बेहाला (कोलकाता) : जो नमता है वह गमता है- मुनिश्री जिनेश कुमार जी

  • पंच दिवसीय संस्कार निर्माण शिविर

बेहाला कोलकाता। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ महासभा के तत्वावधान व तेरापंथ सभा बेहाला के द्वारा आयोजित पंच दिवसीय संस्कार निर्माण के दूसरे दिन जेम्स एकेडमीया इंटरनेशनल स्कूल ( बेहाला ) प्रवचन में मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा – दुनिया का प्रत्येक प्राणी कर्मों के कारागृह में बंदी बना हुआ है। बंधन को तोड़ने का एक उपाय वंदना है। आध्यात्मिक दृष्टि से वंदना एक प्रवृत्ति है और व्यवहारिक दृष्टि से वंदना एक शिष्टाचार है। वंदना अपने से बड़ों की जाती है। वंदना करने से विनय की आराधना होती है, अहंकार का नाश होता है, श्रुत की आराधना होती है। वंदना करने से नीच गोत्र का क्षय ओर उच्च गोत्र का बंधन होता है। वंदना करने से ललाट सक्रिय होता है, वासना नियंत्रित होती है, सुगर कंट्रोल में रहती है।
उन्होंने आगे कहा- भारतीय संस्कृति में चरण स्पर्श का बहुत बड़ा मूल्य है । पैर के अंगूठे का संबंध सीधा मस्तिष्क से हैं। पैर का अगुठा अमृत निर्झर केन्द्र है। अंगूठे से संग्रहित ऊर्जा नमन कर्ता में प्रवाहित होती है। चरण स्पर्श से आत्मीयता व वात्सल्य का घेरा बनता है। जो नमता है वह गमता है। मेधावी वह होता है जो नमता हैं। मुनिश्री ने कहा- व्यक्तित्व के विकास में सहनशीलता की महत्व पूर्ण भूमिका रहती है। जो सहन करता है वह सफल होता है। मुनिश्री ने प्रश्नोत्तर का भी कार्यक्रम चलाया। मुनिश्री परमानंद ने कहा अहिंसा जैन धर्म का मुख्य आचार है वह परम धर्म है। उपासक सुरेन्द्र सेठिया ने योगा ध्यान के प्रयोग कराए। उपासक गौतम वेद मुथा, सुधांशु जैन, उपासक रवि छाजेड़ ने विभिन्न विषयों। पर बच्चों को प्रशिक्षण दिया गया। एन. डी. आर‌.व टी. टी.एफ द्वारा बच्चों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया। मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने मधुर गीत का संगान किया।

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