवन में कितना भी दुःख, कष्ट, अथवा विपदा आए, किन्तु धर्म के प्रति निष्ठा कम नहीं होनी चाहिए। धर्म कोई कपड़ा नहीं होता, वह आत्मा में स्थाई रूप से रहने वाली चीज है। जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने धर्म में निष्ठावान रहने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान से भी समुपस्थित जनता को लाभान्वित किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान मंे आयोजित हो रहे त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के दूसरे दिन महासभा मंचीय कार्यक्रम भी आचार्यश्री की पावन सन्निधि मंे हुआ। कार्यक्रम में महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने महासभा द्वारा समाजोत्थान के लिए किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का उल्लेख किया तो महासभा के मुख्य न्यासी श्री सुरेशचन्द गोयल ने आगामी योजनाओं के संबंध में अवगति प्रदान की। उपस्थित प्रतिभागियों को जागरूकता के लिए एक छोटा वीडियो क्लीप भी प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने किया। आचार्यश्री की पावन प्रेरणा, मंगल आशीर्वाद से सभी प्रतिनिधि आह्लाद की अनुभूति कर रहे थे।