- दादरा नगर हवेली की राजधानी सिलवासा में छाया अध्यात्म का रंग
- लोगों पर कृपा बरसाते हुए लगभग 12 कि.मी. का आचार्यश्री महाश्रमणजी ने किया विहार
- भव्य स्वागत जुलूस संग गवर्नमेंट हाइस्कूल में पधारे महातपस्वी महाश्रमण
- करुणा, दया, अनुकंपा से भावित रहे मानव की आत्मा : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
24.05.2023, बुधवार, सिलवासा (दादरा नगर हवेली)। भारत के बीस राज्यों व दो केन्द्रशासित प्रदेशों को पावन करने के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में भारत के तीसरे केन्द्रशासित प्रदेश दादरा नगर हवेली की धरा को पावन बना रहे हैं। भारत के पश्चिम समुद्र तट से सटा हुआ प्रदेश मूलतः गुजरात से अधिक प्रभावित है। ऐसे केन्द्रशासित प्रदेश की राजधानी सिलवास में बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के सरताज युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल पदार्पण हुआ। सिलवासावासियों ने सोत्साह आचार्यश्री का स्वागत-अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सिलवासा नगर में स्थित गवर्नमेंट हाईस्कूल के नवनिर्मित भवन में पधारे।
बुधवार को प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय पश्चात आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दादरा से मंगल प्रस्थान किया। दादरावासियों ने आचार्यश्री के प्रति अपने कृतज्ञभावों को अर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। हालांकि आचार्यश्री का विहार लगभग आठ किलोमीटर का ही था, किन्तु श्रद्धालुओं पर इस तप्त गर्मी के मौसम में भी कृपा बरसाने हेतु लगभग चार से अधिक किलोमीटर का अतिरिक्त विहार किया। जन-जन पर आशीष की छाया करते हुए आचार्यश्री दादरा नगर हवेली की राजधानी सिलवास में पधारे तो आचार्यश्री के स्वागत में सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने बुलंद जयघोष किया।
गवर्नमेंट हाईस्कूल परिसर में ही बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनुकंपा अहिंसा रूपी धर्म से गहराई से जुड़ा हुआ है। आदमी करुणा, दया, अनुकंपा रूपी सद्विचारों से भावित होता है तो वह पापों से बच सकता है। दया-अनुकंपा की भावना हो तो मानना चाहिए कि अहिंसा का पूर्णतया पालन संभव हो सकता है। दया-अनुकंपा की भावना आत्मा को पापाचार से बचाने वाली होती है। आदमी किसी को आध्यात्मिक रूप से चित्त समाधि न भी पहुंचा सके तो किसी को अनावश्यक कष्ट देने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए।
साधु को दयामूर्ति कहा गया है। साधु तो अपने निमित्त से किसी भी प्राणी की हिंसा न हो, ऐसा प्रयास होना चाहिए। अहिंसा का सूक्ष्मता से पालन आदर्श साधु का व्यक्तित्व है। कोई आदर्श साधु न भी बन सके तो आदर्श बनने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थों के मन भी दया-अनुकंपा के माध्यम से अहिंसा की भावना जितना संभव हो पुष्ट रहे तो अच्छी बात हो सकती है। आदमी को दया, अनुकंपा रूपी धर्म की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने सिलवास आगमन के संदर्भ में कहा कि आज सिलवासा आना हुआ है। यहां के लोगों में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक चेतना का विकास हो। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उत्प्रेरित किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री नितेश भण्डारी, सकल जैन संघ की ओर से श्री जीवेर शाह, श्री राजेश दुगड़ व श्री कन्हैयालाल जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान की। आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित डीएसपी श्री सिद्धार्थ जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।