भारत और भारतीय समाज को वर्ग और वर्ण विहीन बनाने के प्रयास करने वाले प्रारंभिक शिल्पकारों में बाबा साहब अग्रणी रहे हैं।जिस कालअवधि में बाबा साहेब का जन्म हुआ था उस समय भारतीय समाज को छुआछूत और वर्ग विभेद के सड़ांध में बहुत तेजी ढकेला जा रहा था।कमजोर वर्ग के महार जाति में पैदा होने की वजह से आंबेडकर को भी बचपन से ही विविध प्रकार के समस्याओं और भेदभाव का सामना करना पड़ा।प्रारंभिक शिक्षा में भी अनेकानेक चुनौतियां और कठिनाईयों से दो चार होना पड़ा।पर अपने जुनून के पक्के भीमराव कभी नहीं रूके।वे न केवल उच्च शिक्षा अर्जित किए,बल्कि स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बनने तक की सफर भी सफलता पूर्वक पूर्ण किये।
बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर उन उच्च श्रेणी के राजनेताओं में से एक थे,जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र और समृद्ध भारत के निर्माण में झोंक दिया।विशेषकर भारत के वंचित दलित पिछड़े वर्ग जो सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे,उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की।
बाबा साहेब वर्ण और वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले भारतीय समाज को जातिविहीन करने के प्रबल पैरोकार थे। उनका मानना था समाजवाद के बिना दलित-वंचित लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध किया जाना असंभव है।
वे हमेशा कहा करते थे, ‘छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते,उसे वसूल करना होता है।’ उन्होंने ने कहा है, हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है।’इसलिए आप ईमानदारी पूर्वक प्रयास कर इन सामाजिक रूढ़ियों को मिटा सकते हैं।
तत्कालीन बड़ौदा रियासत के राजा सयाजीराव गायकवाड़ के मदद से अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति समेत अनेक विधाओं में उन्होंने गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया था। अमेरिका मे ही बाबासाहेब को सर्वप्रथम स्वच्छंदता महसूस हुआ था और लगा अगर भारतीय लोकतंत्र को समृद्ध बनाना है तो उसके लिए देश में और देशवासियों के बीच समानता और समरसता के भाव का होना अनिवार्य है।
बाबा साहेब महात्मा बुद्ध के अहिंसक सिद्धांत के प्रबल समर्थकों में से थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर उन्होंने सामाजिक अन्याय के विरुद्ध आंदोलन को सतत जारी रखकर सामाजिक समानता स्थापित करने का प्रयास किया।वे अपने भाषणों में हमेशा कहा करते थे मेरे अछूत भाईयों बहनों जंगलों की खाली बंजर जमीन पर मेहनत परिश्रम करे उससे लाभ उठाने की कोशिश करें दूसरों की दया दृष्टि पर निर्भर कतई नहीं रहें तथा अपना भाग्य को खुद बदलने की कोशिश करें।आपके गुलामी के जंजीर को तोड़ने की ताकत आपके सिवा दुनिया के किसी और में नहीं है।केवल आप ईमानदारी और समर्पण भाव से कोशिश करें यह आपको बहुत दिनों तक जकड़ कर नहीं रख पाएगा।
उन्हें दृढ़ विश्वास था राजनीतिक लोकतंत्र बिना सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के अपूर्ण है।इसलिए सर्वप्रथम वंचित दलित पिछड़े वर्ग के लोगों को सामाजिक,शैक्षणिक और आर्थिक दृष्टि से समुन्नत बनाने की जरूरत है।इसके लिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ स्त्री शिक्षा पर बल देना अति आवश्यक है।
बाबा साहेब कहते थे कोई भी कायदा कानून और संविधान कितने भी उच्च दर्जे की क्यों न हो यदि उसके मानने वाले अच्छे नहीं हुए तो वह बेकार पड़ जाता है और यदि मानने वाले अच्छे निकल गए तो कमजोर से कमजोर कायदा कानून और संविधान भी देश के अंतिम व्यक्ति तक को जिम्मेवार,सुविधा संपन्न और महत्वपूर्ण बना देगा।
बाबा साहेब के अनुसार हजारों वर्ष से सामंती प्रवृत्ति के लोगों के उच्च स्तरीय षड्यंत्र के बदौलत सर्वहारा वर्ग के लोगों को गुलाम बनाया जाता रहा है।और लोग उसी गुलामी की जेल में रह कर अपने आप को अस्तित्व विहीन मानते हुए उसे ही अपना नियति मान बैठ जाते हैं। जिसके कारण वे गुलामी प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो पाते।इसे हर हाल में समाप्त करना होगा।तब ही जाकर वंचित लोगों का कल्याण संभव हो सकता है।
बाबा साहेब का कहना था जब तक गुलामी रूपी कारागार में कैद रहोगे तब तक तुम्हारी तो क्या तुम्हारी आने वाली कई पीढ़ियां भी मान-सम्मान,सामंती प्रवृत्ति के लोगों की तरह हासिल नहीं कर सकती है।अपने समाज के पिछड़ेपन और दुर्गति के कारण जानना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने सामाजिक व्यवस्था के बंधनों को खोलना होगा और उसका शल्य चिकित्सा करना होगा।सामंती व्यवस्था गुलामी की आदत आदि सामाजिक बीमारी से पार पाने के लिए शिक्षा ही एकमात्र अचूक हथियार है।अतः जितना अधिक से अधिक शिक्षा प्राप्त कर सकते हो करो।शिक्षा किसी वर्ण वर्ग जाति समाज व्यवस्था धर्म की बपौती नहीं है जिसने भी प्रयास किया वह शिक्षा रूपी शेरनी के दूध पीकर अपने अस्तित्व को पुनः प्राप्त करने में सफल रहा।
संविधान सभा में बोलते हुए डॉ अंबेडकर ने कहा था कि भारत सदियों की गुलामी से मुक्त हो स्वतंत्र और स्वाधीन बना है अब अपने स्वराज की रक्षा करना हर भारतवासी का परम और प्रथम कर्तव्य है। सदियों के गुलामी के परिणाम स्वरूप जो देश मे ऊंच-नीच,जाति-पाती, भेदभाव,आर्थिक और सामाजिक विषमता,पिछड़ापन ,कुरीतियां,अंधविश्वास,छुआछूत आदि पनप गई है।उसे समूल नष्ट करने के बाद ही भारतीय लोकतंत्र को शाश्वत और प्रगतिशील बनाया जा सकता है।
