- शांतिदूत ने किया 15 कि.मी. का विहार, भिलाड़वासियों ने किया भव्य स्वागत
- श्री स्वामीनारायण गुरुकुल में प्रवास हेतु पधारे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
- आचारयुक्त ज्ञान ही है परिपूर्ण ज्ञान : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
25.05.2023, गुरुवार, भिलाड़, वलसाड (गुजरात)। भारत के केन्द्रशासित प्रदेश दादरा नगर हवेली को आध्यात्मिक आलोक से आलोकित कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को पुनः गुजरात राज्य की धरा पधारे और भीषण गर्मी में भी जनकल्याण के लिए लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर वलसाड जिले भिलाड़ गांव में पधारे। जहां भिलाड़वासियों ने शांतिदूत का भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग भिलाड़ के श्री स्वामीनारायण गुरुकुल में पधारे।
गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेना में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दादरा नगर हवेली की राजधानी सिलवासा से प्रस्थान किया। श्रद्धालुओं को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर बढ़ चले। मुम्बई से बढ़ती निकटता ने गुरु सन्निधि में पहुंचने वाले मुम्बईवासियों की संख्या को भी बढ़ा दी है। मार्ग में अनेक स्थानों पर मुम्बईवासी व आसपास के श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। भीषण गर्मी में लगभग पन्द्रह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री भिलाड़ पधारे तो भिलाड़ की जनता ने आचार्यश्री का बलुंद जयघोष के साथ अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस में सभी वर्ग और संप्रदाय के लोग सोल्लास शामिल थे। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री श्री स्वामीनारायण गुरुकुल में पधारे तो गुरुकुल से जुड़े हुए लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
गुरुकुल परिसर में बने प्रार्थनालयम् में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र के एक श्लोक में बताया गया कि पहले ज्ञान और फिर बाद में दया और आचरण। दुनिया में ज्ञान का परम महत्त्व है। ज्ञान अपने आपमें पवित्र तत्त्व है। जिसके पास कुसाग्र बुद्धि हो, ज्ञान का खूब अच्छा विकास हो तो समझना चाहिए कि उसके ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम है। दुनिया में अनगिन ग्रंथ हैं। सभी ग्रन्थों को इस जीवन में पढ़ पाना संभव नहीं। सीमित मानव जीवन काल में विघ्न-बाधाएं भी आती रहती हैं तो ऐसे में भला आदमी को किस तरह ज्ञान के अर्जन का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए शास्त्र में बताया गया कि आदमी को सारभूत ज्ञान को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार हंस पानी को छोड़कर दूध ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार आदमी को सारभूत व सत् साहित्य का अध्ययन कर ज्ञानार्जन के विकास का प्रयास करना चाहिए।
कोरा ज्ञान भी किसी काम का नहीं होता। आचार के बिना ज्ञान का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता। ज्ञान के साथ-साथ आचार भी अच्छा हो तो ज्ञान वास्तव में पूर्ण हो सकता है। इसलिए विद्यालय, महावि़द्यालय और विश्वविद्यालय में ज्ञानार्जन करने वाले विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ-साथ निर्मल आचार की प्रेरणा भी देने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के साथ अच्छे आचार और अच्छे संस्कार देने का प्रयास हो तो उनका जीवन अच्छा हो सकता है। इससे आदमी कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। आचार्यश्री ने भिलाड़ आगमन के संदर्भ में कहा कि आज यहां आना हुआ है। इस गुरुकुल के विद्यार्थियों में भी ज्ञान, आचार और संस्कार का अच्छा विकास हो। जनता में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने भी भिलाड़वासियों को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री भीखमभाई बैद ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। श्री स्वामीनारायण गुरुकुल के स्वामी श्री संघस्वामी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे गुजरात सरकार के पूर्व मंत्री श्री रमणभाई पाटकर ने अपनी अभिव्यक्ति दी आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।