“मैं एक समुदाय की प्रगति को..
उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं
जो महिलाओं ने हासिल की है।”
डॉक्टर अंबेडकर जी ने आज इस देश का प्रत्येक देशवासी जानता हो या नहीं किंतु उनके विचारों से उनका जीवन प्रभावित अवश्य होता है। वर्तमान समय में हम सोचते हैं अंबेडकर जी ने अछूत कहे जाने वाले व्यक्तियों के लिए कार्य किया किंतु उन्होंने केवल किसी एक धर्म जाति या रंग रूप से संबंधित व्यक्ति के लिए कार्य नहीं किया। यह बात आज भी हम इस वर्तमान समय में समझने में असमर्थ रह जाते है।
डॉक्टर अंबेडकर जी ने प्रत्येक भारतीय के लिए कार्य किया। अंबेडकर जी ने लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए बराबरी के अधिकार अर्थात समानता के अधिकार को संविधान में स्थान दिया। जिसके चलते महिलाओं को भारत में किसी भी अन्य देश के मुक़ाबले जल्दी ही पुरुषों के समान समानता का अधिकार प्राप्त हुआ। जहां हम जैसे एक विशाल देश की बात करते हैं जो हमसे विकास की रेस में कई गुना आगे कार्य कर रहे है। उस देश को अपनी यहां की महिलाओं को वोट जैसा एक सामान्य अधिकार जो एक देश के नागरिक को मिलना चाहिए। उस देश में उस देश की महिलाओं को 133 वर्ष आजादी के बाद वोट का अधिकार मिला। वहीं हमारे देश में आजादी मिलने के बाद, संविधान के बनने के साथ ही साथ महिलाओं को समानता के अधिकार के चलते वोट देने का अधिकार पुरुषों के समान प्राप्त हुआ। यह केवल अम्बेडकर जी के विचारों के चलते ही संभव हो पाया।
वहीं जब हम वर्तमान समय में अम्बेडकर जी के विचारों की बात करते है। तो एक विचार मन में उभर उठता है कि संविधान बने 74 सालों का समय बीत चुके है। उसके बावजूद भी आज हमें संविधान में लिखे अंबेडकर जी के विचारों की आवश्यकता क्यों पड़ती है क्यों आज भी हम आरक्षण और भेदभाव जैसे विषयों के लिए अंबेडकर जी के संविधान और विचारों का सहारा लेते हैं। यदि आपके मन में भी यह विचार बार-बार आता है तो कभी ना कभी आपने इस सवाल के जवाब को खोजने की कोशिश अवश्य की होगी ऐसी ही एक कोशिश आज मेरे द्वारा भी की जा रही है।
हमारा समाज इस में भेदभाव के बीच बहुत ही पुराने है। हमारा समाज जो केवल धर्म-जाति के आधार पर ही नहीं रंग-रूप, लिंग प्रत्येक आधार पर वर्गीकृत हुआ हमें नजर आता है। उसके जड़ें सालों पुरानी है। वर्ण व्यवस्था जिससे हम सभी परिचित हैं। उसकी एक तस्वीर हमें वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत नजर आती है। आजकल स्कूलों में एक-दूसरे जोर शोर से पढ़ाया जा रहा है, जिसे हाशियाकरण नामक नाम से जाना जाता है। इस विषय में देश में पहले भेदभाव के बारे में बतलाया जाता है। उन लोगों की बात की जाती है। जिन्हें एक किनारे पर समाज से अलग धकेला गया है, आज से नहीं सैकड़ों सालों से। चाहे वह जाति, धर्म, रंग-रूप, लिंग किसी के भी आधार पर होने वाला हाशिए को हम हाशियाकरण से संबंधित विषयों में आज किताबों में पढ़ रहे।
“मेरे पड़ोस में रहने वाली एक छोटी बच्ची जो आठवीं कक्षा में पढ़ती है वह एक बार बतला रही थी कि उसकी कक्षा में जब शिक्षिका ने हाशियाकरण संबंधित विषय को पढ़ाया ओर जब वह पढ़ाकर कक्षा के बाहर निकली तो सभी बच्चे आपस में एक दूसरे से उनकी जाति के बारे में पूछने लगे।”
इस प्रकार की घटना हमें यह बतलाती है कि जिन विषयों को पढ़ाकर हम भेदभाव को दूर करने की बात कर रहे हैं। कहीं ना कहीं वह विषय किसी छोटे बच्चे की अंदर दबी भावनाओं को एक गलत रूप दे देता है। बच्चे जो अभी एक पौधा है और पेड़ बनने के लिए सींचे जा रहे हैं। हाशियाकरण जैसे विषयों को पढ़ाना कहीं ना कहीं उन भावनाओं पर जोर दे देता है, जिन भावनाओं को हम कानूनी रूप से गलत मानते हैं। जब शिक्षा की बात आती है तो शिक्षा किसी एक व्यक्ति किसी एक जाति किसी एक ध्यान किसी एक रंग किसी एक लिंग से संबंधित नहीं होती वह प्रत्येक वर्ग, जाति, धर्म, रंग-रूप, लिंग इत्यादि से संबंधित होती है। ऐसे में किसी एक वर्ग के बारे में कक्षा में पढ़ाने से उनके ज़ख्मों को कुरेदने जैसा कार्य हो रहा है, यह हमें समझना चाहिए।
वर्तमान के समय में हम देखते हैं कि हम सभी एक क्लास में बैठे हुए हैं, उच्च क्लास, निम्न क्लास, और मध्यम क्लास। यह क्लास धर्म, जाति, रंग-रूप, लिंग इत्यादि के आधार पर आधारित ना होकर, आर्थिक स्थिति के आधार पर आधारित होता है। यह देखकर कहीं ना कहीं दुख से ज्यादा आज अपने देश की स्थिति पर दया आती है, जब पढ़ें लिखे सम्पन्न लोग अपने आसपास रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर और कम या ना पढ़े लिखे लोगों के साथ ग़लत व्यवहार करते है। जब यह सुनने में आता कि खाना बनाने वाली हो खाना बनाने वाली की तरह रहो, हम पढ़े-लिखे लोगों से बात करने का आपको कोई हक़ नहीं है। या फिर जब यह कहां जाता है कि बर्तन धोने वाली के हाथों से पकाया गया भोजन हम कैसे खां सकते है। ऐसे विचारों को सुनकर लगता है देश की तरक्की आईं फोन और 5 जी तक रह गई है। विचारों में हमारे कोई बदलाव नहीं है। जिसके कारण डॉक्टर अंबेडकर जी के विचारों की आवश्यकता हमें आज भी है, ताकी समानता और स्वतंत्रता जैसे शब्द केवल शब्द बनकर ना रह जाए वह सभी के जीवन का सकारात्मक हिस्सा बन सकें।