डॉ आंबेडकर कहते थे वंचितों की मूल समस्या आर्थिक गरीबी अथवा किताबी अशिक्षा नहीं है बल्कि विषमता मुल्क धर्म पर आधारित वह सामाजिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत उन्हें तथाकथित उच्च वर्ग के नीचे रख दिया गया है।जिसको समझने और तोड़ने की जरूरत है ताकि समतामूलक समाज की स्थापना सुनिश्चित किया जा सके।
आजीवन भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए ,सामाजिक कुरीतियों,अंधविश्वास, असमानता, भेदभाव से संघर्ष करते हुए 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहेब महानिर्वाण को प्राप्त किए।मरणोपरांत सन 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
बाबा साहेब ने देशवासियों को सावधान करते हुए कहा था कि 26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं।हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी,जिसे किसी भी कीमत पर हमें जल्द समाप्त करना होगा।अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियां भी असमानता के शिकार होंगी, और वे एक झटके में इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।’
दुर्भाग्यवश बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के द्वारा देखा गया समतामूलक वर्ण और वर्ग विहीन समाज के निर्माण का सपना मुट्ठी भर शातिर धोखेबाज लोगों के कारण आज भी अधूरा है जो भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती पर बदनुमा दाग के समान है।
देश में बाबा साहेब के सामाजिक और आर्थिक समानता के सपने को साकार कर ही उनके सपनों का भारत निर्माण किया जा सकता है।
भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में अग्रणी,स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहे डॉ अम्बेडकर का प्रारंभिक नाम भीमराव रामजी आम्बेडकर था।14 अप्रैल, 1891को जन्मे बाबा साहब डॉ भीमराव आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय हुए।वे विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे।उन्होंने गरीब, वंचित, दलित लोगों को अपने हक अधिकार के लिए शिक्षित होने और अनवरत संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित, प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। उन्होंने ने आजीवन श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के हक,अधिकारों का समर्थन किया।
डॉ. आंबेडकर का लक्ष्य था- ‘सामाजिक असमानता दूर करके गरीबों ,पिछड़ों ,दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना।’ डॉ. आंबेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान करते हुए कहा था कि ‘26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी।जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे।’
शुरुआत से ही डॉ अम्बेडकर एक प्रतिभावान विद्यार्थी थे,उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, कानून, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध के लिए उन्हें एक विद्वान के रूप में स्थापित किया।अपने प्रारम्भिक करियर में, वे एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील थे। वे भारत की स्वतंत्रता के लिए अभियान और वार्ता, पत्रिकाओं के प्रकाशन, राजनीतिक अधिकारों और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत करने और भारत राज्य की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1956 में, उन्होंने लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म का वरण लिया ।
डॉ अंबेडकर ने 1935 में कहा था कि मैं हिंदू धर्म में पैदा जरूर हुआ हूं लेकिन हिंदू के रूप में मरना पसंद नहीं करूंगा ।उन्होंने हिंदू धर्म को “दमनकारी धर्म” के रूप में चिन्हित किया और किसी अन्य धर्म में स्वीकार करने के लिए सोचने लगे।अपने मृत्यु से कुछ सप्ताह पहले 16 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म का वरण लिया ।
वे हिंदू धार्मिक ग्रंथों और महाकाव्यों के आलोचक थे और उन्होंने 1954 से 1955 में रिडल्स इन हिंदुइज्म नामक एक कृति लिखी ।
अम्बेडकर ईसाई धर्म को अन्याय से लड़ने में असमर्थ मानते थे। उन्होंने लिखा है कि “यह एक निर्विवाद तथ्य है कि ईसाई धर्म संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो की गुलामी को समाप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं था।उन्होंने दलितों के इस्लाम या ईसाई धर्म में धर्मांतरण का विरोध किया।
अम्बेडकर ने शूद्रों को आर्य के रूप में देखते थे और आर्य आक्रमण सिद्धांत को दृढ़ता से खारिज कर दिया , इसे अपनी पुस्तक हू वेयर द शूद्र में वर्णित किया ?
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। वे एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन संकल्प था।
आजकल एक शब्द ‘जय भीम’ बोलकर देशवासियों द्वार सामने वाले इंसान का अभिवादन करने की परिपाटी चल निकली है।वह देशवासियों द्वारा डॉ अम्बेडकर के प्रति प्रदान किया जाने वाला सम्मान है।
बाबा साहब का सामाजिक और आर्थिक समानता का सपना अधूरा
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